एशिया महाद्वीप | Asia Continent

एशिया महाद्वीप का सामान्य परिचय


एशिया महाद्वीप, विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप है, जिसमें विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या पाई जाती है। विश्व का क्षेत्रफल 14,50,80,000 1 किमी है, जिसमें से एशिया महाद्वीप का क्षेत्रफल 4,40,30,200 वर्ग किमी है। जो संपूर्ण विश्व के क्षेत्रफल का लगभग 33 प्रतिशत है। एशिया एवं यूरोप को सम्मिलित रूप से यूरेशिया कहते हैं। यूरेशिया विश्व का विशालतम स्थल खंड है। एशिया मानव जाति का जन्मस्थल (Cradle of Mankind) है। एशिया विश्व की प्राचीनतम सभ्यता का जन्मस्थल (Cradle of Human civilization) है। 5000 ईसा पूर्व तक इराक से दजला एवं फरात नदियों के मध्य के मेसोपोटामिया में मानव सभ्यता का सर्वप्रथम विकास हुआ था। एशिया की स्थिति पूर्वी गोलार्ध में है।

एशिया का अक्षांशीय विस्तार 10° दक्षिण अक्षांश से 80° उत्तरी अक्षांश तक तथा 35° पूर्वी देशांतर से 170° पूर्वी देशांतर तक है। उत्तर से दक्षिण की ओर अधिकतम लंबाई 8580 किमी एवं पूर्व से पश्चिम अधिकतम चौड़ाई 7720 किमी है। एशिया तीन ओर से समुद्र से तथा एक ओर से स्थल खंड यूरोप महाद्वीप से घीरा है। एशिया के उत्तर में आर्कटिक महासागर, दक्षिण में हिंद महासागर, पूर्व में प्रशांत महासागर स्थित है, पश्चिम में यूरोप तथा अफ्रीका महाद्वीप स्थित है।

 एशिया का समुद्र तट (Sea Coast) सामान्यतः कम कटा-फटा है और विशाल बंदरगाहों की कमी है। खाड़ियां भी कम है। कुछ प्रमुख खाड़ियों में फारस की खाड़ी, ओमान की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी, बंगाल की खाड़ी, मन्नार की खाड़ी प्रमुख हैं। एशिया में नवीन मोड़दार पर्वत हिमालय पर्वत श्रेणी और पामीर की गांठ से निकलने वाली कई प्रमुख सीढ़ियां है। एशिया महाद्वीप में अनेक ज्वालामुखी स्थित है। यहां का सर्वाधिक बड़ा ज्वालामुखी पर्वत ‘फ्यूजीयामा‘ जापान में स्थित है। यह जागृत ज्वालामुखी है। जापान के निवासी इस पर्वत की पूजा करते हैं। जावा द्वीप में माउंट ब्रोमो, फिलीपींस में माउंट ताल एवं मेयान, ईरान में कोह सुल्तान एवं देवबंद, म्यांमार का पोपा प्रमुख ज्वालामुखी है। एशिया में विश्व का सबसे ऊंचा स्थल माउंट एवरेस्ट 8,848 मीटर तथा विश्व का सबसे नीचा स्थल फिलीपींस द्वीप के पास मेरियाना ट्रेंच है, जो लगभग 11000 मीटर गहरा है। एशिया में प्राचीनतम भूखंड उत्तर में अंगारा लैंड तथा दक्षिण में गोंडवाना लैंड का भाग स्थित है। एशिया में विश्व का सर्वाधिक गर्म एवं ठंडा स्थल स्थित है। विश्व का सर्वाधिक गर्म स्थल जैकोबाबाद जहां औसतन तापमान हमेशा अधिक रहता है, जिसका अधिकतम तापमान लगभग 54.9°C है। विश्व का सबसे ठंडा स्थान बर्खोयनास्क (-68°C) साइबेरिया में स्थित है।

विश्व में सबसे अधिक एवं कम वर्षा वाला स्थान एशिया में स्थित है। विश्व का सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान मानिसराम भारत के मेघालय में है और सबसे कम वर्षा वाला स्थान अदन है। जिसकी वार्षिक वर्षा का औसत 5 सेंमी से कम है। एशिया में कृषि संसाधन, खनिज संसाधन, मानव संसाधन, पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। इसी कारण एशिया महाद्वीप को भविष्य का भंडार गृह (Store house of future) कहते हैं।

एशिया का धरातलीय स्वरूप


एशिया में विश्व के प्राचीनतम भूखंड अंगारा लैंड एवं गोंडवाना लैंड का विस्तृत भू-भाग है। एशिया का उत्तरी भाग अंगारा लैंड से दक्षिणी भाग गोंडवाना लैंड से निर्मित है। एशिया में नवीनतम मोड़दार पर्वत का विस्तृत क्षेत्र है, जो पामीर की गांठ से निकलती है। पामीर को संसार की छत (Roof of the World) कहा जाता है। पामीर की गांठ से पश्चिमी भाग में फैली दक्षिणी-पश्चिमी एशिया के पर्वत श्रेणियां हैं, जिनमें आर्मेनिया की गांठ की महत्वपूर्ण स्थिति है। यह पामीर की गांठ से निकलने वाले पर्वतों से जुड़ा है। पामीर की गांठ के उत्तर-पूर्व में अल्टाई पर्वत है। टर्शियरी पर्वत के अतिरिक्त नवीनतम जलोढ़ के मैदान जो प्लिस्टोसीन एवं होलोसीन युग में निर्मित हुई है, पर्याप्त विस्तृत है। इसका विस्तार नदी घाटियों में है। एशिया के धरातलीय स्वरूप को उच्चावच की दृष्टि से निम्न भागों में बांटते हैं।

  1. मध्यवर्ती पर्वत पठार क्रम,
  2. नदियों का मैदान,
  3. दक्षिणी  प्रदीपीय पठार,
  4. उत्तर की निचली भूमि,
  5. द्वीप समूह मालाएं

मध्यवर्ती पर्वत पठार क्रम

एशिया के 20 प्रतिशत भाग पर लगभग 78 लाख वर्ग किमी क्षेत्र पर मध्यवर्ती पर्वत श्रेणियां फैली है। इन पर्वत श्रेणियों का केंद्र पामीर की गांठ है, और ये पामीर की गांठ से ही निकली है। उत्तर-पश्चिम की ओर हिंदूकुश तथा एल्बुर्ज पर्वत है, जोकि गांठ पर समाप्त होते हैं। दक्षिण की ओर गिरगिट, सुलेमान, किरधर, जैग्रोस पर्वत पश्चिम श्रेणियां है। जैग्रोस पश्चिम में आर्मेनिया की गांठ पर समाप्त होता है। एलबुर्ज एवं जैग्रोस के मध्य में ‘ईरान का पठार‘ है। आर्मीनिया की गांठ (टर्की) से पश्चिम की ओर पौण्टिक तथा टॉरस पर्वत श्रेणी है। इसमें मध्य एशिया माइनर का पठार है, इसे ‘अनातोलिया का पठार’ भी कहते हैं। पामीर की गांठ के दक्षिण-पूर्व की ओर हिमालय पर्वत श्रेणियां हैं, जिसकी माउंट एवरेस्ट विश्व की सबसे ऊंची चोटी है। हिमालय पर्वत श्रेणियों का सर्वाधिक विस्तार भारत में है। भारत में पूर्व की ओर नागा, गारो, खासी, जयंतिया, मिशमी तथा पटकोई है। म्यांमार में हिमालय की मुख्य शाखाएं अराकान योमा, पीगुयोमा तानाशिरियम योमा है। पामीर की गांठ से चीन की ओर दक्षिण-पूर्व में किनलुनशान, बायानकारा, सिनलिंग शान पर्वत है। उत्तर पूर्व की ओर अलाताईनताग, नानशान तथा खिंगन प्रमुख है।

हिमालय तथा कुनलुन पर्वत श्रेणियों के मध्य तिब्बत का पठार स्थित है। यह विश्व का सर्वोच्च पठार है, जिसकी ऊंचाई औसतन 5000 मीटर है। पामीर की गांठ से उत्तर-पूर्व में ही रूस तक तियानशान (चीन), अल्टाई, पावलानोय तथा स्टेनोबाय (रूस) विस्तृत है। रूस में वर्खोयांस्क, कोलिमा, अनादिर तथा कमचटका पर्वत है। तियानशान तथा कुनकुन पर्वत के मध्य तारिम वेसिन (तकलामकान) स्थित है।

नदियों का मैदान

एशिया में अनेक नदियों का मैदान है, जो अत्यंत उपजाऊ मैदान है। यहीं जनसंख्या का घनत्व सबसे अधिक है। दजला फरात का मैदान पाकिस्तान इराक में है। इसे मेसोपोटामिया का मैदान भी कहते हैं। यहां बेबीलोन की सभ्यता का विकास हुआ था। सिंधु-गंगा का मैदान भारत एवं पाकिस्तान में विस्तृत है। सिंधु के मैदान का अधिकांश भाग पाकिस्तान में जबकि गंगा के मैदान का अधिकांश भाग भारत में और कुछ भाग बांग्लादेश में भी है। यह मैदान कृषि के लिए महत्वपूर्ण है। इरावदी का मैदान म्यांमार में विस्तृत है, जो चावल की खेती के लिए उपयुक्त है। मीनाम नदी का मैदान थाईलैंड में, मीकांग नदी का मैदान कंबोडिया एवं वियतनाम, थाईलैंड, लाओस (हिंदचीन) आदि देशों में फैला है। 

सिक्यांग नदी का मैदान दक्षिणी चीन में विस्तृत है जिसमें चावल एवं चाय की कृषि की जाती है। यांगटिसीक्यांग का मैदान मध्य चीन में है। इसका रेड बेसिन का मैदानी भाग अत्यंत उपजाऊ है। यह क्षेत्र गेहूं तथा चावल की कृषि के लिए महत्वपूर्ण है। यह चीन का सबसे घनी आबादी वाला क्षेत्र है। ह्वांगहो का मैदान उत्तरी चीन में स्थित है। यह लोयस के मैदान से लायी गयी मिट्टी से बना है। प्रतिवर्ष मार्ग बदलने के कारण यह ‘चीन का शोक’ कहलाती है। यह गेहूं की कृषि के लिए महत्वपूर्ण है।

दक्षिणी प्रायद्वीप पठार

एशिया में 3 प्रमुख पठार है।

  1. अरब का प्रायद्वीपीय पठार – यह प्राचीनतम पठार है और गोंडवाना लैण्ड का हिस्सा है। पठार की सामान्य औसत ऊंचाई 2000 मीटर है। यहां रूबअलखाली, लूट, नैफूद, दस्त-ए-कबीर जैसे मरुस्थल है।
  2. भारत का प्रायद्वीपीय पठार – यह गोंडवाना भूमि का ही अंग है। यहां दक्कन का पठार, ज्वालामुखी पठार है। यहां कई पर्वतीय श्रेणियां अरावली, विंध्ययन, सतपुडा, पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट पर्वत है। मालवा का पठार, काठियावाड़ का पठार, रायलसीमा का पठार, तेलंगाना का पठार, मेवाड़ का पठार, बुंदेलखंड का पठार मुख्य है। पठार की औसत ऊंचाई 500 से 700 मीटर है।
  3. हिंदचीन का पठार – दक्षिण-पूर्वी एशिया में विस्तृत है। यह कठोर चट्टानों से निर्मित है। इसकी औसत ऊंचाई 1200 मीटर है।

उत्तर की निचली भूमि

यह साइबेरिया प्रदेश के ऊपरी भाग पर त्रिभुजाकार मैदान के रूप में विस्तृत है। यह निचला मैदान है जो ओब, येनिसी तथा लीना नदियों के बेसिनों से बना है। इसका ढाल उत्तर में आर्कटिक सागर की ओर है, उत्तरी भाग में जलजमाव से दलदल का निर्माण हो जाता है। नदियों के मुहाने तथा निचले भागों में बर्फ जम जाने से नदियों का अपवाह रुक जाता है।

द्वीप समूह मालाएं

प्रशांत महासागर एवं हिंद महासागर में अनेक द्वीप स्थित है। इसमें प्रशांत महासागर में सर्वाधिक द्वीप हैं। ये सभी द्वीप टर्शियरी काल में निर्मित मोड़दार पर्वत के रूप में है। यहां ज्वालामुखी पर्वत की स्थिति है और कई जागृत ज्वालामुखी है। प्रमुख द्वीपों में क्यूराइल, होकैडो, होंशू, क्यूशू, शिकोकू, ताईवान, लुजोन, मिडनाओं, नग्रोस, सैलीबीज, बोर्नियो, जावा, मदुरा व ईरियन सिंगापुर है।

धरातलीय संरचना

एशिया का उत्तरी भूखंड प्राचीनतम भूखंड पैंजिया का उत्तरी भाग है, जो पैंजिया के टूटने से बना है। यह अंगारा भूमि का अंग है। उत्तरी प्राचीनतम भूखंड का पश्चिमी भाग रूसी चबूतरा कहलाता है। इसकी स्थिति यूरोप में है। एशिया में अंगारा भूमि, चीनी मैसिफ, सारडिनियन मैसिफ है। एशिया के मध्यवर्ती मोड़दार पर्वतों की उत्पत्ति टेथिस सागर से हुई है।

एशिया का अपवाह तंत्र एवं नदियां


एशिया के अपवाह में प्राचीन एवं नवीन दोनों प्रकार के अपवाह मिलते हैं। उत्तरी प्राचीनतम भू-भाग में ओब, यनीसी, लीना, इन्द्रगिरिका एवं सहायक नदियां एशिया की प्राचीनतम नदियां हैं।

एशिया की नदियों को निम्न प्रदेश में बांटते हैं।

  1. प्रशांत महासागरीय अपवाह क्षेत्र – इसके अंतर्गत प्रशांत महासागर में गिरने वाली नदियां सम्मिलित हैं। यहां की नदियों में आमूर, ह्वांग हो, यांगटिसीक्यांग, सीक्यांग, मीकांग, मीनाम, लाल नदी (रेड नदी) मुख्य है। ह्वांग हो की सहायक नदियां – वीन्हों, फेर्न-हो आदि है। यांगटिसीक्यांग की सहायक नदियां – हान, भिन, कान, चार्जिग तथा सियांग मुख्य है।
  2. हिंद महासागरीय अपवाह क्षेत्र – इसके अंतर्गत हिंद महासागर में गिरने वाली नदियां हैं। प्रमुख नदियां जो हिंद महासागर में गिरती हैं – दजला, फरात, सिंधु, गंगा, ब्रह्मापुत्र, इरावदी, सालवीन, चिन्दविन, गोदावरी, नर्मदा, कृष्णा, कावेरी, महानदी तथा ताप्ती प्रमुख है।
  3. आर्कटिक महासागर अपवाह क्षेत्र  – एशिया महाद्वीप के उत्तरी भाग में स्थित सबसे बड़ा अपवाह क्षेत्र है। यहां की नदियां विशाल उत्तरी मैदानी भागों में बहती हुई उत्तर में आर्कटिक सागर में गिरती हैं। यहां पश्चिम से पूर्व में ओब नदी, यनीसी तथा लीना, इंद्रिगिरीका, कोलिमा तथा यनादिर प्रमुख है। यहां की नदियां वृक्षीय अपवाह प्रणाली की है।
  4. आंतरिक अपवाह क्षेत्र – यह क्षेत्र पश्चिम में आनातोलिया के पठार के पूर्व से मंचूरिया तक फैला हुआ है। यहां की नदियां आंतरिक भागों में आंतरिक झीलों या सागर में गिरती है। अतः यहां आंतरिक अपवाह पाया जाता है। यहां प्रमुख नदियां आमूदारिया और सरदारिया है, जो अरब सागर में गिरती है। इल, लूं नदियां बाल्कश झील में गिरती हैं। तथा तारिम, खोतान नदियां लौपनार झील में गिरती हैं।
  5. भूमध्यसागरीय अपवाह क्षेत्र – एशिया के दक्षिणी-पश्चिमी भाग से निकलने वाली नदियां भूमध्य सागर में गिरती है। टर्की से निकलने वाली ओरोनटेस नदी भूमध्य सागर में गिरती है।

<<< Read More >>>
Posted in Uncategorized