विश्व के जैविक तत्व | वनस्पति को प्रभावित करने वाले कारक

विश्व के जैविक तत्वों को दो भागों में सामान्यतः बांटा गया है।
  • जंतु जगत (Animal Kingdom)
  • वनस्पति जगत (Plant Kingdom)

जंतु जगत का अध्ययन जंतु विज्ञान एवं जंतु भूगोल में किया जाता है, जबकि वनस्पति जगत का अध्ययन (Study of flora) वनस्पति विज्ञान एवं वनस्पति भूगोल (Botanical geography) में किया जाता है। भूगोल में जैविक तत्वों जंतु और वनस्पति का अध्ययन जैव (Bio-Geography) भूगोल में किया जाता है।

जीव वैसे पदार्थ को माना जाता है जो सदैव सक्रिय तथा परिवर्तनशील होते हैं। जीवन का तात्पर्य संगठित पदार्थों की उस व्यवस्था से है, जो सदैव क्रियाशील, सक्रिय और परिवर्तनशील होते हैं। जब भूगोल में पृथ्वी के तल पर पाए जाने वाले जीव जंतुओं और वनस्पतियों की उत्पत्ति, विकास, वितरण और स्वरूप का अध्ययन किया जाता है।

वनस्पति एवं जीव जंतु विश्व के लगभग सभी क्षेत्रों में पाए जाते हैं, किंतु भूतल के सभी भागों में पर्यावरणीय परिस्थितियों में समानता नहीं पाई जाती है, इसी कारण जीवधारियों में स्थानिक विशेषताएं पाई जाती है। विभिन्न क्षेत्रों में जीवधारियों के वितरण, विकास एवं विशेषताओं में अंतर एवं विविधता पाई जाती है। भौगोलिक एवं जलवायविक कारकों का महत्वपूर्ण योगदान है। जैवीय एवं मानवीय कारक भी जीवधारियों को प्रभावित करता है, हालांकि मानवीय हस्तक्षेप के कारण स्थापित रूप से जीवधारियों, वनस्पति एवं जीवजंतुओं की पारिस्थितिकी प्रभावित होती है, लेकिन वर्तमान में यह एक प्रमुख कारक है।

वनस्पति एवं जंतुओं के वितरण एवं विभिन्न गांवों के तीन प्रमुख कारण है।

बाह्य पर्यावरण का प्रभाव

पर्यावरणीय कारकों में निम्न तीन कारक महत्वपूर्ण है।

  1. भौगोलिक या भौतिक कारक/Geographical or physical factors
  2. जलवायविक कारक/Climatic factors
  3. मानवीय कारक या जैविक कारक/Bio-tic Factors

(1) भौगोलिक कारको के अंतर्गत विविध कारक आते हैं, इनमें प्रमुख हैं।

स्थलाकृतिक विशेषताएं

पर्वत, मैदान, पठार, ज्वालामुखी, ढाल की दिशा, समुद्री तटवर्ती क्षेत्र, हिमाच्छादित क्षेत्र की विशिष्ट स्थितियां जीवधारियों के वितरण को प्रभावित करती है।

  •  जल की उपलब्धता
  •  मृदा का वितरण
  •  समुद्र तल से गहराई

(2) जलवायविक कारको के अंतर्गत कई कारक करते हैं इनमें प्रमुख हैं।

  •  तापमान का वितरण
  •  वर्षा की मात्रा (Amount of rain)
  •  आर्द्रता (Humidity)
  •  तुषारपात (Frost)
  •  तूफान एवं प्राकृतिक आपदाएं (Hurricanes and natural disasters)

(3) जैविकीय कारक/Bio-tic Factors

जैविकीय कारकों में पेड़-पौधे, वन्यजीव, मानव समुदाय भी वनस्पतियों एवं जंतुओं के वितरण को प्रभावित करते हैं। क्योंकि सभी जीवधारी अंतर संबंधित होते हैं, अतः इसमें एक का प्रभाव स्पष्टत: दूसरे जीवधारियों पर भी पड़ता है। जैसे वन्यजीव एवं वनों का होना परस्पर सहचर्य पर आधारित है। 

अर्थात अनुकूल नवीन स्थिति में वन्य जीवों का विकास अवश्य होगा। पुनः वनों की स्थिति या प्रकार के अनुरूप ही वहां जीवो का विकास होता है। अर्थात वनस्पति के प्रकार का प्रभाव जन्तु के प्रभाव पर पड़ता है। पुनः जीव-जंतुओं द्वारा वनों की घास इत्यादि का नाश भी किया जाता है। पुनः मानवीय हस्तक्षेप में वनों का विनाश, वन्य जीव-जंतुओं के शिकार से भी विनाश हो रहा है।

उत्परिवर्तन/Mutation

उत्परिवर्तन विशेष प्रकार के विकिरण एवं रसायनों के प्रभाव से उत्पन्न होते हैं। कुछ उत्परिवर्तन पर्यावरण द्वारा कर लिए जाते हैं जिससे जीवधारियों की विशिष्ट किस्म का विकास होता है। उत्परिवर्तन के क्रम में पर्यावरण के साथ सामंजस्य नहीं हो पाने के कारण कई जीवधारी विलुप्त या नष्ट हो जाते हैं।

जीवो का पुनः संयोजन/Reintegration of organisms

जीवो का पुनः संयोजन लैंगिक प्रजनन के द्वारा होता है, जिससे जीवधारियों की संख्या में वृद्धि होती है। लैंगिक प्रजनन के लिए भी प्रयुक्त वातावरण आवश्यक है।

स्पष्टत: जीवधारियों के वितरण को विभिन्न भौगोलिक, पर्यावरणीय एवं अनुवांशिक कारक प्रभावित करते हैं।

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