हरित क्रांति का अर्थ और कार्यक्रम
हरित क्रांति का प्रभाव
- हरित क्रांति का कृषि अर्थव्यवस्था पर क्या और कितना प्रभाव पड़ा है। इसका अंदाजा अनेक तथ्यों से लगाया जा सकता है। हरित क्रांति के अंतर्गत उन्नत किस्म के बीजों द्वारा केवल पांच खाद्यान्नों जिसमें – गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा और मक्का के उत्पादन में वृद्धि का प्रयास किया गया। जिसके अंतर्गत गेहूं में 500 प्रतिशत तथा चावल में 200 प्रतिशत वृद्धि अनुमानित की गई। वर्तमान समय में अगर स्पष्ट कहा जाए तो भारत खाद्यान्नों के मामले में एक आत्मनिर्भर राष्ट्र है। हरित क्रांति के उत्पादन में तेजी से वृद्धि हुई। जिसका श्रेय भारतीय कृषि वैज्ञानिक स्वर्गीय श्री एमएस स्वामीनाथन को जाता है तथा विश्व के अंतर्गत नॉर्मन बोरलॉग को जाता है, जिन्होंने मेक्सिको में रहकर उत्तम किस्म के बोने प्रजाति के तथा अधिक उपज देने वाले पौधों का अविष्कार किया।
- हरित क्रांति से पहले भारत में खाद्यान्न की एक बड़ी समस्या थी, जिसके कारण भुखमरी का सामना करना पड़ता था और हमें विदेशों से अनाज का आयात करना पड़ता था। लेकिन वर्तमान समय में भारत खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर हो गया है। भारत में लगभग सभी प्रकार की फसलें बोई जाती हैं। लेकिन दालों के प्रभाव में हरित क्रांति के बाद कुछ कमी देखने को मिली, जिसका कारण किसानों का गेहूं और चावल के प्रति बढ़ती रुचि है। हरित क्रांति के अंतर्गत बहु-फसली खेतों के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व वृद्धि देखने को मिली। हरित क्रांति से संबद्ध बहु-फसल कार्यक्रम 1967-68 में शुरू किया गया। जिसका उद्देश्य अल्प अवधि वाली किस्मों के प्रयोग से वर्ष में दो या तीन फसलें बोना है।
- सिंचित क्षेत्र में भी भारी वृद्धि हुई है। कृषि क्षेत्र में यंत्रीकरण भी तेजी से बढ़ रहा है। इसके अंतर्गत ट्रैक्टर, पंपसेट, स्प्रेयर, डिस्क, हैरो तथा अन्य प्रकार के यंत्र जो कृषि में प्रयोग किए जाते हैं, उनका विधिवत रूप से उपयोग बढ़ता जा रहा है। रसायनिक खादों के प्रयोग में अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिली है। उर्वरकों की इस बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए यहां एक ओर घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के लिए व्यवस्था की गई है। वहीं दूसरी ओर भारी मात्रा में आयात भी किया जा रहा है। सभी फसलों में उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग किसानों में काफी प्रचलित हो गया है।
- हरित क्रांति द्वारा कृषकों को परंपरागत खेती की सीमाओं का पता चल गया है। आज किसान नए तरीकों को अपनाने के लिए तैयार हैं। वह कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए इनकी प्रभाविता को स्वीकार कर चुके हैं। किसानों की विचारधारा में यह परिवर्तन इसलिए महत्वपूर्ण है कि इसने भविष्य के प्रति नई आशाएं जगाई हैं। कृषि आगतों में होने वाली लगातार वृद्धि के कारण बहुत से अर्थशास्त्री मानते हैं कि भारतीय कृषि में संरचनात्मक परिवर्तन हुए हैं। एक समय था जब भारत अपनी खाद्यान्नों की आवश्यकता की पूर्ति करने के लिए दूसरे देशों पर निर्भर था और आज के समय में भारत दूसरे देशों को अनाज निर्यात कर रहा है। इस प्रकार हरित क्रांति का प्रभाव खाद्यान्न पर बहुत पड़ा।
हरित क्रांति की सीमाएं
- सीमित क्षेत्रों में विस्तार : हरित क्रांति से संबंधित एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसका दायरा सीमित रहा। हरित क्रांति के अंतर्गत पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश के क्षेत्र शामिल किए गए। राष्ट्रीय स्तर पर इसका विस्तार नहीं था अर्थात देश के उन इलाकों में जहां सिंचाई सुविधा नहीं है या बहुत कम है और जो कुल कृषि भूमि का लगभग 75 प्रतिशत रहता है, यहां हरित क्रांति नहीं आ पाई। अतः शेष संपूर्ण देश इस क्रांति से लगभग अछूता रह गया।
- सीमित फसलों पर ही लागू : इस बात को लेकर भी हरित क्रांति की आलोचना की जाती है कि इसके अंतर्गत कुछ चुने हुए क्षेत्रों को शामिल किया गया। यही नही अखाद्य अथवा व्यापारिक फसलों की तो बिल्कुल ही अनदेखी की गई। यही कारण रहा है कि कृषि क्षेत्र में संतुलित विकास दिखाई नहीं देता।
- उत्पादन में कोई विशेष वृद्धि नहीं : हरित क्रांति से प्रभावित चंद फसलों जैसे गेहूं, चावल, मक्का, ज्वार और बाजरा आदि के उत्पादन में तो उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, लेकिन कृषि उत्पादन में इन फसलों का भाग मुश्किल से 20 प्रतिशत बैठता है। इसलिए अनेक फसलों के प्रभावित रहने से उत्पादन की कुल मात्रा में स्थायी तौर पर कोई विशेष महत्वपूर्ण वृद्धि संभव नहीं हो सकी। इसके अलावा कृषि उत्पादन इस कारण भी तेजी से नहीं बढ़ पाया कि कृषि आगत जैसे उर्वरक, उन्नत बीज आदि अपेक्षित मात्रा में उपलब्ध नहीं रहे और सामान्य स्तर के किसानों के लिए उनकी कीमतें भी ऊंची रही।
- प्रतिकूल आर्थिक एवं सामाजिक प्रभाव : हरित क्रांति से संबंधित एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके सामाजिक और आर्थिक प्रभाव प्रतिकूल दिखाई देते हैं। इस दृष्टि से इस क्रांति का लाभ केवल बड़े-बड़े भूस्वामियों को ही मिला। यही कारण है कि कृषि क्षेत्र में असमानताएं बढ़ गई। इस क्रांति से छोटे एवं सीमांत किसान को हरित क्रांति का ज्यादा लाभ नहीं मिला। इस क्रांति के पहले अथवा उसके साथ भूमि सुधार कार्यक्रम पूरा नहीं किया गया। इसलिए कृषि विकास की इस नीति के अंतर्गत मिलने वाली सुविधाओं का सारा लाभ समृद्ध किसानों ने ही उठाया। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि हरित क्रांति से न केवल बड़े एवं छोटे किसानों के बीच खाई को ओर गहरा किया है, बल्कि उससे सामाजिक और आर्थिक असमानता को भी बल मिला है।
कृषि विकास के लिए सरकार की नई रणनीति
राष्ट्रीय कृषि नीति, 2000
- कृषि क्षेत्र में 4% प्रतिवर्ष से अधिक समृद्धि दर प्राप्त करना।
- कृषि विकास को इस प्रकार सुनिश्चित करना जो संसाधनों का कुशल उपयोग कर सकें तथा हमारे भूमि जल व जैविक विविधता की रक्षा कर सकें।
- विकास के साथ-साथ समानता अर्थात ऐसा विकास जो सभी क्षेत्रों में और सभी किसानों को लाभान्वित कर सकें।
- विकास जो मांग प्रेरित हो और घरेलू बाजारों की जरूरत को पूरा करने के साथ-साथ आर्थिक उदारीकरण एवं भूमंडलीकरण से जनित कृषि निर्यातों को आने वाली चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करते हुए अधिक से अधिक लाभ प्राप्त कर सकें।
- कृषि विकास जो तकनीकी के रूप में पर्यावरण सुरक्षा के रूप में तथा आर्थिक रूप से धारणीय हो, उसको प्राप्त करना।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, 2007
- कृषि और समृद्ध क्षेत्रों में किसानों को अधिकतम रिटर्न दिलाना
- कृषि और समृद्ध क्षेत्र की योजनाओं के क्रियान्वयन की प्रक्रिया में राज्यों को लचीलापन और स्वतंत्रता प्रदान करना।
- राज्यों को प्रोत्साहित करना ताकि कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश में वृद्धि की जा सके।
- जिलों और राज्यों के लिए कृषि योजनाओं की तैयारी, कृषि जलवायु परिस्थितियों प्रौद्योगिकी और प्राकृतिक स्रोतों की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- स्थानीय जरूरतों के अनुसार राज्यों की कृषि प्राथमिकताओं को सुनिश्चित करना।
राष्ट्रीय कृषि नीति 2007
किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार
- संपत्ति में सुधार
- जल उपयोग में कुशलता
- खाद सुरक्षा व्यवस्था
- न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था
- कृषि ज्ञान चौपालों का गठन
- कृषि से संबंधित एप्लीकेशन
- साख एवं बीमा
- महिलाओं के लिए सहायक सेवाएं
- बीज और उर्वरक भूमि
- राष्ट्रीय कृषि जैव सुरक्षा प्रणाली
- नई प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहन
कृषि तथा सहकारिता विभाग द्वारा राष्ट्रीय कृषि नीति 2007 को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए एक अंतर मंत्रालय समिति का गठन किया गया। सभी केंद्रीय मंत्रालयों तथा विभागों के लिए एक कार्य योजना तैयार और परिचालित की गई है। साथ ही सभी राज्यों को आवश्यक अनुवर्ती कार्रवाई हेतु कहा गया है। पर्यावरण की प्रगति को अंतर मंत्रालय समिति द्वारा मॉनिटर किया जाएगा। [ हरित क्रांति से होने वाली समस्याएं ]