रेपो रेट (Repo Rate) क्या है?

सभी बैंक अपनी जरूरतों तथा व्यापार को बढ़ाने के लिए RBI से कर्ज या ऋण लेती है तथा उसके बदले में बैंक, RBI को जिस ब्याज दर से पैसा वापस करती है, उसे रेपो दर कहते हैं। वर्तमान में रेपो रेट 6.50 प्रतिशत (Aug, 2023) है।
दूसरे शब्दों में वाणिज्यिक बैंकों द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक से लिया गया ऋण तथा उस रकम या ऋण पर जो ब्याज दर लगाई जाती है। उसे रेपो दर कहते हैं।

रेपो रेट का हम पर क्या असर पड़ता है

जब बैंकों को RBI से कम ब्याज दर पर ऋण या लोन मिलेगा, तो बैंक भी अपने ग्राहकों को कम ब्याज दर पर लोन बाटेगी। मतलब अगर रेपो रेट कम होगी तो होम लोन, कार लोन तथा अन्य लोन भी सस्ते हो जाएंगे। जिससे लोगों के पास अधिक पैसा होगा और वह किसी भी वस्तु को आसानी से खरीद सकते हैं। इस प्रकार पैसे की कीमत कम हो जाएगी तथा बाजार में वस्तुओं की कीमत बढ़ जाएगी। अगर यही प्रक्रिया कुछ वर्षों तक जारी रहती है, तो मुद्रास्फीति की स्थिति आ जाती है। यह सामान्य होने पर तो विकास करती है। मगर बढ़ जाने पर आम जीवन पर इसका बहुत प्रभाव पड़ता है, जिसका असर गरीब तथा मध्यम वर्ग के लिए हानिकारक हो सकता है।

रेपो दर का रोजगार पर असर 

अगर रेपो दर कम हो जाती है, तो उद्योगपति अपने उद्योग को बढ़ाने के लिए बैंक से ऋण लेते हैं तथा वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाते हैं। इस प्रकार उत्पादन बढ़ाने के लिए मानव संसाधन की आवश्यकता पड़ती है, जिसके कारण रोजगार में बढ़ोतरी होती है।
मगर इसके विपरीत, रेपो दर बढ़ जाने से उद्योगपति पर ब्याज का अधिक भार पड़ता है और इससे बचने के लिए वह अपने कर्मचारियों की छटनी करते हैं। इस प्रकार रेपो रेट के बढ़ने से लगभग सभी क्षेत्रों पर प्रभाव पड़ता है, चाहे वह नकारात्मक हो या सकारात्मक।

रिवर्स रेपो दर

रिवर्स रेपो रेट, रेपो रेट का लगभग उल्टा है। इसमें जब बैंक अपनी बचत का पैसा आरबीआई में जमा करती है तो आरबीआई उस पैसे पर बैंक को ब्याज देती है। आरबीआई जिस दर से बैंक को ब्याज देती है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं। वर्तमान में रिवर्स रेपो रेट 3.35 (Aug, 2023) प्रतिशत है।

बैंक RBI में अपना पैसा क्यों जमा करती हैं?

इसके कई कारण है जिसके कारण बैंक Reserve Bank Of India में अपना पैसा जमा करती हैं।
  • लाभ के उद्देश्य से :  उदाहरण के लिए, अगर बाजार में ब्याज दर 7 प्रतिशत है तथा RBI के पास जमा करने पर ब्याज दर 8 प्रतिशत है, तो इस केस में भी बैंक अपना पैसा आरबीआई में जमा कर देती है।
  • सुरक्षा के उद्देश्य से :  बाजार में बैंक का पैसा असुरक्षित है। ऐसा माना जाता है कि RBI के पास पैसा सुरक्षित रहेगा तथा ब्याज दर भी लगभग समान है। तो उस केस में भी बैंक अपना पैसा RBI के पास रखना सुरक्षित समझती है।
  • वस्तुओं के मूल्य को कम करने के लिए :  वस्तुओं के मूल्य को कम करने के लिए भी बैंक बाजार में अपना पैसा ज्यादा नहीं लगाना चाहती, क्योंकि जब बाजार में पैसा ज्यादा होगा, तो लोगों द्वारा ज्यादा खरीदारी की जाएगी तथा वस्तुओं की कीमत बढ़ जाएगी। इसलिए यह कह सकते हैं कि बैंक यहां मुद्रा स्फीति को कम करने का कार्य करती है। ये सब कार्य, बैंक की सहायता से आरबीआई के द्वारा किए जाते हैं।
लेकिन इसका एक नकारात्मक कारण भी है। अगर बैंक अपना सारा पैसा Reserve Bank Of India में जमा करती है तथा बाजार में साख नहीं उपलब्ध कराती है तो बाजार में पैसे की कमी हो जाएगी, जिससे खरीदारी में कमी आने से वस्तु की कीमत, वास्तविक मूल्य से बहुत कम हो जाएगी और अवमूल्यन की स्थिति आ जाएगी। यह बाजार तथा देश के विकास के लिए बहुत बड़ी बाधा है।

CRR/नकद आरक्षित अनुपात

RBI सभी बैंकों के लिए नियम निर्धारित करती है। यह भारत सरकार का बैंक है, यानी केंद्रीय बैंक है। यहां कोई भी व्यक्ति अपना खाता नहीं खुला सकता। यहां केवल बैंकों के खाते खोले जाते हैं। 
इस प्रकार RBI के निर्देशानुसार, बैंक अपने कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा RBI के पास रखना होता है। इसे CRR कहते हैं। वर्तमान में CRR 4.5 प्रतिशत (Aug, 2023) है।
RBI के पास CRR को बढ़ाने के कारण बैंकों के पास बाजार में लोन देने के लिए पैसे की कमी हो जाएगी। अगर RBI, CRR को घटाता है, तो बाजार में पैसे का प्रवाह बढ़ जाता है। RBI, CRR के बदलाव तभी करता है, जब बाजार में नकदी की तरलता पर तुरंत असर नहीं डालना हो। अगर देखा जाए तो रेपो दर तथा रिवर्स रेपो दर की तुलना में CRR में बदलाव के कारण बाजार में नकदी की उपलब्धता पर ज्यादा वक्त में असर पड़ता है।

SLR/वैधानिक तरलता अनुपात

RBI अर्थव्यवस्था या बाजार में नकदी (पैसे) की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए जिन उपायों का सहारा लेती है, उनमें SLR एक प्रमुख उपाय हैं। Statutory Liquidity Ratio या वैधानिक तरलता अनुपात बैंकों के पास उपलब्ध जमा का वह हिस्सा होता है जो कि उन्हें अपनी जमा पर लोन जारी करने के पहले अपने पास रख लेना जरूरी होता है। 
मतलब यह वह नकदी होती है, जो बैंक के पास हमेशा रहती है। SLR, नकदी, स्वर्ण भंडार तथा सरकारी बोण्ड या प्रतिभूतियां आदि किसी भी रूप में हो सकता है। SLR का यह अनुपात RBI द्वारा निर्धारित होता है।

जनमानस पर इसका प्रभाव

SLR ही निर्धारित करती है कि बैंक कितना ऋण दे सकती है। अगर बैंक किसी मुश्किल में आ जाता है तो RBI, SLR के द्वारा ग्राहकों के पैसे की कुछ हद तक भरपाई कर देती है।
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