भू-राजनीति के अनुसार, सीमा तथा सीमांत क्षेत्र राज्यों के आपसी संबंधों एवं राज्य शक्ति को आधार प्रदान करते हैं। और सुपरिभाषित सीमाएं राज्य शक्ति के आधार की प्रमुख अंग होती हैं। यदि सेवाएं परिभाषित एवं दो राज्यों के आपसी सहमति का परिणाम होती है तो ऐसी सीमा शांत एवं स्थिर होती है और सामान्यत: विवाद रहित होती हैं। परंतु हमारी सीमाएं सुस्पष्ट होकर भी विवाद और स्थायी विरोध पैदा किए हुए हैं। भारत का सीमा-विवाद अपने पड़ोसी देशों से किसी न किसी रूप में स्वतंत्रता के बाद भी बना हुआ है। इसमें पाकिस्तान, चीन बांग्लादेश के साथ हमारा विवाद अत्यंत जटिल है। पाकिस्तान एवं चीन के साथ इस मुद्दे पर युद्ध भी हो चुका है। भारत-पाकिस्तान सीमा पर वर्ष भर तनाव एवं युद्ध की स्थिति बनी रहती है।
भारत का पड़ोसी देशों के साथ सीमा-विवाद एवं संबंधित समस्याओं को विभिन्न देशों के संबंध में समझा जा सकता है।
- भारत-पाकिस्तान सीमा विवाद
- भारत चीन सीमा विवाद
- भारत-बांग्लादेश सीमा विवाद
- अन्य देशों के साथ सीमा संबंध
(1) भारत-पाकिस्तान सीमा विवाद एवं समस्याएं
15 अगस्त, 1947 को भारत की स्वाधीनता के साथ ही उसका सांप्रदायिक आधार पर विभाजन हो गया। मुस्लिम जनसंख्या के बहुमत के आधार पर लॉर्ड माउंटबेटन योजना के तहत भारत-पाकिस्तान सीमाएं सर रेडक्लिफ निर्णय से निर्धारित एक सु-संस्कृतिक या अध्यारोपित सीमा है। सीमा निर्धारण में सौम्यता कम व कटुता अधिक रही है। सर रेडक्लिफ के नियमानुसार, सीमा चार भागों में निर्धारित की गई। सीमा निर्धारण के समय से ही जम्मू-कश्मीर और कच्छ के मुद्दों पर दोनों देशों में विवाद कायम हो गया। भारत-पाकिस्तान सीमा की लंबाई लगभग 3400 किमी है। भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा भारत के जम्मू कश्मीर (केंद्र शासित राज्य), पंजाब, राजस्थान और गुजरात राज्य से गुजरती है। अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत यह रेडक्लिफ निर्णय और कच्छ निर्णय से सुपरिभाषित है। लेकिन भारत एवं पाकिस्तान सीमा प्रारंभ से ही विवादित है।
- जम्मू कश्मीर से पंजाब सेक्टर :
- 1225 किमी लंबी सीमा
- सीमा का कुछ भाग सिंधु, झेलम और चनाव नदियों द्वारा निर्मित
- सीमा का अधिकांश भाग पाकिस्तान के अनाधिकृत कब्जे में है और वर्तमान सीमा युद्ध विराम रेखा LOC के रूप में स्थित है।
- पाकिस्तान का जम्मू-कश्मीर (केंद्र शासित राज्य) पर दावा है।
- पंजाब से राजस्थान तक सीमा सेक्टर :
- 552 किमी लंबी सीमा
- सीमा का कुछ भाग रावी और सतलज नदियों द्वारा निर्मित। यह सामान्यतया विवाद रहित है।
- राजस्थान के गुजरात तक सीमा सेक्टर :
- 1042 किमी लंबी सीमा
- शुष्क व थार क्षेत्र के अंतर्गत निर्धारित और अंकित पूर्णतः कृत्रिम सीमा। यह सामान्य विवाद रहित है।
- गुजरात के खाड़ी द्वार तक सीमा :
- 604 किमी लंबी कच्छ के रन से निर्मित
- पाकिस्तान द्वारा स्वतंत्रता के कुछ वर्ष बाद सीमा को अमान्य घोषित कर दिया गया। यहां कच्छ के रन में विवाद बना हुआ है।
- 1969 में अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण द्वारा सीमा का पुनः निर्धारण और विवाद का हल। लेकिन यहां सरक्रीक विवाद बना हुआ है।
स्पष्टत: भारत एवं पाकिस्तान के मध्य जम्मू-कश्मीर एवं कच्छ के रन के क्षेत्र में सीमा विवाद प्रारंभ से ही रहा है और वर्तमान में भी बना हुआ है।
कच्छ के रन का विवाद
1965 में पाकिस्तान द्वारा सिंध और गुजरात के मध्य कच्छ की अंतर्राष्ट्रीय सीमा अमान्य घोषित कर दी गई और कच्छ के रन में 9065 किमी क्षेत्र पर पाकिस्तान ने दावा कर लिया।
पाकिस्तान का आधार
- कच्छ का रन स्थल समुद्र या झील है न कि दलदल। अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार सीमा इसके मध्य में होनी चाहिए।
- 24 डिग्री उत्तरी अक्षांश रेखा के उत्तर में पुराने सिंध के 9065 वर्ग किमी क्षेत्र पर भारत का गैर-कानूनी कब्जा है।
- कच्छ का रन सिंध का भाग है तथा मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। अतः यह पाकिस्तान का अंग है।
भारत का तर्क
- ब्रिटिश सरकार और गजेटियरों में कच्छ के रन को दलदल और बंजर भूमि बताया गया है न कि झील या बंद समुद्र।
- मानचित्र, दस्तावेज व प्रमाण सिद्ध करते हैं कि कच्छ का रन सदा भारत का भाग रहा है न कि सिंध का। इन्हीं परिस्थितियों में पाकिस्तान ने भारत पर 1965 पर आक्रमण कर दिया था, जिसमें पाकिस्तान की हार हुई।
- पाकिस्तान का रन में जनवरी 1965 में घुसपैठ और अप्रैल, 1965 में सैन्य संघर्ष।
- 30 जून, 1965 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप से युद्ध विराम और समझौते के अनुसार दोनों पक्षों पर 1 जनवरी, 1965 को स्थिति पर वापस आने और समस्या समाधान हेतु 3 सदस्यीय अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण का गठन।
- न्यायाधिकरण ने 19 फरवरी, 1968 के फैसले में 2:1 के मत से पाकिस्तान को 906 वर्ग किमी क्षेत्र दिया। पक्षपात पूर्ण निर्णय के बावजूद नैतिक दबाव के कारण भारत द्वारा स्वीकार और कच्छ विवाद समाप्त लेकिन सर क्रीक का विवाद बना हुआ है।
जम्मू कश्मीर विवाद :
स्वतंत्रता के बाद से कश्मीर की समस्या भारत-पाकिस्तान के बीच सर्वाधिक जटिल राजनीतिक समस्या बनी हुई है। कश्मीर की समस्या 5 देशों से मिलने के कारण यह अत्यंत ही सामरिक महत्व का भू-राजनीतिक क्षेत्र हैै. फलत: भारत, चीन व पाकिस्तान तीनों इस पर अपना अधिकार बनाए रखना चाहते हैं।
समस्या की पृष्ठभूमि :
- आजादी के बाद कश्मीर के शासक हरिसिंह द्वारा भारत-पाकस्तान दोनों से यथास्थिति समझौते का प्रस्ताव।
- 10 अक्टूबर तक कबाईलियों के साथ पाकिस्तान सेना का जम्मू कश्मीर पर हमला और 26 अक्टूबर, 1947 तक एक तिहाई कश्मीर पर कब्जा।
- 26 अक्टूबर, 1947 को कश्मीर के महाराजा हरि सिंह द्वारा भारत में विलय के प्रवेश पत्रक पर हस्ताक्षर और तुरंत सैनिक कार्यवाही की मांग की।
- भारतीय सेना का कश्मीर में प्रवेश और शेष क्षेत्रों पर कब्जा।
UNO की भूमिका
- भारत द्वारा 1 जनवरी, 1948 को समस्या समाधान हेतु UNO के सुरक्षा परिषद में मामले को रखना और पाकिस्तान को युद्ध रोकने का आदेश देने की प्रार्थना।
- सुरक्षा परिषद द्वारा 21 अप्रैल, 1948 को पांच सदस्य आयोग नियुक्त, जिसने समस्या समाधान हेतु 13 अगस्त, 1948 और 5 जनवरी, 1949 को ऐतिहासिक प्रस्ताव रखा। जिसमें महत्वपूर्ण बिंदु निम्न थे।
- तत्कालिक युद्ध विराम
- पहले पाकिस्तान द्वारा फिर भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर का असैनिकीकरण
- कश्मीर के आत्मनिर्णय का आयोजन (जनमत संग्रह)
इस प्रस्ताव को दोनों देशों ने स्वीकार किया, लेकिन पाकिस्तान ने प्रथम 2 चरणों की पूर्ति नहीं की, फलत: नियम अनुसार प्रस्ताव का तीसरा चरण (जनमत संग्रह) स्वत ही अमान्य हो गया।
भारत पाकिस्तान युद्ध
- पाकिस्तान द्वारा युद्ध के सहारे युद्ध-विराम रेखा को समाप्त करने की नीति के तहत 5 अगस्त, 1965 से भारत सीमा में घुसपैठ और 1 सितंबर, 1965 से जम्मू-कश्मीर पर भारी हमला।
- युद्ध में भारत द्वारा पाकिस्तान को करारी मात। 20 सितंबर, 1965 के सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव से 22 सितंबर, 1965 से युद्ध विराम और 10 जनवरी, 1966 में भारत-पाकिस्तान के मध्य ताशकंद समझौते से 5 अगस्त से पूर्व की स्थिति बहाल।
- 3 दिसंबर, 1971 से 16 दिसंबर, 1971 तक दोनों सीमाओं पर पुनः भारत-पाकिस्तान में भयंकर युद्ध। पाकिस्तान की करारी हार तथा बांग्लादेश का निर्माण। 93000 पाकिस्तानी सेनाओं का आत्मसमर्पण। पश्चिम भाग में हजारों किमी क्षेत्र पर भारत का कब्जा।
शिमला समझौता
3 जुलाई, 1972 को भारत-पाकिस्तान के मध्य शिमला समझौता हुआ, जिसमें महत्वपूर्ण प्रावधान निम्नलिखित थे।
- मतभेदों को आपसी शांतिपूर्ण वार्ता द्वारा हल करने
- डाक तार संचार स्थापित करने
- व्यापार तथा आर्थिक सहयोग प्रारंभ करने
- विज्ञान और सांस्कृतिक आदान-प्रदान
युद्ध से LOC (Line of Control) तो परिवर्तित हो गई, परंतु समस्या जस की तस बनी रही। 1999 में दोनों के मध्य कारगिल युद्ध हुआ जिसमें पाकिस्तान की पुनः हार हुई, लेकिन पाकिस्तान भारत में आतंकवादी गतिविधियों को न केवल प्रोत्साहित करता रहा, बल्कि प्रत्यक्ष रूप से प्रायोजित करता रहा है। पाकिस्तान की नीति भारत को आंतरिक रूप से सुरक्षित एवं परेशान करना है, ताकि कश्मीर के मुद्दे पर भारत पाकिस्तान के दबाव में आ जाए।