महासागरीय संसाधन | समुद्री संसाधन | सागरीय संसाधन

पृथ्वी के लगभग 71 प्रतिशत भाग पर महासागर का फैलाव है, जिसकी औसत गहराई 3800 मीटर है। समुद्री भाग में विभिन्न प्रकार के खनिज तथा जैव संसाधन पाए जाते हैं। साथ ही समुद्र एक प्रमुख
वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत भी है। विभिन्न संसाधनों की उपलब्धता के साथ ही समुद्र का व्यापक पर्यावरणीय महत्व तथा ये पृथ्वी की जलवायु तथा वायुमंडल को नियंत्रित करता है।

भौगोलिक वितरण की दृष्टि से विश्व के संसाधनों को महाद्वीपीय संसाधन तथा महासागरीय संसाधनों में बांटते हैं। इन दोनों में महाद्वीपीय संसाधन का दोहन व्यापक रूप से होता रहा है। फलत: इनके समाप्ति होने की समस्या सामने आ रही है। ऐसे में वैकल्पिक संसाधनों के रूप में समुद्री संसाधनों के विकास के लिए विश्व स्तरीय प्रयास किए जा रहे हैं, जोकि समुद्र में संसाधनों की विविधता है। अतः वर्तमान में समुद्री संसाधनों पर पर्याप्त बल दिया जा रहा है।

समुद्री संसाधनों के उपयोग से संबंधित विधि


समुद्री संसाधनों के दोहन एवं उपयोग के लिए 1982 से संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतरराष्ट्रीय समुद्र कानून की घोषणा की गई तथा समुद्री क्षेत्र को तीन भागों में बांटा गया।

  1. क्षेत्रिय सागर (Territorial sea) या अधिकार वाले क्षेत्र :  समुद्र तट से 12 समुद्री मील तक, यह आधार रेखा है।
  2. अनन्य आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone) : आधार रेखा से 200 समुद्री मील तक
  3. समुद्र तल का अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र या उच्च सागर (High sea) : अनन्य आर्थिक क्षेत्र के आगे

सभी तटीय देशों को अपने संलग्न आर्थिक क्षेत्र (EEZ – Exclusive Economic Zone) की सीमा में आने वाले सभी संसाधनों का अन्वेषण तथा दोहन करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है। अन्य राष्ट्र EEZ में कोई आर्थिक गतिविधियां नहीं कर सकता, लेकिन परिवहन के लिए जलयानों के मार्ग, केबल बिछाना तथा हवाई मार्गों का उपयोग कर सकता है। अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रों के संसाधन को मानवता की सामूहिक विरासत माना जाता है, जिसके उपयोग के लिए UNO के अंतर्गत नीति बनाई गई है। इसका उपयोग कोई भी देश नहीं कर सकता तथा केवल समुद्री मार्ग परिवर्तन और अनुसंधान कार्य के लिए किया जा सकता है। यदि दो देशों के मध्य 200 समुद्री मील (320 किमी) से दूरी कम है तो मध्य में विभाजक रेखा निर्धारित की जा सकती है।

समुद्री संसाधनों का वर्गीकरण : समुद्री संसाधनों को 3 भागो में बांटते हैं।

  1. जैव संसाधन : इसमें मत्स्य, शैवाल, मैंग्रोव, प्रवालभित्ति, अन्य खाद्य जीव एवं वनस्पतियां आते हैं।
  2. अजैव संसाधन :  बहुधात्विक, खनिज पिंड, पेट्रोलियम, गैस, नमक, प्लेसर, गैस हाइड्रेट आदि।
  3. ऊर्जा संसाधन : ज्वारीय, तरंग तथा OTEC (Ocean Thermal Energy Conversion) उर्जा आदि।

(OTEC : महासागर तापीय ऊर्जा रूपांतरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जो गहरे ठंडे समुद्र के पानी और गर्म उष्णकटिबंधीय सतह के पानी के बीच तापमान अंतर का उपयोग करके बिजली का उत्पादन कर सकती है। ओटीईसी संयंत्र बिजली चक्र चलाने और बिजली पैदा करने के लिए बड़ी मात्रा में गहरे ठंडे समुद्री जल और सतही समुद्री जल को पंप करते हैं।)

जैवीय समुद्री संसाधन


समुद्री क्षेत्र में विविध प्रकार की मछलियां तथा विभिन्न जीव-जंतु एवं वनस्पतियां पाई जाती हैं। जिनका उपयोग भोजन, औषधियों का निर्माण, श्रृंगार प्रसाधन का निर्माण जैसे कार्यों में किया जाता है।

हाल ही में, मछली वाले स्थान का पता लगाने के लिए ध्वनिक सर्वेक्षण का प्रयोग किया जा रहा है। भारत में भी 70 मीटर से अधिक गहराई से आगे समुद्री सजीव संसाधनों का अनुमान लगाने के लिए एक बहुविधात्मक एवं बहुसंस्थापक कार्यक्रम आरंभ किया जाता है।
पृथ्वी के जीव-जंतु तथा वनस्पति प्रजाति की लगभग 30% प्रजातियां समुद्र में पायी जाती है। समुद्री वनस्पतियों का उपयोग भोजन, जंतुओं का चारा, औषधियों का निर्माण, उर्वरक, श्रृंगार, प्रसाधन, रंजको का निर्माण इत्यादि में किया जा रहा है। इसके अलावा कुछ महत्वपूर्ण समुद्री वनस्पतियों में आरेम, बलेडररैक, डलस, हाइजिकी, कैल्प, कोम्बू, नोरी तथा बाकेम है।

मैंग्रोव वनस्पतियां जो तटवर्ती जलीय प्रभाव के क्षेत्र में पाई जाने वाली एक विशिष्ट वनस्पति है, जो पर्याप्त संसाधनात्मक महत्व रखती है। भारत में पूर्वी तटीय प्रदेश, सुंदरवन, कच्छ का क्षेत्र, अंडमान निकोबार एवं अन्य तटीय प्रदेशों में भी मैंग्रोव वनस्पति पाई जाती हैं जो समुद्री तूफानों तथा सुनामी के प्रभाव को कम करती हैं तथा रक्षा करती हैं। प्रवाल भित्तियां कैल्शियम युक्त समुद्री जीवो के अवशेषों से निर्मित समुद्री संरचना एवं विशिष्ट स्थलाकृतियां हैं। प्रवाल भित्तियां उथले उष्णकटिबंधीय समुद्र में परिवर्तनशील, रंगीन एवं मनमोहक पारितंत्र का निर्माण करती हैं। अतः इसका पर्याप्त पर्यावरणीय महत्व है तथा यहां पर्याप्त जैवविविधता पाई जाती है। प्रशांत महासागर में सर्वाधिक प्रवाल भित्तियां पाई जाती हैं।

अजैव समुद्री संसाधन


अजैव समुद्री संसाधनों में बहु धात्विक पिंडो से विभिन्न खनिज पेट्रोलियम, गैस, हाइड्रेट, प्लेसर, फास्फोराइट व नमक जैसे पदार्थ प्राप्त किए जाते हैं। समुद्र तल में बहुधात्विक पिंड बहुलता से पाए जाते हैं। इन धात्विक पिंडो में मैगनीज, लोहा, निकल, तांबा, कोबाल्ट जैसी महत्वपूर्ण धातुएं पाए जाते हैं।

हिंद महासागर में भी बहुधात्विक पिंड के व्यापक भंडार हैं। भारत को संयुक्त राष्ट्र के द्वारा मध्य हिंद महासागर में 1.5 लाख वर्ग किमी के क्षेत्र में बहुधात्विक पिंडों का अन्वेषण एवं अनुसंधान करने के लिए 1987 ईस्वी में अनुमति दी थी। भारत ने सर्वेक्षण करके आर्थिक क्षेत्र के 75000 वर्ग किमी क्षेत्र में 95 लाख टन तांबा, कोबाल्ट, निकल आदि संशोधनों का पता किया है। इसके अतिरिक्त भूमिगत ज्वालामुखी क्षेत्रों तथा मध्य महासागरीय कटक के सागरीय क्षेत्रों के दरारों में भूमिगत स्रोत से लोहा, मैग्नीज, तांबा, निकल, जैसी धातुएं जमी हुई पाई जाती हैं। धातुयुक्त तलछट के विशाल भंडार लाल सागर में है।

महासागरीय तलछट क्षेत्र, तेल एवं प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार हैं। जब मृत सूक्ष्म जीवाणुओं के कार्बनिक पदार्थ समुद्र तल पर मिट्टी के नीचे दब जाते हैं तो तेल एवं प्राकृतिक गैस का निर्माण होता है। अत्यधिक गहराई में उच्च तापमान एवं दबाव के कारण यह कार्बनिक पदार्थ तेल एवं प्राकृतिक गैस में बदल जाता है। विश्व के अधिकांश तेल एवं प्राकृतिक गैस के भंडार समुद्र तटीय क्षेत्रों में ही है।

गैस हाइड्रेट, यह एक नवीन खनिज भंडार है, जिसका पता हाल ही में लगा है। कम तापमान एवं उच्च दबाव पर प्राकृतिक गैस जल के अणुओं के साथ मिलकर गैस हाइड्रेट बन जाता है। यह खनिज भंडार सागरीय तलछटों में पाई जाती है। एक घन मीटर गैस हाइड्रेट से अनुमानित 164 घन मीटर प्राकृतिक गैस प्राप्त होती हैप्लेसर नदियों द्वारा लाए गए खनिज है जो तटरेखा से कुछ दूर पर घनत्व के अनुसार छंट-छंटकर एकत्रित होते हैं। ऐसे खनिजों में सोना, टिन, थोरियम व लोहा आदि पाए जाते हैं। भारत में केरल, महाराष्ट्र, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु के तटीय क्षेत्र में विशाल प्लेसर खनिज के भंडार पाए जाते हैं। नमक की बात करते हैं तो यह मनुष्य द्वारा उपयोग में लाए जाने वाला पदार्थ समुद्री जल से प्राप्त होता है।

ऊर्जा संसाधन


गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोतों में समुद्री ऊर्जा एक प्रमुख ऊर्जा संसाधन है। क्योंकि विशाल समुद्री क्षेत्र ऊर्जा के असीमित संसाधन उपलब्ध कराने के साथ ही पर्यावरणीय दृष्टि से अनुकूल हैं। अतः इसकी उपयोगिता एवं विकास का कार्य किया जा रहा है।
समुद्री ऊर्जा संसाधनों को 3 वर्ग में बांटते हैं।

  1. समुद्री तापीय ऊर्जा
  2. तरंग ऊर्जा
  3. ज्वारीय ऊर्जा
  • समुद्री तापीय ऊर्जा : इसका उत्पादन समुद्री जल के विभिन्न परतों के तापीय अंतर का उपयोग करके ऊर्जा उत्पादन में किया जाता है। इस प्रक्रिया से समुद्री जल में गति उत्पन्न कर टरबाइन को चलाकर विद्युत ऊर्जा उत्पन्न की जाती है। भारत में चेन्नई के पास OTEC का संयंत्र लगाया गया है।
  • तरंग उर्जा : इसमें समुद्री तरंगों का उपयोग कर टरबाइन को चलाकर विद्युत ऊर्जा उत्पन्न की जाती है। केरल के विझिंगम में तरंग ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया गया है।
  • ज्वारीय ऊर्जा : इसका उत्पादन ज्वारीय प्रभाव वाले क्षेत्रों में ज्वारीय जल के प्रवाह के उपयोग द्वारा किया जाता है। भारत में कच्छ की खाड़ी, खंभात की खाड़ी एवं सुंदरवन के डेल्टा के क्षेत्र में ज्वारीय ऊर्जा की व्यापक संभावना है। प्रायोगिक स्तर पर सुंदरबन क्षेत्र में उत्पादन किया जा रहा है। स्पष्ट रूप से समुद्र में विभिन्न प्रकार के संसाधन पाए जाते हैं जिनका व्यापक विकास कर उचित दोहन तथा उपयोग को निर्धारित किया जा सकता है।

हालांकि समुद्री संसाधनों के दोहन की नीति टिकाऊ विकास पर आधारित होनी चाहिए ताकि महाद्वीपीय संसाधनों की तरह इसके दोहन का विपरीत पर्यावरणीय प्रभाव नहीं उत्पन्न हो सके। समुद्री क्षेत्र के परिस्थितिक तंत्र के संरक्षण, जैव विविधता का संरक्षण को प्राथमिकता देते हुए समुद्री संसाधनों के विकास तथा उपयोग को निर्धारित किया जाना आवश्यक है।

महत्वपूर्ण तथ्य


भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र

भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना केंद्र पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संगठन है। यह मत्स्य पालन क्षेत्र, समुद्री स्थिति का पूर्वानुमान हाईवे अलर्ट सुनामी की प्रारंभिक चेतावनी तूफान पूर्वानुमान, हाई वेव अलर्ट, सुनामी की प्रारंभिक चेतावनी, तूफान का पूर्वानुमान और समुद्र में तेल रिसाव के संबंध में विभिन्न हितधारकों को महासागर से संक्षिप्त जानकारी और सलहकारी सेवाएं प्रदान करता है। यह महासागर और उसके मौसम संबंधी आंकड़ों की वास्तविक समय आधारित जानकारी प्राप्त करने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों और उपकरणों का उपयोग करता है। यह संस्थान राष्ट्रीय अर्गो डेटा केंद्र और अंतरराष्ट्रीय अर्गों प्रोग्राम के क्षेत्रीय अर्गो डाटा सेंटर के रूप में सेवा प्रदान कर रहा है।


डिजिटल ओशन

भारत के प्रधानमंत्री की डिजिटल इंडिया पहल यानी भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान संपन्न अर्थव्यवस्था में परिवर्तन करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह महासागरों के टिकाऊ प्रबंधन और देश की Blue Economy (सागर आधारित अर्थव्यवस्था) से जुड़े प्रयासों को विस्तार देने में एक केंद्रीय भूमिका निभाएगा।


 जल-संधियां | स्वच्छ महासागर घोषणा पत्रजल संसाधन नीति | राष्ट्रीय जल विकास प्राधिकरण  

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