18वीं शताब्दी में मराठा साम्राज्य का भारतीय उपमहाद्वीप के एक बड़े हिस्से पर राज था। 17वीं शताब्दी में शिवाजी महाराज के नेतृत्व में मराठा प्रमुख हो गया। जिन्होंने आदिलशाही वंश के खिलाफ विद्रोह किया तथा रायगढ़ को अपनी राजधानी बनाया। मराठा साम्राज्य की स्थापना का श्रेय शाहजी भोंसले तथा पुत्र शिवाजी को जाता है। इसका अंत 1818 में पेशवा बाजीराव द्वितीय की हार के साथ हुआ। भारत में मुगल साम्राज्य को समाप्त करने का श्रेय स्वयं मराठा साम्राज्य को ही जाता है।
- पूरा नाम – शिवाजी
- उपनाम – छत्रपति
- जन्म – 24/4/1627
- पिता – शाह जी भोंसले
- माता – जीजाबाई
शिवाजी ने 1659 में अफजल खान की हत्या कर दी। शेरशाह सूरी के बाद शिवाजी ने मुगल वंश की जड़ें हिला दी। औरंगजेब ने घबराकर शाइस्ता खां को दक्षिण का गवर्नर नियुक्त किया। परंतु शिवाजी ने उसे उसी की जमीन पर परास्त किया। इस पर मजबूर होकर औरंगजेब ने जयसिंह को भेजा, जिसने पुरंदर के किले को जीत लिया और दोनों के बीच पुरंदर की संधि हुई। मगर कुछ दिन बाद शिवाजी ने पुरंदर की संधि में खोए अपने किले को वापस जीत लिया। 1674 में छत्रपति शिवाजी के रूप में उनका राज्याभिषेक किया गया। 12 अप्रैल, 1680 को शिवाजी की मृत्यु हो गई।
शिवाजी के बाद उनके बेटे संभाजी और राजाराम। संभाजी अपने पिता की नीतियों पर चले और सिक्कादेवा राय को पराजित किया। इससे औरंगजेब काफी डर गया था। एक दिन उसने संगमेश्वर के युद्ध में धोखे से संभा जी को कैद कर लिया और मार डाला।
संभाजी की मृत्यु के बाद राजाराम, अपनी राजधानी रायगढ़ से जिंजी ले गए। 1699 में सातारा मराठों की राजधानी बना। राजाराम के मरने के बाद, उनकी पत्नी ने अपने पुत्र शिवाजी द्वितीय को 4 वर्ष की आयु में गद्दी पर बैठाया तथा स्वयं कमान संभाली। औरंगजेब की मृत्यु के बाद संभाजी महाराज के बेटे को रिहाकर दिया गया और उन्होंने अपनी चाची के खिलाफ युद्ध करके 1707 में सतारा और कोल्हापुर राज्य की स्थापना की और मराठा साम्राज्य के छत्रपति बन गए। बाद में उन्होंने अपनी मां को भी मुगलों के चंगुल से रिहा कर दिया।
शाह ने 1713 में बालाजी को पेशवा के पद पर नियुक्त किया। अब पेशवा का पद अधिक शक्तिशाली हो गया। पेशवा बनने के बाद उन्होंने दिल्ली पर धावा बोला और मुगल को कुचल दिया, जिससे मुगल सेना को अपनी कमजोरी का एहसास हुआ। उसके बाद उसका पुत्र बाजीराव प्रथम को नियुक्त किया गया। इनके समय मराठा साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था। बाजीराव ने पाल खेड़ा के युद्ध में निजाम को हरा दिया। जिसमें दोनों के बीच मुंशी शिवगांव की संधि हुई। जिसके अंतर्गत निजाम ने मराठों को चौथ (कर) एवं सरदेशमुखी देने का वादा किया। बाजीराव प्रथम ने शिवाजी की गुरिल्ला युद्ध प्रणाली को अपनाया। 1740 तक उनकी मृत्यु होने से पहले उन्होंने 41 युद्ध लड़े और एक भी युद्ध नहीं हारा। उनके बाद बालाजी बाजीराव, नाना साहब के नाम से पेशवा बने। बालाजी बाजीराव के शासनकाल में 1761 में पानीपत का तृतीय युद्ध हुआ, जो मराठों और अहमदशाह अब्दाली के बीच लड़ा गया। अंत में माधव नारायण के काल में प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध हुआ। जिसमें सालबाई की संधि के तहत युद्ध समाप्त हुआ। द्वितीय एवं तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध बाजीराव तृतीय के समय हुआ।
पानीपत के युद्ध के बाद माधवराव पेशवा बना, जिसने मैसूर के हैदर अली को पराजित किया।