जनसंख्या संक्रमण का मॉडल | What is Population Transition model

जनसंख्या संक्रमण का मॉडल मूलतः थॉमसन एवं नौटेस्टीन द्वारा 1929 एवं 1945 में दिया गया। यह मॉडल 18वीं शताब्दी से यूरोप में चली आ रही जनसंख्या वृद्धि की प्रवृतियां पर आधारित था। हालांकि यह मॉडल मुख्यतः पश्चिमी यूरोप के लिए दिया गया था, लेकिन सीमित परिवर्तन एवं संसाधनों के साथ परिवर्तन में विश्व के सभी विकासशील एवं विकसित देशों के संबंध में भी लागू होता है।

जनसंख्या संक्रमण का सिद्धांत (Population Transition Theory) इस मान्यता पर आधारित है कि आर्थिक, सामाजिक विकास की प्रक्रिया को तीव्र करके कोई भी देश जनसंख्या संक्रमण की एक अवस्था से दूसरे अवस्था में पहुंच सकता है, अर्थात कोई देश पूर्व औद्योगिक अवस्था एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था से नगरीय अर्थव्यवस्था में प्रवेश कर सकता है।

यह मॉडल अल्प विकसित, विकासशील एवं विकसित देशों की आर्थिक, सामाजिक स्थितियों में भिन्नता के आधार पर जनसंख्या के संक्रमण की विभिन्न अवस्थाओं को निर्धारित करती है। क्योंकि विश्व के विभिन्न देशों में एवं क्षेत्र में आर्थिक, सामाजिक स्थिति में भिन्नता पाई जाती है। स्पष्ट है जनांकिकी विशेषताओं में भिन्नता पाई जाती है। इन विभिन्नताओं का करण जन्मदर, मृत्युदर एवं प्राकृतिक वृद्धि दर की स्थितियों में अंतर होना है। इन्हीं आधारों पर जनसंख्या, संक्रमण मॉडल दिया गया है।

थॉमसन एवं नौटेस्टीन ने मूलतः तीन अवस्थाओं वाले मॉडल को स्वीकार किया था, जिसे वर्तमान में संशोधनों के साथ चार अवस्थाओं में बांटा जाता है। हालांकि नवीन प्रवृत्ति में पांच अवस्था की भी कल्पना की गई है।

जनसंख्या संक्रमण का सिद्धांत मुख्यतः निम्न मान्यताओं पर आधारित है।

  1. सर्वप्रथम मृत्यु दर में ह्रास (Decline in death rate) की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है।
  2. क्रमशः मृत्यु दर के अनुरूप (Corresponding to the death rate) ही जन्म दर में भी कमी आनी शुरू होती है।
  3. जन्मदर, मृत्युदर एवं प्राकृतिक वृद्धि दर का संबंध आर्थिक, सामाजिक विकास की प्रक्रिया से है।

उपरोक्त मान्यताओं के अनुरूप जनसंख्या संक्रमण की चार अवस्थाएं पाई जाती हैं।

  1. उच्च स्थायी अवस्था (High Standing),
  2. प्रारंभिक फैलाव या विस्फोट की अवस्था (Initial dispersion or explosion stage),
  3. उत्तरार्ध में वृद्धि की अवस्था (Late stage of growth),
  4. निम्न स्थायी अवस्था (Low Standing)

उच्च स्थायी अवस्था :  इस अवस्था में जनसंख्या में लगभग स्थायित्व पाया जाता है। इसका कारण उच्च जन्म दर और मृत्यु दर है। सामान्यतः जन्म दर और मृत्यु दर 35/1000‌ से अधिक होता है। अतः जनसंख्या में प्राकृतिक वृद्धि नहीं हो पाती। यह अवस्था आर्थिक, सामाजिक दृष्टि से जुड़ी हुई एवं अल्प विकसित अवस्था है। इसे पूर्व औद्योगिक अवस्था भी कहा जाता है।

पारंपरिक कृषि, पारंपरिक व अर्थव्यवस्था तथा समाज में रूढ़िवादिता, अशिक्षा, पौराणिक मान्यताएं पाई जाती हैं। अतः समाज आर्थिक और सामाजिक दोनों ही दृष्टिकोण से पिछड़ी हुई अवस्था में रहता है। 18वीं शताब्दी के प्रारंभ में यूरोप इसी अवस्था में था। भारत और चीन 1921 तक इसी अवस्था में थे। भारत में 1911 से 1921 के मध्य जनसंख्या में कमी आई थी और 1931 तक भारत में जनसंख्या में वृद्धि सामान्य रूप से हुई थी।

वर्तमान में भूमंडलीकरण और वैश्विक अर्थव्यवस्था (Globalization & the Global Economy) के कारण इस अवस्था में पूर्णत: किसी भी देश का होना स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि सीमित रूप से विकास की प्रक्रियाएं विश्व के प्रत्येक देशों में प्रारंभ हो चुकी हैं। इसके बावजूद विषुवत रेखीय अफ्रीका के कुछ देश एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया के कुछ द्विपीय क्षेत्रों में प्रथम अवस्था की प्रवृतियां पाई जाती है।

जनसंख्या वृद्धि या विस्फोट की अवस्था :  जनसंख्या संक्रमण की दूसरी अवस्था (Second stage of Population transition) मुख्यत: विकासशील देशों की अवस्था है। इस अवस्था में आर्थिक विकास की प्रक्रियाओं के प्रारंभ होने से जीवन स्तर में सुधार होता है। स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं में वृद्धि होने से मृत्युदर में कमी आनी शुरू होती है। लेकिन सामाजिक दृष्टिकोण से पिछड़ेपन की अवस्था बनी रहती है अर्थात अशिक्षा, पारंपरिक मान्यताओं धर्म का प्रभाव आदि कारणों से जन्मदर में नियंत्रण स्थापित नहीं हो पाता। स्पष्टत: जन्मदर (Birth Rate) तो उच्च बनी रहती है, लेकिन मृत्यु दर (Death Rate) में कमी आ जाती है। इस कारण इस अवस्था में जनसंख्या में तीव्र वृद्धि होती है। जनसंख्या विस्फोट की अवस्था उत्पन्न होती है। वर्तमान में दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्वी एशिया, अफ्रीकी देश,  लैटिन अमेरिका देश इस अवस्था में है। भारत 1951 से ही इस अवस्था में बना हुआ है। हालांकि जनगणना 2001 के अनुसार, भारत तृतीय चरण में प्रवेश करने वाला है। मध्य पूर्व के देश या जो तेल उत्पादक पश्चिम एशिया के देश है। आर्थिक दृष्टि से विकसित अवस्था में है, लेकिन सामाजिक दृष्टिकोण से पिछड़ेपन (Back wardness) के कारण दूसरी अवस्था में ही बने हुए हैं।

क्लर्क महोदय, ने इन देशों में जनसंख्या वृद्धि का प्रमुख कारण धर्म के प्रभाव को माना है। यह स्पष्ट करता है कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए आर्थिक और सामाजिक दोनों प्रक्रियाओं को तीव्र करना आवश्यक है। इस अवस्था में जन्म दर सामान्यतः 35-40 बनी हुई है लेकिन मृत्यु दर लगभग 20/1000 तक हो जाती है।

उत्तरार्ध में वृद्धि की अवस्था :  यह अवस्था नवीन विकसित देशों की अवस्था है। औद्योगिक वृद्धि नगरीयकरण (Industrial Growth Urbanization) एवं सामाजिक क्षेत्रों में भी विकास की प्रक्रिया तीव्र होने के कारण जन्म दर में भी कमी आनी शुरू होती है। जबकि मृत्यु दर नियंत्रित हो जाती है। स्पष्टत: जनसंख्या की विस्फोटक प्रवृत्ति में कमी आने लगती है और जनसंख्या नियंत्रण (Population Control) प्रारंभ हो जाता है। इस अवस्था में आर्थिक, सामाजिक दृष्टी का स्पष्ट प्रभाव जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि दर पर पड़ता है। इस अवस्था में जन्मदर (Birth Rate) सामान्यतः 20/1000 एवं मृत्यु दर 10/1000 के लगभग रहती है।

वर्तमान में दक्षिणी यूरोप, पूर्वी यूरोपीय देश, इजराइल, उत्तर एवं दक्षिण कोरिया, ताइवान, चीन इसी अवस्था में है। इसमें चीन एक अपवाद है। क्योंकि यह आर्थिक, सामाजिक दृष्टि से विकासशील देश है। लेकिन जनसंख्या नियंत्रण के कठोर एवं राजनीतिक प्रतिबद्धता (Commitment) के कारण जनसंख्या संक्रमण के तीसरी अवस्था (Third stage of Population transition) में स्थित है। हालांकि यह विश्व का जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा देश है।

चीन के मॉडल का उपयोग जनसंख्या नियंत्रण के लिए किया जा सकता है। हालांकि इस मॉडल का उपयोग किसी भी देश या क्षेत्र के राजनीतिक एवं सामाजिक स्थिति पर निर्भर करता है।
निम्न स्थायी अवस्था :  यह अवस्था पूर्णतः विकसित देशों की अवस्था है, यहां तीव्र औद्योगिकरण, नगरीकरण, विकसित अर्थव्यवस्था, उत्साह, क्षमता एवं उच्च सामाजिक स्थिति पाई जाती है। अतः जन्मदर एवं मृत्युदर दोनों नियंत्रित हो जाते हैं। सामान्यतः जन्मदर और मृत्युदर 10 /1000 से कम होती है। अतः जनसंख्या में स्थायित्व आ जाता है। पश्चिमी यूरोप, यूएसए, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जापान, न्यूजीलैंड आदि सभी पूर्ण विकसित देश इसी अवस्था में है।

जनसंख्या संक्रमण मॉडल के उपरोक्त अवस्था में यह स्पष्ट होता है कि कोई भी देश जनसंख्या संक्रमण के एक अवस्था से दूसरे अवस्था में प्रवेश कर सकता है। अर्थात इस मॉडल का प्रयोग जनसंख्या नियंत्रण के लिए किया जा सकता है। जनसंख्या नियंत्रण के उपायों एवं आर्थिक, सामाजिक प्रक्रिया को तीव्र करके जनसंख्या संक्रमण के उच्च स्थायी अवस्था से निम्न स्थायी अवस्था में प्रवेश किया जा सकता है।

इस मॉडल का उपयोग जनसंख्या विस्फोटक देशों अर्थात विकासशील देशों द्वारा एक टूल या औजार की तरह किया जा सकता है। यह मॉडल आर्थिक, सामाजिक विकास की गति को तीव्र करने के लिए प्रेरित करने के साथ  ही जनसंख्या नियंत्रण के व्यवहारिक उपायों पर भी बल देता है। अतः वर्तमान समय में भी यह मॉडल अत्यंत व्यावहारिक एवं उपयोगी है।

वर्तमान समय में इस मॉडल में एक नवीन अवस्था को भी स्वीकार किया गया है। निम्न स्थायी अवस्था के बाद कई विकसित देशों में जनसंख्या में ऋणात्मक जनसंख्या वृद्धि (Negative Population Growth) की प्रवृत्ति उत्पन्न हो गई है, अर्थात जनसंख्या में कमी आने लगी है। इस अवस्था को क्लर्क महोदय ने प्रजाति विनाश की अवस्था कहा है। ऐसे विकसित देशों को जनसंख्या वृद्धि की नीति बनाने को प्रेरित किया है और चेतावनी दी है कि यदि जनसंख्या वृद्धि में नकारात्मक वृद्धि बनी रही तो यूरोपीय मूल की जनसंख्या का विनाश हो जाएगा। 

यह अवस्था पूर्णतः भौतिकवादी (Atheist) एवं अति आधुनिक संस्कृति की देन है। इसका मुख्य कारण शादी जैसी संस्थाओं के प्रति निराशा, परिवार का टूटना और निजी जीवन को सर्वाधिक महत्व देना है। एक नवीन प्रवृत्ति के अंतर्गत समलैंगिकता एवं समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की शुरुआत हुई है तो स्पष्ट रूप से जनसंख्या वृद्धि दर पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा। 

इस अवस्था की कल्पना थाम्वसन एवं नौटेस्टीन ने नहीं की थी। हालांकि जनसंख्या संक्रमण की कुछ नवीन प्रवृतियां भी विकसित हुई, लेकिन विश्व के विभिन्न देशों के जनांकिकी का स्वरूप जनसंख्या संक्रमण के मॉडल के अनुरूप ही बना हुआ है। इसका एक प्रमुख उदाहरण कुछ विकसित देशों द्वारा अपनाई जाने वाली जनसंख्या प्रोत्साहन की नीतियां हैं।

उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट होता है कि जनसंख्या संक्रमण का मॉडल विकसित देशों के साथ ही विकासशील देश पर भी लागू होता है।

Marx's Theory of Population

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