हृदय स्थल सिद्धांत | भू-राजनीतिक नियम

हृदय स्थल सिद्धांत भू-सामरिक दृष्टिकोण से प्रमुख सिद्धांत है, जिसे ब्रिटिश भूगोलवेत्ता और ब्रिटिश भू-राजनीति के संस्थापक मैकिंडर ने दिया था। इन्होंने विश्व की सामरिक गतिविधियों अर्थात भू-राजनीतिक परिदृश्य का समय-समय पर आकलन और संभावना प्रस्तुत की जिसे भू-राजनीति में पर्याप्त महत्व दिया गया। इनके विचारों को प्रमुख भू-राजनीतिज्ञ केलेजन एवं हाउशोफर का भी समर्थन प्राप्त हुआ। मैकिन्डर ने तीन चरणों में अपना भू-राजनीतिक विचार प्रस्तुत किया और समय के संदर्भ में संशोधन प्रस्तुत किया। सर्वप्रथम 1904 में ज्योग्राफिकल पीवोट ऑफ हिस्ट्री अनुसंधान प्रपत्र में महत्वपूर्ण पीवोट क्षेत्र या धुरी प्रदेश का विचार प्रस्तुत किया। उन्होंने विश्व को तीन भागों में बांटा।

  1. विश्व के धुरी प्रदेश
  2. आंतरिक अर्धचंद्राकार क्षेत्र
  3. बाह्य अर्धचंद्राकार क्षेत्र
ध्रुव प्रदेश के अंतर्गत इन्होंने आर्कटिक बेसिन के क्षेत्रों को सम्मिलित किया। इसमें साइबेरिया, मध्य एशिया के उत्तरी भाग एवं पूर्वी यूरोप को सम्मानित किया। इस क्षेत्र को मैकिन्डर ने सर्वाधिक सुरक्षित क्षेत्र कहा क्योंकि यह तीन ओर से अवरोधों से घिरा हुआ है। उत्तर में ध्रुवीय आर्कटिक प्रदेश, दक्षिण में दुर्गम पर्वतीय क्षेत्र, जबकि पूर्व में अलास्का का ठंडा विरान प्रदेश स्थित है। स्पष्टत: यह भौगोलिक स्थिति ध्रुवीय प्रदेश को  भू-सामरिक दृष्टिकोण से सुरक्षित बनाता है। इस क्षेत्र में आक्रमण की संभावना पश्चिम की ओर से खुले हुए प्रदेश से है जिसका उपयोग यह क्षेत्र बाहर निकलने के लिए करेगा।
आंतरिक अर्धचंद्राकार क्षेत्र धुरी प्रदेश से दक्षिण में स्थित क्षेत्र है, जिसमें पश्चिमी यूरोप, दक्षिणी यूरोप, मध्य पूर्व के देश, भूमध्यसागरीय देश, टर्की, दक्षिण एशिया व दक्षिण पूर्वी एशिया के क्षेत्र सम्मिलित हैं। ध्रुवीय प्रदेश की सामरिक गतिविधियों का प्रभाव आंतरिक अर्धचंद्राकार क्षेत्र पर पड़ता है। बाह्य अर्धचंद्राकार क्षेत्र में उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, भूमध्यसागरीय क्षेत्र को छोड़ शेष अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड आते हैं। इस क्षेत्र पर ध्रुरी प्रदेश के सामरिक गतिविधियों का प्रभाव नहीं पड़ेगा और ध्रुरी प्रदेश ही तनाव के क्षेत्र होंगे जिसका प्रभाव आंतरिक अर्धचंद्राकार क्षेत्र पर पड़ेगा।
उपरोक्त विचारों के अनुरूप की प्रथम विश्व युद्ध (1914-1919) की प्रवृतियां पाई गई और पूर्वी यूरोप ही युद्ध का केंद्र बना रहा। फलस्वरुप मैकिन्डर के विचार को विश्वव्यापी समर्थन मिला। प्रथम विश्वयुद्ध की प्रवृत्तियों से प्रभावित होकर मैकिन्डर ने 1919 में नए दृष्टिकोण के साथ अपना हृदय स्थल सिद्धांत ‘डेमोक्रेटिक आइडियल एंड रियलिटी’ में दिया गया। इसमें इन्होंने प्रसिद्ध भू-सामरिक सूत्र का प्रतिपादन किया।
‘जो पूर्वी यूरोप पर शासन करेगा, वह विश्व द्वीप पर नियंत्रण करेगा, जो विश्व द्वीप पर शासन करेगा। वह पूरे विश्व पर नियंत्रण स्थापित करेगा।’
इन्होंने पूर्वी यूरोप एवं यनिसी नदी के पश्चिम स्थित साइबेरिया के क्षेत्र को विश्व का हृदय स्थल कहा और इसे भू-सामरिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र बताया। यूरोप, एशिया और अफ्रीका को विश्वदीप कहा जबकि यनिसी नदी के पूर्व के क्षेत्र को लीना क्षेत्र कहा।       
इस तरह हृदय स्थल सिद्धांत में पूर्वी यूरोप की महत्वा को स्थापित किया गया और पूर्वी यूरोप पर अधिपत्य के लिए साम्राज्यवादी देशों को प्रेरित किया गया। उन्होंने यह स्पष्ट कहा कि सोवियत संघ यानी रूस पूर्वी यूरोप पर अधिपत्य के लिए विस्तारवादी नीति अपनाएगा। अतः फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देशों को इसे रोकने का प्रयास करना चाहिए। पुनः इन्होंने पूर्वी यूरोप में जर्मनी को एक प्रमुख दावेदार और मजबूत देश के रूप में महत्व दिया और कहा कि जर्मनी यूरोप पर अपना दावा प्रस्तुत कर सकता है।
इस तरह इस विचार ने जर्मनी की महत्वाकांक्षा को बढ़ा दिया और यूरोप के क्षेत्रों में तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई।
इस सिद्धांत को प्रारंभिक वर्षों में पर्याप्त मान्यता मिली और द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1942) की शुरुआत यूरोप में ही हुई, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध में एक नए सामरिक शक्ति के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका का उदय हुआ जो बाहरी अर्धचंद्राकार क्षेत्र में स्थित देश है। इसकी कल्पना मैकिन्डर ने नहीं की थी और इसे यूरोप की राजनीतिक से अप्रभावित क्षेत्र बताया गया था। पुनः निर्णायक युद्ध जापान में लड़ा गया न कि पूर्वी यूरोप में। जापान पर अमेरिका के द्वारा परमाणु हमले के बाद युद्ध समाप्त हुआ। स्पष्ट है कि विश्व के विश्व के सामरिक भूदृश्य में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ जिसकी कल्पना मैकिन्डर ने नहीं की थी। अतः हृदय स्थल सिद्धांत की आलोचना की गई।
 
बदलती हुई भूसामरिक परिस्थितियों में मैकिन्डर ने 1943 में फॉरेन अफेयर्स नामक पत्रिका में “द राउंड वर्ल्ड एण्ड विनिंग आफ पीस” नामक लेख में संशोधित हृदय स्थल सिद्धांत प्रस्तुत किया और विश्व में दो हृदय स्थल की स्थिति को स्वीकार किया।
  1. यूरोपीय हृदय स्थल
  2. द मिडलैंड बेसिन
यूरोपीय हृदय स्थल का महत्वपूर्ण शक्तिशाली राष्ट्र रूस है जबकि मिडलैंड बेसिन में USA दूसरा शक्तिशाली धुरी राष्ट्र होगा। मिडलैंड बेसिन के अंतर्गत उत्तरी अटलांटिक महासागर के तटवर्ती देश सम्मिलित हैं। इसमें USA, कनाडा एवं पश्चिमी यूरोपीय देश आते हैं। क्योंकि इनमें समान प्रजातांत्रिक प्रशासन एवं संस्कृति पाई जाती है। अतः यह सामूहिक शक्ति के रूप में विश्व का दूसरा ह्रदय स्थल होगा।
मैकिन्डर के इस विचार के अनुरूप सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व के दो शक्तिशाली ध्रुव के रूप में शीतकाल की लंबी अवधि में बने रहे। इस संदर्भ में विश्व के गुटनिरपेक्ष देशों को छोड़कर अन्य देश किसी न किसी रूप में दो ध्रुवीय विश्व में बंटे रहे हैं। इस तरह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 4 दशकों तक यह विचार मान्य रहा, लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका के एक महाशक्ति के रूप में बने रहने के कारण इस सिद्धांत की प्रसंगिकता एवं दूरदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह लग गया। इस आधार पर इस सिद्धांत की आलोचना की जा सकती है, लेकिन रूस के वृहद संसाधन, वृहद क्षेत्र, परमाणु शक्ति व आधारभूत संरचना की अच्छी स्थिति आने वाले समय में पुनः उसकी महत्ता को विश्व शक्ति के रूप में स्थापित कर सकता है। यदि रूस आर्थिक समस्याओं का समाधान कर लेता है तो पुनः एक शक्तिशाली ध्रुव के रूप में स्थापित हो सकता है।
इस तरह मैकिन्डर का हृदय स्थल संकल्पना भूसामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रही है लेकिन कुछ कारणों से स्पाइकमैन जैसे भू-राजनीतिज्ञ ने इसकी तीव्र आलोचना की और हृदय स्थल के प्रतिक्रिया में रीमलैण्ण सिद्धांत दिया, जिसमें यूरोपीय हृदय स्थल की तुलना में आंतरिक अर्धचंद्राकार क्षेत्र को भूसामरिक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। साइबेरिया के क्षेत्र को अधिक विरान और विरल जनसंख्या के प्रदेश होने के कारण स्पाइकमैन में विश्व के हृदय स्थल के रूप में उसके मान्यता नहीं दी। विश्व की बदलती हुई परिस्थितियों में सामरिक संबंधों की तुलना में आर्थिक संबंधों को अधिक बल दिया जा रहा है और इस संबंध में ही नए सामरिक और आर्थिक संबंध विकसित हो रहे हैं। हालांकि विश्व के भूसामरिक दृष्टि से मजबूत राष्ट्रों की महत्ता भी बनी हुई है। इस तरह मैकिन्डर के सिद्धांत की प्रसंगिकता वर्तमान में भी बनी हुई है।
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