भारत में कितने राष्ट्रीय उद्यान है | अभ्यारण्य किसे कहते है?

वन्य जीव के अंतर्गत वनों में रहने वाले विभिन्न जीव-जंतु आते हैं। यह परिस्थितिकी तंत्र के महत्वपूर्ण घटक होते हैं। अतः निश्चित संख्या में इनका परितंत्र में उपस्थित रहना पर्यावरण संतुलन के लिए अति आवश्यक है। भारत वन्यजीव की दृष्टि से विश्व में संपन्न है। यहां करीब 75,000 प्रकार के जीव-जंतुओं की प्रजातियां पाई जाती हैं, जो पर्याप्त जैवविविधता एवं संपन्नता को बतलाता है। यहां 45,000 प्रकार की वनस्पतियां भी पाई जाती हैं।

वर्तमान में वन्य जीवों के सामने भी अस्तित्व की समस्या उत्पन्न हो रही है तथा कई जीव-जंतुओं की प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। जिसका प्रभाव पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ेगा।
वन्य जीव अधिनियम 1972 (
Wildlife Act 1972) की अनुसूची-1 में 133 दुर्लभ (Rare) जीव-जंतुओं की एक लंबी सूची है। जिनका अस्तित्व खतरे में बताया गया है।

  • भारतीय वन्य (सुरक्षा) अधिनियम 1972 :  वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए पहले केंद्रीय कानून बनाया गया था। इसके द्वारा पक्षी, सरीसृप, उभयचर, कीट आदि वन्य जीव तथा विशेषकर दुर्लभ होते जीवो को कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई थी। दुर्लभ एवं लोकप्रिय होती प्रजातियों के व्यापार पर रोक लगा दी गई है। इसके अंतरराष्ट्रीय आयात-निर्यात पर भी प्रतिबंध है तथा किसी भी प्रकार के शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
  • वन्य जीवनकार्य योजना 1983 : यह भारत की पहली विशेष योजना थी, जो वन्य जीवन संरक्षण के लिए कार्य नीति और कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत करती है।
  1.  पहली वन्य जीवन योजना (First wildlife plan) 1983 को संशोधित कर नई वन्य जीवन कार्य योजना (Wildlife Action Plan) (2002 to 2016) स्वीकृत की गई।
  2.  देश में वन्यजीव संरक्षण के लिये फरवरी 2016 में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने तीसरी राष्ट्रीय वन्यजीव कार्ययोजना (Third National Wildlife Action Plan) का अनावरण किया। यह कार्ययोजना वर्ष 2017-31 तक के अवधि की देश में वन्यजीव संरक्षण की रूपरेखा प्रस्तुत करती है। यह इस तरह की तीसरी कार्ययोजना है। प्रथम 1983-2001 और द्वितीय 2002-2016 की अवधि में लागू हुई थी। वर्तमान कार्ययोजना  का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन और वन्यजीव आयोजना, तटीय क्षेत्रों का संरक्षण एवं जलीय पारिस्थितिकी के मध्य समन्वय स्थापित करना है।
  • भारतीय वन्य जीवन बोर्ड :  वन्य जीवन संरक्षण की अनेक योजनाओं के क्रियान्वयन की निगरानी और निर्देशन करने वाली शीर्ष सलाहकार संस्था है। जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं।
  • वन्यजीवों के लिए संरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत वर्तमान में 104 राष्ट्रीय उद्यान (National park), 551 अभयारण्य (The sanctuary), 18 जैवमंडल रिजर्व (Biosphere reserve) आते हैं।
  • पशुओं पर क्रूरता पर रोक संबंधित अधिनियम 1960 (Act relating to the prohibition of cruelty on animals) में बनाया गया तथा प्राणी कल्याण विभाग की स्थापना भी की गई। भारतीय प्राणी कल्याण बोर्ड एक वैधानिक निकाय है। इसका मुख्यालय चेन्नई में है। बोर्ड का मूल उत्तरदायित्व जानवरों के कल्याणकारी मामलों पर सरकार को परामर्श देना और जानवरों के कल्याण के लिए जागरूकता फैलाना है।

‘पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (देखभाल और मामले संपत्ति जानवरों की देखभाल) नियम-2017 और पशुओं की क्रूरता की रोकथाम (पशुधन बाजार का विनियमन) नियम-2017, 23 मई 2017 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किए गए थे। ये कानून प्रकृति रूप से असंवैधानिक हैं।


राष्ट्रीय उद्यान/National park :

राष्ट्रीय उद्यानों की स्थापना केंद्र सरकार द्वारा वन्यजीवों के लिए सुरक्षा आवास उपलब्ध कराने के उद्देश्य से की जाती है। उद्यान क्षेत्र में कटाई, चराई और वन्यजीवों के आवास को नुकसान पहुंचाने वाली किसी भी गतिविधि की अनुमति नहीं है।

वर्तमान में 104 राष्ट्रीय उद्यान है। जिमकार्बेट राष्ट्रीय उद्यान, नैनीताल भारत की पहली राष्ट्रीय उद्यान है जो टाइगर के संरक्षण के लिए है।


अभ्यारण्य/Sanctuaries :

अभयारण्य की स्थापना भी वन्यजीवों की सुरक्षा तथा संरक्षण प्रदान करने के लिए की जाती है, लेकिन राष्ट्रीय उद्यान की तुलना में यहां कम कठोर कानून होता है, अर्थात यह सामान्यतः लचीली अवधारणा है, जहां सीमित रूप से मानवीय गतिविधियों को छूट होती है। यहां स्थानीय निवासियों के लिए जंगली उत्पाद एकत्रित करने, वृक्षों एवं घास की सीमित कटाई, चराई तथा जमीन पर निजी स्वरूप बने रहने देने जैसी बातों की छूट होती है। वर्तमान में 544 अभयारण्य है।


जैवमंडल रिजर्व/Biosphere Reserves :

जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र ऐसे बहुउद्देश्य आरक्षित क्षेत्र हैं, जिनके माध्यम से स्तरीय और तटीय परिस्थितिकी प्रणाली में आनुवांशिक विविधता बनाए रखी जाती है।

यूनेस्को के मानव और जैवमंडल कार्यक्रम के तहत इस क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है। इसके अंतर्गत विश्व की प्रमुख पारिस्थितिकी प्रणालियां तथा भू-दृश्य (Landscape) से आते हैं।

जैवमंडल रिजर्व के उद्देश्य 

  1. पारिस्थितिकी प्रणालियां तथा भूदृश्यों को संरक्षण।
  2. पौधे, जीव-जंतुओं तथा सूक्ष्म जीवों की संपूर्णता तथा विविधता को बनाए रखना।
  3. सांस्कृतिक विरासत, पर्यावरणीय, पारिस्थितिकी विज्ञान को बढ़ावा देने वाली आर्थिक और मानव विकास से संबंधित गतिविधियों को प्रोत्साहन देना।
  4. शिक्षा, जागरूकता, अनुसंधान एवं प्रशिक्षण के लिए प्रयास करना।

जैवमंडल रिजर्व क्षेत्र

सर्वप्रथम भारत में 1971 में यूनेस्को के सहयोग से जैवमंडल स्थापना का कार्यक्रम प्रारंभ किया गया और 1986 में देश का पहला जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र नीलगिरी में स्थापित किया गया था। वर्तमान में 18 जैवमंडल रिजर्व आते हैं।

यूनेस्को ने कहा, ‘पश्चिम घाट में स्थित अगस्त्यमलाई जैवमंडल क्षेत्र की सर्वोच्च चोटी समुद्र तल से 1,868 मीटर ऊंची है। वर्षा आधारित वन क्षेत्र में 2,254 तरह के पेड़ पौधे हैं, जिनमें तकरीबन चार सौ स्थानीय हैं। इलायची, जायफल, काली मिर्च और केला बहुतायत में पाए जाते हैं।’ अगस्त्यमलाई के अंतर्गत शेंदुर्नी, पेप्पारा, और नेयार तीन वन्यजीव अभयारण्य हैं। इसके अलावा एक बाघ आरक्षित क्षेत्र (कलाकड मुंडनथुरई) भी है।
केरल एवं तमिलनाडु में फैले अगस्त्यमलाई जैवमंडल क्षेत्र (Agastyamalai Biosphere Area) की स्थापना वर्ष 2001 में की गई थी। यहां कई तरह के जनजाति समुदाय भी रहते हैं। यूनेस्को जैव विविधता वाले क्षेत्रों को हर साल अपनी आरक्षित सूची में शामिल करता है। भारत में कुल 18 बायोस्फीयर रिजर्व हैं। अगस्त्यमलाई मिलाकर 10 क्षेत्र यूनेस्को की सूची में शामिल हैं।

यूनेस्को की सूची में शामिल 10 बायोस्फीयर रिजर्व

  1.  सिमलीपाल (ओडिशा)
  2.  नोकरेक (मेघालय)
  3.  पंचमढ़ी (मध्य प्रदेश)
  4.  नीलगिरि (तमिलनाडु)
  5.  मन्नार की खाड़ी (तमिलनाडु)
  6.  सुंदरबन (पश्चिम बंगाल)
  7.  नंदा देवी (उत्तराखंड)
  8.  अचनाक्मर-अमरकंटक (मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़)
  9.  ग्रेट निकोबार (अंडमान निकोबार द्वीप समूह)
  10.  अगस्त्यमलाई (केरल और तमिलनाडु)

वर्तमान में 18 जैवमंडल रिजर्व क्षेत्र है।

हाल ही में, (मई, 2021) जारी की गई UNESCO द्वारा विश्व धरोहर स्थलों की संभावित सूची में भारत के 6 स्थान।

  1. सतपुड़ा टाइगर रिजर्व
  2. वाराणसी के घाट
  3. हायर बेन्कल महापाषाण स्थल
  4. महाराष्ट्र का मराठा सैन्य वास्तुकला
  5. भेड़ाघाट लम्हेटाघाट
  6. कांचीपुरम के मंदिर 

जैवमंडल क्षेत्र की संरचना – इसके अंतर्गत 4 क्षेत्र आते हैं।

  1. आंतरिक क्षेत्र : सर्वाधिक महत्वपूर्ण हिस्सा, जहां किसी भी प्रकार की मानवीय गतिविधियों की छूट नहीं होती है।
  2. बफर क्षेत्र : यहां सीमित मानवीय गतिविधि की छूट होती है।
  3. मैनिपुलेशन क्षेत्र : यहां मानवीय गतिविधियों को उस सीमा तक छूट दी जाती है, जिससे वहां की परिस्थितिकी पर दुष्प्रभाव न पड़े।
  4. रीस्टोरेशन क्षेत्र : यह वह क्षेत्र है, जिसको सुधार कर जैवमंडल की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया जाता है।

विशेष वन्यजीव संरक्षण के कार्यक्रम

वन्य जीवो को विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों एवं अभयारण्यों में संरक्षण एवं सुरक्षा दी जा रही है, लेकिन साथ ही कुछ विशेष जीवो के संरक्षण के लिए विशेष कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं।

1992 में केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण की स्थापना वन्य जीव संरक्षण अधिनियम-1972 के अंतर्गत की गई, इसका उद्देश्य देशभर में फैले चिड़ियाघरों को व्यवस्थित करना तथा गुणवत्तापूर्ण बनाना है। यह प्राधिकरण चिड़ियाघरों को मान्यता देने, जीवो के लिए गुणवत्तापूर्ण आवास एवं रख-रखाव के मानदंड तय करने, आर्थिक तकनीकी सहायता पहुंचाने का कार्य करता है।देश के विशेष वन्यजीव प्रयोजनाएं निम्नलिखित है।


बाघ परियोजना/Project Tiger

1973 में बाघ परियोजना की शुरुआत की गई थी। जब 1972 में मात्र 1872 बाघों की जनसंख्या रह गई। जबकि सन् 1900 में 40,000 थी।

  1.  बाघों की गिनती पैरों के निशान तथा उन पर बनी धारियों के आधार पर की जाती है।
  2.  यह परियोजना 28 राष्ट्रीय उद्यानों में चल रही है, जो 17 राज्यों में स्थित है।
  3.  मध्य प्रदेश बाघों के लिए सर्वाधिक सुरक्षित क्षेत्र है, इसे बाघ राज्य भी कहा जाता है। सबसे ज्यादा बाघ सुंदरवन में है। अकेला सबसे बड़ा बाघ क्षेत्र नागार्जुन सागर अभयारण्य, आंध्र प्रदेश में है।
  4.  दुर्लभ सफेद बाघों के लिए उड़ीसा का नंदन कानन प्रसिद्ध है।

वर्तमान में (2020) तक भारत के बाघ अभयारण्य की कुल संख्या 50 है।


भारत के प्रोजेक्ट टाइगर रिजर्व की सूची

  1. नगर्जुनासागर, श्रीशैलम, कवल  :  आंध्र प्रदेश
  2. नमदाफा, पखुई/पकके  :  अरुणाचल प्रदेश
  3. काजीरंगा, मानस, नामेरी  :  असम
  4. वाल्मीकि नगर, बिहार, अचानकमार इंद्रावती, उदंती और सीतानदी  :  छत्तीसगढ़
  5. पलामू  :  झारखंड
  6. बांदीपुर, भद्रा, दंदेली-अंशी, नागरहोल, बी.आर हिल्स  :  कर्नाटक
  7. परम्बिकुलम, पेरियार  :  केरल
  8. बांधवगढ़, कान्हा, पन्ना, पेंच संजय डबरी, सतपुरा  मध्य प्रदेश
  9. मेलघाट, पेंच, सह्याद्री ताडोबा-अंधारी  :  महाराष्ट्र
  10. डंपा  :  मिजोरम
  11. सत्कोसिया, सिमलीपाल  :  उड़ीसा
  12. मुकुंद पहाड़ी, सरिस्का, रणथंभौर  :  राजस्थान
  13. अन्नामलाई, कलाकड़ – मुन्दठुराइ सत्यमंगलम   :  तमिलनाडु
  14.  कटेरीयाघाट एक्सटेंशन, दुधवा  उत्तर प्रदेश
  15.  कॉर्बेट  उत्तराखंड
  16.  बुक्सा, सुंदरबन  :  पश्चिम बंगाल

गिर सिंह परियोजना

1972 से यह परियोजना चलाई जा रही है। विश्व में केवल भारत में गिर राष्ट्रीय उद्यान गुजरात में ही सिंह (Lions) बचे हैं।


हाथी परियोजना

1992 से हाथी पर योजना चल रही है, देश में 32 हाथी अभ्यारण अपार बनाए गए हैं,

  • मानस – असम,
  • काजीरंगा – असम,
  • जिम कार्बेट – उत्तराखंड,
  • पेरियार – केरल,  हाथी के लिए प्रसिद्ध है। केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 12 अगस्त, 2017 को पहले समन्वय आधारित अखिल भारतीय हाथी संख्या आकलन के प्रारंभिक परिणाम को जारी किया गया था। इस रिपोर्ट के अनुसार, देश में कुल हाथियों की संख्या 27,312 है, जिसमें सर्वाधिक हाथियों की संख्या वाला राज्य कर्नाटक (6049) दूसरा असम (5719) तीसरा केरल (3054) है।

घड़ियाल प्रजनन परियोजना

घड़ियाल परियोजना वर्ष 1975 में शुरू की गई थी। उड़ीसा के धेनकनाल जिले के टिकरपाड़ा स्थान से 1975 में घड़ियाल प्रजनन परियोजना की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की सहायता से की गई थी। मगर जनन एवं प्रबंध के कार्य से जुड़े हुए विशेषज्ञ डॉ. एच.आर. बस्टर्ड की सलाह के आधार पर भारत में मगर फार्म उद्योग (Crocodile Farming Industry) के विकास की आवश्यकता का आभास हुआ।

वर्ष 1975 में शुरू की गई इस परियोजना का विस्तार राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, अंडमान, असम, बिहार, नागालैंड तथा उत्तर प्रदेश में भी किया गया है। चंबल अभ्यारण्य तथा कृष्णा अभ्यारण्य 2 सबसे बड़े मगरमच्छ अभ्यारण्य कहे जाते हैं। चंबल अभ्यारणय की विशालता का अनुमान इस बात से सरलतापूर्वक लगाया जा सकता है कि इसका विस्तार क्षेत्र राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश तक है। भारत में मगरमच्छ का भी शिकार कानूनी रूप से प्रतिबंधित है।


गैंडा परियोजना

गैंडा परियोजना का इतिहास 1908 में इसका गठन विशेष रूप से एक सींग वाले गैंडे के संरक्षण के लिये संरक्षित वन के रूप में कर दिया गया। 1970 के दशक में गैंडों की संख्या कुछ 100 थी, जो वर्तमान में 3,584 है। काजीरंगा नेशनल पार्क को वर्ष 1985 में यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल में शामिल में किया गया था।


कस्तूरी मृग परियोजना

नर कस्तूरी मृग के शरीर के पिछले भाग में स्थित एक ग्रंथि से कस्तूरी नामक पदार्थ प्राप्त होता है, जो दुनिया के सबसे मंहगे पशु उत्पादों में से एक है। अतः भारत सरकार ने वर्ष 1970 में International Union for Conservation of Nature (IUCN) के सहयोग से उत्तराखण्ड के केदारनाथ अभ्यारण्य में कस्तूरी मृग परियोजना शुरू की थी।


विश्व संरक्षण नीति

पृथ्वी शिखर सम्मेलन 1992 में पारित कार्य सूची-21 में जैव विविधता में ह्रास के लिए मुख्यत: मानवीय गतिविधियों को उत्तरदाई माना गया था। इस समय जैवविविधता संधि 171 राष्ट्रों द्वारा हस्तलिखित की गई थी, जो 1993 से प्रभावी हो गई। इस सम्मेलन में जैविक संसाधनों पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य, स्वतंत्र एवं स्वामित्व को स्वीकार किया गया। भारत ने इस संधि की पुष्टि कर दी थी।

पृथ्वी शिखर सम्मेलन 2 अगस्त, 2002 में जो अफ़्रीका के जोहांसबर्ग में हुआ था, जिसमें महत्वपूर्ण मुद्दे जल, स्वच्छता, ऊर्जा, स्वास्थ्य, कृषि के साथ जैवविविधता पारिस्थितिकी भी था।

इसके उद्देश्यों में भारतीय कृषि बैंक, राष्ट्रीय जीन बैंक, अंतरराष्ट्रीय जीन बैंक की स्थापना करना भी था।

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