अफ्रीका का विस्तार 37 डिग्री उत्तरी अक्षांश से 35 डिग्री अक्षांश तक तथा 18 डिग्री पश्चिमी देशांतर से 51 डिग्री पूर्वी देशांतर तक है। इस प्रकार यह विश्व का एकमात्र महाद्वीप है, जिसका विस्तार सभी गोलार्ध में है। उत्तर से दक्षिण में अधिकतम लंबाई 8500 किमी तथा पूर्व से पश्चिम में अधिकतम चौड़ाई 7400 किमी है। अफ्रीका महाद्वीप का क्षेत्रफल 30,31,3000 वर्ग किमी है जो तुलनात्मक दृष्टि से विश्व का दूसरा बड़ा महाद्वीप है। अफ्रीका का अधिकतर भाग उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में पड़ता है और भूमध्य रेखा इसके लगभग मध्य से गुजरती है। अफ्रीका का दो तिहाई भाग उत्तरी तथा एक तिहाई भाग दक्षिणी गोलार्ध में पड़ता है। अफ्रीका का आकार षटभुजाकार है, और उत्तरी भाग लगभग चौड़ा है, जिसके मध्य से कर्क रेखा गुजरती है, जिसके दोनों ओर सहारा मरुस्थल है। यह विश्व का सबसे बड़ा मरुस्थल है।
अफ्रीका के दक्षिणी संकरे भाग से मकर रेखा गुजरती है, जिस पर कालाहारी मरुस्थल स्थित है। अफ्रीका में नीग्रिटो प्रजाति के लोगों का विकास हुआ था, जिनका आरंभिक स्थान सवाना था। यहां यूरोप से आने वाले का काकेशियन जाति को हमेटी तथा अरब वासियों को समेटी कहा गया। दास व्यापार की प्रथा अफ्रीका में प्रारंभ हुई थी। दासों के बाजार के प्रमुख केंद्र जंजीबार तथा पेम्बा था। वास्कोडिगामा 1497 ईस्वी में अफ्रीका के तट पर पहुंचा। इसने नेटाल की खोज की तथा मोम्बासा तट के साथ यात्रा करने के बाद भारत की ओर प्रस्थान किया। जेम्स ब्रूंस ने नील के उद्गम का पता लगाया तथा हाइट एवं नील के संगम की यात्रा की। अफ्रीका का नामकरण अफ्रीका की एक बार्गवक जनजाति फरीदी के नाम पर रखा गया, जो वर्तमान में ट्यूनीशिया में हैं। अफ्रीका का सबसे उत्तरी बिंदु केप रास सेन रोका ट्यूनीशिया 37 डिग्री 21 उत्तरी अक्षांश पर तथा दक्षिण बिंदु केप अगुलहस दक्षिण अफ्रीका है। अफ्रीका का सबसे बड़ा प्रायद्वीप सोमाली प्रायद्वीप है तथा मुख्य द्वीप मेडागास्कर है।
अफ्रीका का भौतिक स्वरूप
अफ्रीका विश्व का प्राचीनतम महाद्वीप पैंजिया का गोंडवाना लैंड का एक भाग है। अतः यहां विश्व की प्राचीनतम चट्टानें भी पाई जाती है। अफ्रीका में नवीनतम मोड़दार पर्वतों का क्षेत्र भी स्थित है, लेकिन यह सीमित क्षेत्र में पाए जाते हैं। यहां जलोढ़ मैदान की अपेक्षा नदी द्वारा पठारी देशों का निर्माण किया गया है। अफ्रीका का भौतिक स्वरूप विशेष प्रकार का है।
भू-आकृतिक दृष्टिकोण से अफ्रीका महाद्वीप के निम्नलिखित भाग हैं –
- नवीन मोड़दार पर्वतों का प्रदेश
- उच्च पठारो एवं प्राचीन पर्वतीय प्रदेश
- नदी बेसिन प्रदेश
- सहारा मरुस्थलीय प्रदेश
- तटवर्ती मैदानी प्रदेश
(1) नवीन मोड़दार पर्वतों का प्रदेश
अफ्रीका में उत्तरी क्षेत्रों में नवीन मोड़दार पर्वतमाला का विस्तार है, जिसे यहां एटलस कहा जाता है। एटलस यूरोप के आल्पस पर्वत का ही अफ्रीका में विस्तार है, अर्थात अल्पाइन पर्वतीकरण का ही अंग है। एटलस पर्वत स्पेन के सियरानेवादा पर्वत से एटलस पर्वत के रूप में अफ्रीका में भूमध्यसागरीय तट पर विस्तृत है। एटलस पर्वत की अन्य प्रमुख श्रेणियां हैं –
- ग्रेट एटलस की स्थिति रीफ एटलस के दक्षिण मोरक्को में विस्तृत है।
- एंटी एटलस पर्वत ग्रेट एटलस के समानांतर विस्तृत है।
- अल्जीरिया के उत्तर में शाटस पठार के दोनों और टेल एटलस एवं सहारा ऐटलस विस्तृत है।
(2) उच्च पठारो एवं प्राचीन पर्वतीय प्रदेश
पठारी प्रदेश एवं प्राचीन पर्वतीय प्रदेश पूर्वी एवं दक्षिणी अफ्रीका में है। अबीसीनिया का पठार पूर्वी अफ्रीका के इथोयोपिया तथा सोमाली में विस्तृत है। यहां दरार घाटी भी स्थित है जो दक्षिण में स्थित रुडोल्फ झील से प्रारंभ होती है। इस घाटी की उत्तरी पश्चिमी शाखा लाल सागर तक जाती है, इस दरार घाटी में स्टेकोनी, अवाया, अबूसा झीलें स्थित है। अबीसीनिया के पठार के अंतर्गत कोल्ला प्रदेश, वायनाडेगा प्रदेश तथा डेगा प्रदेश आता है। पूर्व अफ्रीकी पर्वत पठारक्रम प्रदेश में जांबेजी नदी के उत्तर में कीनिया तक के प्रदेश आते हैं, यह विषम उच्चावच का प्रदेश है जिसमें दोनों और ऊंचे उठे हुए भाग हैं। विक्टोरिया झील एक बेसिन से घिरा है।
भूमध्यरेखा पर कीनिया पर्वत तथा दक्षिणी में किलिमंजारो पर्वत स्थित है, जो पूर्वी पर्वतमाला का ही अंग है। दक्षिण अफ्रीकी पठार के अंतर्गत दक्षिण अफ्रीका के पठार, नेटाल बसूतों लैण्ड आदि के भाग आते हैं। दक्षिण अफ्रीकी पठार लगभग समतल पठार है, जिसमें कहीं-कहीं समतल शीर्ष वाली पहाड़ियां हैं, यह एक तस्तरीनुमा पठार है। दक्षिणी अफ्रीकी पठार चारों ओर से ऊंचे पर्वतों से घिरा है, जो समुद्रतल की ओर कगार बनाते हैं। पूर्व की ओर यह पठार स्टार्सवर्ग एवं ड्रकेन्सवर्ग पर्वतों से घिरा है। दक्षिण एवं पश्चिम में क्रमशः कोम्सवर्ग एवं कामीसवर्ग पर्वत है।
(3) नदी बेसिन प्रदेश
इसके अंतर्गत निम्न नदी बेसिन आते हैं।
जांबेजी नदी बेसिन प्रदेश :
जांबेजी हिंद महासागर के मोजांबिक चैनल में गिरती है। इसके पूर्व में शीरे नदी तथा पश्चिम में लोंगवे नदी प्रमुख है।
कांगो नदी बेसिन प्रदेश :
कांगो बेसिन के उत्तरी पश्चिमी सीमा पर कैमरून पर्वत है, तथा उत्तर-पूर्व में कांगो नील जल विभाजक के भाग है, पूर्व में टंगानिका झील तथा दक्षिण में कटंगा पर्वत तथा क्लोंगा पर्वत है। कांगो नदी या जैरे नदी अटलांटिक महासागर में अंगोला के पास गिरती है।
नाइजर नदी बेसिन प्रदेश :
नाइजर सहायक नदियों के साथ गिनी की खाड़ी में गिरती है। नाइजर बेसिन के दक्षिण में पूर्व में कैमरून पर्वत है, यह एक ज्वालामुखी पर्वत है। नाइजर बेसिन के उत्तर-पूर्व में पाउची पठार है। नाइजर बेसिन के ऊपरी प्रदेश में लाइबेरिया और सियरालियोन में फुटा जालोन का उच्च प्रदेश है। नाइजर नदी एक अर्ध-वृत्ताकार घाटी का निर्माण करती है।
नील नदी बेसिन प्रदेश :
नील नदी बेसिन प्रदेश विक्टोरिया झील से उत्तर में भूमध्य सागर तक विस्तृत है। नील नदी बेसिन के अंतर्गत विक्टोरिया का पठार है, जहां बुरुंडी उच्च प्रदेश से कगेरा नदी निकलती है तथा विक्टोरिया झील तथा अल्बर्ट झील से आगे बढ़ती है।
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