भारत-पाकिस्तान जल समझौता | Bharat Pakistan agreement



(1) तुलबुल नौ-परिवहन परियोजना :

पिछले 30 वर्षो से अधर में लटकी तुलबुल नौ-परिवहन परियोजना की शुरुआत भारत सरकार द्वारा 1984 में की गई थी। इसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर (केंद्र शासित प्रदेश) में बारामुला के निकट झेलम नदी का नौ-परिवहन हेतु उपयोग के लिए नदी में जल की एक निश्चित मात्रा को रखने के लिए वुलर बांध के निर्माण का कार्य 1984 में शुरू किया गया था। इस बांध को बनाकर सोपोर तथा बारामुला के मध्य झेलम नदी के जल का प्रवाह तथा जल की गहराई को दोगुना किए जाने की योजना थी। यात्री तथा माल ढुलाई की दृष्टि से नदी की वर्तमान गहराई अपर्याप्त है।

1987 में पाकिस्तान की आपत्ति के बाद इस परियोजना का निर्माण कार्य रोक दिया गया। पाकिस्तान के अनुसार यह परियोजना 1960 के सिंधु जल समझौता के प्रावधान का उल्लंघन है। भारत झेलम नदी की मुख्यधारा को रोककर जल का भंडारण कर रहा है जिससे उसे प्राप्त होने वाली जल राशि में कमी हो जाएगी। पाकिस्तान ने इस परियोजना को उसकी सुरक्षा पर आघात कहा तथा यह आशंका व्यक्त की है कि झेलम नदी के जल प्रवाह पर भारत का अवैध रूप से अधिपत्य स्थापित हो जाएगा।



जहां तक सिंधु जल संधि के उल्लंघन का प्रश्न है, भारत तथा पाकिस्तान को इस संधि के तहत नदियों के जल, तटवर्ती अधिकार प्रदान किए गए हैं। इसमें सिंधु, झेलम तथा चिनाव नदी के उपयोग का अधिकार पाकिस्तान को प्राप्त है, लेकिन भारत को भी इस संधि के तहत इन नदियों के जल का उपयोग कृषि तथा नौ-संचालन के लिए प्राप्त है।



इस विवाद के समाधान की दिशा में जून 2005 में भारत तथा पाकिस्तान के बीच सचिव स्तर की वार्ता हुई, परंतु कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकला और आए दिन इस विवाद के कारण दोनों देशों में बातचीत लगातार हो रही है। लेकिन इस वार्ता की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि दोनों देशों को एक संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए सहमति व्यक्त की गई थी। आशा की जा रही है कि भारत तथा पाकिस्तान जल्द आपसी समझौते से इस समस्या का हल निकालने का प्रयास करेंगे।
 

(2) किशनगंगा परियोजना :

किशन गंगा परियोजना जम्मू-कश्मीर (केंद्र शासित प्रदेश) में झेलम नदी की सहायक नदी किशन गंगा पर प्रस्तावित 390 मेगावाट की जल विद्युत परियोजना है। भारत झेलम नदी की इस शाखा के जल को दूसरी शाखा में भेजना चाहता हैै। इसके लिए यहां पर 21 किमी लंबी भूमिगत सुरंग बनाने का भारत की योजना है।
पाकिस्तान किशन गंगा परियोजना को 1960 के सिंधु जल समझौते का उल्लंघन बता रहा है। पाकिस्तान के अनुसार, इस परियोजना के निर्माण से झेलम नदी के जल प्रवाह में कमी आएगी। साथ ही पाकिस्तान का मानना है कि सिंधु जल समझौते के अंतर्गत भारत को सिंधु, झेलम, चिनाब नदी के अपवाह तंत्र में परिवर्तन का अधिकार नहीं है। भारत झेलम की सहायक नदी किशन गंगा के जल को दूसरी नदी में भेजने को इसके अपवाह तंत्र में परिवर्तन बताता है। 
दूसरी तरफ भारत का कहना है कि सिंधु जल समझौते के अनुसार इन नदियों का एक निश्चित जलस्तर रखते हुए अन्य उपयोग कर सकता है। किशन गंगा परियोजना से झेलम नदी के जलस्तर में कोई कमी नहीं आएगी। विवाद के समाधान की दिशा में दोनों देश सचिव स्तर पर वार्ता कर चुके हैं।
बगलिहार परियोजना पर विश्व बैंक का फैसला आने से भारत का पक्ष इस परियोजना पर मजबूत हुआ है। परंतु अभी भी ऐसे कई तकनीकी पक्ष है जिस पर दोनों देश गहन अध्ययन कर रहे हैं, जिससे भविष्य में उनका दावा इस परियोजना पर मजबूत हो सके।


 

(3) सिन्धु जल समझौता :

भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद से ही सिंधु एवं उसकी 5 सहायक नदियां सतलुज, व्यास, रावी, झेलम और चिनाव के जल के उपयोग को लेकर विवाद शुरू हो गया। इस विवाद के पीछे पाकिस्तान की मुख्य चिंता यहां बहने वाली अधिकतर नदियों का उद्गम स्थल भारत के क्षेत्र के अंतर्गत होना था। पाकिस्तान में सिंधु व उसकी सहायक नदियों से अनेक नहरें निकाली गई हैं, जिस पर वहां की अधिकतर कृषि क्षेत्र आश्रित है। इस प्रकार पाकिस्तान के लिए सिंधु व उसकी सहायक नदियां तथा उसमें बहने वाला जल व उसका जलस्तर अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान ने सिंधु व उसकी सहायक नदियों के जल उपयोग को लेकर विवाद प्रारंभ कर दिया।


अतः 1952 में विश्व बैंक के अध्यक्ष मिस्टर यूजेन ब्लैक ने अपने मध्यस्थता से इस समस्या का हल पेश करने का प्रस्ताव किया। इसके परिणाम स्वरूप 1960 में सिंधु जल संधि अस्तित्व में आयी। जिसकी शर्ते निम्नलिखित हैं :
  1.  पूर्वी ढाल वाली नदियों व्यास, रावी, सतलज के जल का उपयोग भारत कर सकेगा।
  2.  पश्चिमी ढाल वाली नदियां सिंधु, झेलम, चिनाब के जल के उपयोग का अधिकार पाकिस्तान को दिया गया।
  3.  साथ ही यह प्रावधान किया गया कि एक स्थाई सिंधु नदी आयोग एवं सिंधु नदी घाटी विकास निधि की भी स्थापना की जाएगी।
  4.  सिंधु संबंधी विवाद का विभाजन विश्व बैंक द्वारा कराया जा सकेगा। साथ ही यह प्रावधान किया गया कि इन नदियों के जल का उपयोग भारत घरेलू तथा कृषि संबंधी उपयोग के लिए एक सीमा तक कर सकता है।
सिंधु जल समझौते के बाद भी इन नदियों के जल उपयोग से संबंधित अनेक विवाद भविष्य में होते रहे जिसमें मुख्यतः तुलबुल परियोजना, बगलिहार व किशनगंगा परियोजना आदि है पाकिस्तान हमेशा भारत पर सिंधु जल समझौते का उल्लंघन का आरोप लगाता रहता है लेकिन कई अंतरराष्ट्रीय फैसले से यह साबित हो चुका है कि भारत इन नदियों के जल का उपयोग सिंधु जल समझौते के दायरे में ही कर रहा है। सिंधु जल समझौते के उपयोग को लेकर आपस में और अधिक बहाली की आवश्यकता है।
 


(4) बगलिहार परियोजना :

बगलिहार परियोजना कश्मीर (केंद्र शासित प्रदेश) में चिनाब नदी पर डोडा व उधमपुर के बीच भारत द्वारा बनाई जा रही 450 मेगावाट की विद्युत परियोजना है। इसके लिए यहां पर एक बांध का निर्माण कराया जा रहा हैै, जिसे 2006 से 2007 तक पूरा होने की संभावना थी, लेकिन पाकिस्तान ने 1992 में पहली बार इस पर आपत्ति उठाई और कहा कि यह 1960 के सिंधु जल समझोता का उल्लंघन है।
पाकिस्तान यह दावा करता है कि इस परियोजना से उस तक आने वाले जल की मात्रा अपर्याप्त हो जाएगी। इस दिशा में जनवरी 2005 में दोनों पक्षों के बीच सचिव स्तर की वार्ता भी हुई है। इसके उपरांत भारत ने पाकिस्तान के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था। भारत ने स्पष्ट कहा कि 450 मेगावाट क्षमता वाली बगलिहार जल विद्युत परियोजना सिंधु जल संधि का उल्लंघन नहीं है। अतः पाकिस्तान ने इस मामले में विश्व बैंक के हस्तक्षेप की अपील की। जिस पर भारत ने भी अपनी सहमति दे दी। 


स्विट्जरलैंड के रिचर्ड इस मामले के विशेषज्ञ नियुक्त हुए, जिन्होंने 2005 में अपना फैसला दिया। इसमें बगलिहार विद्युत परियोजना के निर्माण की मंजूरी मिल गई। जिसमें भारत को 144.5 मीटर ऊंचे बांध की को 1.5 मीटर कम करने के लिए कहा। इस प्रकार पाकिस्तान को अंततः इस परियोजना पर दावा छोड़ना पड़ा।
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