वेबर का न्यूनतम लागत सिद्धांत क्या था?

किसी भी प्रदेश में उद्योगों की स्थापना कई बातों पर निर्भर करती है। जैसे – कच्चे माल की उपलब्धता, श्रम की उपलब्धता, पूंजी, तकनीक स्तर एवं परिवहन के साधन मुख्य है। सामान्यतः उद्योग की स्थापना के लिए इन सभी अनिवार्य तत्वों को एक साथ एकत्रित करने की आवश्यकता उत्पन्न होती है। साथ ही उद्योग की स्थापना का मुख्य उद्देश्य अधिकतम लाभ प्राप्त करना है। इस दृष्टिकोण से उद्योग की स्थापना के लिए आवश्यक तत्वों को एक साथ एकत्रित करने अर्थात स्थानीयकरण की समस्या उत्पन्न होती है। इस संदर्भ में ही उद्योग के स्थानीयकरण का सिद्धांत प्रतिपादित किया गया।

वेबर का न्यूनतम परिवहन लागत सिद्धांत एक प्रमुख औद्योगिक अवस्थिति सिद्धांत है। वेबर ने 1909 में उद्योगों के स्थानीयकरण से संबंधित महत्वपूर्ण विचार दिए। इनका सिद्धांत इस अवधारणा पर आधारित है कि न्यूनतम परिवहन लागत का बिंदु ही अधिकतम लाभ की जगह होगा। अतः उद्योगों की स्थापना के लिए परिवहन लागत  का बिंदु या स्थान का निर्धारण आवश्यक है।
       
वेबर ने अपने सिद्धांत के प्रतिपादन के लिए कुछ मान्यताओं का सहारा लिया, जो इस प्रकार है :
    1. संपूर्ण प्रदेश एक विलग और स्वतंत्र इकाई के रूप में होना चाहिए। जहां एक प्रशासनिक व्यवस्था हो तथा जलवायविक प्रजातीय एवं सांस्कृतिक समरूपता हो।
    2. क्षेत्र में एक बाजार हो और किसी भी उद्योग की स्थापना किसी भी स्थान पर की जा सकती है। इस तरह से पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति को भी अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार किया गया है।
    3. पूंजी और तकनीक का स्तर सभी जगह समान हो।
    4. श्रमिक समान रूप से सभी क्षेत्र में उपलब्ध हो।
    5. परिवहन लागत में भार और दूरी के अनुसार इकाई वृद्धि होती हो।
      उपरोक्त मान्यताओं की स्थिति में उद्योगों की स्थापना को दो तत्व प्रभावित करेंगे –
    6. कच्चे माल का एक एकत्रीकरण एवं परिवहन
    7. श्रम की स्थिति अर्थात श्रम लागत
उन्होंने परिवहन लागत को अधिक महत्व दिया और न्यूनतम परिवहन लागत की जगह को ही अधिकतम लाभ की जगह बताया अर्थात उद्योग की स्थापना को परिवहन लागत सर्वाधिक प्रभावित करेगी, अतः न्यूनतम लागत का बिंदु ही अधिकतम लाभ का बिंदु होगा। जहां उद्योगों की स्थापना की आदर्श स्थिति होगी।
वेबर ने अपने सिद्धांत दो प्रकार के उद्योगों की स्थिति में प्रतिपादित किये –
    •  एक कच्चे माल पर आधारित उद्योग की स्थिति
    •  दो कच्चे माल पर आधारित उद्योग की स्थिति

एक कच्चे माल पर आधारित उद्योग

यदि किसी प्रदेश में किसी उद्योग के लिए एक कच्चा माल आवश्यक हो तब उद्योगों की स्थापना की निम्न परिस्थितियां उत्पन्न होंगी –
    • जब कच्चा माल सर्वत्र उपलब्ध हो, ऐसे में उद्योगों की स्थापना बाजार के करीब होगी। जैसे – सेवा क्षेत्र के उद्योग की स्थापना।
    • जब कच्चा माल शुद्ध एवं स्थानीय हो तो उद्योग की स्थापना बाजार, कच्चे माल के क्षेत्र या मध्य में कहीं भी की जा सकती है क्योंकि इस स्थिति में कच्चे माल से उत्पादन में वजन समान रहता है। जैसे – सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना।
    • जब कच्चा माल अशुद्ध एवं स्थानीय हो ऐसे में उद्योग की स्थापना कच्चे माल के क्षेत्र में ही की जाएगी। क्योंकि इस स्थिति में कच्चे माल की तुलना में उत्पाद का वजन कम हो जाता है। अतः यहां उद्योग की स्थापना की प्रवृत्ति कम परिवहन मूल्य की दृष्टि से उत्पाद को बाजार तक ढोने की होगी। जैसे – चीनी उद्योग की स्थापना।

दो कच्चे माल पर आधारित उद्योग की स्थिति

जब किसी उद्योग के लिए दो कच्चे मालों की आवश्यकता होती है तो ऐसे में उद्योग की स्थापना कच्चे माल के क्षेत्र एवं बाजार से मिलकर बनने वाले प्रादेशिक त्रिभुज के अंतर्गत होगी। यहां भी उद्योग की स्थापना की मुख्य प्रवृत्ति न्यूनतम परिवहन लागत की बिंदु का निर्धारण करना है। सामान्यतः इस स्थिति में उद्योग की स्थापना कच्चे माल और बाजार के मध्य मिलन बिंदु पर होती है इसकी दो परिस्थितियां हैं –
 
    • जब वजन ह्रास होने की स्थिति हो अर्थात कच्चे माल की तुलना में उत्पाद का वजन घट जाता है तो ऐसे में उद्योग की स्थापना कच्चे माल के क्षेत्र के करीब के आधार के नजदीक होती है। इस स्थिति में कच्चे माल को न्यूनतम दूरी तक ढोने की प्रवृत्ति होती है। ताकि परिवहन लागत कम हो अर्थात उत्पाद को अधिक दूरी तक ढोया जा सकता है जैसे लोहा इस्पात उद्योग एवं सीमेंट उद्योग।
  • जब वजन वृद्धि उद्योग की स्थिति हो अर्थात कच्चे माल की तुलना में उत्पाद का वजन अधिक हो तो उद्योग की स्थापना त्रिभुज के अंतर्गत बाजार के करीब होगा। इस अवस्था में उद्योग की स्थापना की मुख्य प्रवृत्ति उत्पाद को कम दूरी तक परिवहन करना है, ताकि परिवहन लागत न्यूनतम हो। जैसे बेकरी उद्योग या वर्तमान खाद्य प्रसंस्करण उद्योग।
इस तरह वेबर ने विभिन्न परिस्थितियों में उद्योगों के स्थानीयकरण का निर्धारण किया जिसका मुख्य आधार न्यूनतम परिवहन लागत है। हालांकि दो विशेष परिस्थितियों में उद्योग की स्थापना के वर्तमान स्वरूप में परिवर्तन या संशोधन को भी स्वीकार किया गया।
  1. सस्ते श्रम की उपलब्धता
  2. उन्नत तकनीक स्तर की उपलब्धता
इन दो स्थितियों में उद्योग की स्थापना न्यूनतम परिवहन लागत बिंदु से अलग भी की जा सकती है। यदि किसी स्थान पर श्रम लागत, न्यूनतम परिवहन लागत बिंदु की अपेक्षा अत्यंत कम हो, ताकि कुल लागत में कमी आ जाए, तो ऐसे में उद्योग की स्थापना सस्ते श्रम के बिंदु पर की जा सकती है। इसके लिए इन्होंने आइसोडापेन का प्रयोग किया।
आइसोडापेन एक काल्पनिक रेखा है जो न्यूनतम परिवहन लागत बिंदु से इकाई वृद्धि वाले परिवहन लागत बिंदुओं को मिलाने से बनती है। आइसोडापेन के द्वारा वेबर ने न्यूनतम परिवहन लागत बिंदु की तुलना में अन्य स्थानों के परिवहन लागत का निर्धारण किया, जहां दूरी के अनुसार परिवहन लागत में इकाई वृद्धि होती है।
उद्योग  परिवहन लागत   श्रम लागत  कुल लागत
A पर       4                     10            14
B पर       5                     10            15
F पर       9                        2            11
उपरोक्त स्थिति में A बिंदु पर न्यूनतम लागत परिवहन है जबकि F बिंदु पर परिवहन लागत अधिकतम है लेकिन सस्ते श्रम के कारण कुल लागत श्रम कम हो जाता है। अतः उद्योग की स्थापना F बिंदु पर की जाएगी।
इस तरह वेबर ने सैद्धांतिक और सीमित रूप से व्यावहारिक सिद्धांत दिया, जिसे प्रारंभ के वर्षों में पर्याप्त मान्यता प्राप्त हुई। लेकिन आधुनिक अर्थव्यवस्था एवं प्रतिस्पर्धा तथा क्रेताओं की बदलती हुई मानसिकता जैसे कई कारण उद्योगों के स्थानीयकरण को प्रभावित करते हैं जबकि वे वेवर का मॉडल सैद्धांतिक मॉडल है। साथ ही इनकी मान्यताएं पूर्णतः अमान्य हो चुकी है। 
                वैश्विक अर्थव्यवस्था में स्वतंत्र विलग प्रदेश का होना स्वीकार नहीं किया जा सकता। पुनः इनका सिद्धांत न्यूनतम परिवहन लागत का निर्धारण करता है और प्रतीक इकाई परिवहन लागत में इकाई वृद्धि को आधार बनाता है। जबकि वर्तमान परिवहन व्यवस्था में दूरी के अनुसार परिवहन लागत में सापेक्षिक वृद्धि होती है। इस आधार पर भी इस सिद्धांत की आलोचना की गई है।
उद्योगों के स्थानीयकरण से संबंधित ही अन्य सिद्धांत भी प्रस्तुत किए गए जिसकी मौलिक अवधारणा वेवर के सिद्धांत की तुलना में अधिक व्यवहारिक है। इनमें हुबर का न्यूनतम लागत सिद्धांत, फैटर और होटेलिंग का बाजार प्रतिस्पर्धा का सिद्धांत, स्मिथ का अधिकतम लाभ सिद्धांत मुख्य है। 
बाजार प्रतिस्पर्धा के सिद्धांत में बाजार की प्रवृत्ति, उपभोक्ता की प्रवृत्ति को महत्व दिया गया। स्मिथ ने उपभोक्ताओं की क्रय क्षमता को महत्व दिया और कहा कि अधिकतम लागत की जगह भी अधिकतम लाभ की जगह हो सकती है। यदि क्रेयता अधिक मूल्य देने को तैयार हो तो वहां उद्योग की स्थापना अधिक लागत के बावजूद की जा सकती है। स्मिथ ने उपभोक्ताओं की क्रय क्षमता में अंतर के संदर्भ में भी उद्योग की स्थापना पर विचार प्रस्तुत किया। अतः स्पष्ट है कि वेबर के बाद के सिद्धांतों में उत्पादन लागत, परिष्करण लागत, प्रतिस्पर्धा की स्थिति, क्रेता की क्रय क्षमता को प्रमुखता दी गई। वर्तमान में क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रशासनिक एवं आर्थिक नीतियां भी उद्योग को प्रमुखता से प्रभावित करती हैं। जिसको वेबर ने कोई महत्व नहीं दिया।
इस तरह वेबर के सिद्धांत की आलोचना कई आधार पर की जाती है। इसके बावजूद प्रारंभिक औद्योगिक अवस्थिति सिद्धांत के रूप में इसका महत्व बना हुआ है। पुनः वर्तमान में भी कई उद्योगों के स्थानीयकरण की प्रवृत्ति वेबर के सिद्धांत के अनुरूप ही पाई जाती है। विशेषकर चीनी उद्योग की स्थापना गन्ना के क्षेत्र में ही होती है। लोहा इस्पात उद्योग, सीमेंट उद्योग के स्थानीयकरण की प्रवृत्ति वर्तमान में भी कच्चे माल के क्षेत्रों में बनी हुई है। इसका प्रमुख उदाहरण संयुक्त राज्य अमेरिका की महान झील (ग्रेट लेक्स) प्रदेश में लोहा इस्पात उद्योग का केंद्रीयकरण तथा भारत में लोहे तथा कोयले के क्षेत्र में लोहा इस्पात उद्योग की स्थापना है। सूती वस्त्र उद्योग, बेकरी उद्योग की प्रवृत्तियां भी इस सिद्धांत के अनुरूप पाई जाती हैं।
नोट : सूक्ष्म इलेक्ट्रॉनिक उद्योग अर्थात वैसे उद्योग जहां कच्चे माल का कम उपयोग होता है या फुटलुज उद्योग के लिए यह सिद्धांत सही नहीं है।

One thought on “वेबर का न्यूनतम लागत सिद्धांत क्या था?

Comments are closed.