मानव विकास सूचकांक विश्व के विभिन्न देशों में मानव के विकास की वर्तमान स्थिति को स्पष्ट करता है। इसके द्वारा मानव की बुनियादी अनिवार्य आवश्यकताओं के संदर्भ में मानव विकास को निर्धारित किया जाता है तथा विश्व के विभिन्न देशों में मानव विकास की स्थिति का आंकलन किया जाता है।
विश्व के मानव विकास सूचकांक (HDI) को निर्धारित करने का कार्य संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा किया गया है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) प्रत्येक वर्ष विश्व के विभिन्न देशों के बीच मानव विकास की स्थिति का निर्धारण मानव विकास सूचकांक के द्वारा करता है। साथ ही मानव विकास की दृष्टि से पिछड़े देशों को सहायता प्रदान करता है।
मानव विकास के लिए सलाह या परामर्श तथा मानव विकास सूचकांक के निर्धारण में मुख्यतः निम्न आधार अपनाए जाते हैं।
- जीवन प्रत्याशा
- शिक्षा का स्तर
- प्रतिव्यक्ति वास्तविक आय
UNDP द्वारा मानव विकास सूचकांक के आधार पर संपूर्ण विश्व को 3 भागों में विभाजित किया जाता है।
- उच्च मानव विकास श्रेणी – इसमें वैसे देश सम्मिलित किए जाते हैं, जिनका HDI मूल्य 0.8 से अधिक होता है। जैसे – नॉर्वे (प्रथम) उसके बाद आयरलैंड, स्विट्जरलैंड, हांगकांग और आइसलैंड को जगह मिली।
- मध्यम मानव विकास श्रेणी – इसमें वैसे देश सम्मिलित किए जाते हैं जिनका HDI मूल्य 0.5 से 0.8 के बीच होता है। जैसे – वियतनाम, ईराक, नामिबिया, भारत, भूटान और बांग्लादेश।
- निम्न मानव विकास श्रेणी – इसमें वैसे देश सम्मिलित किए जाते हैं। जिनका HDI मूल्य 0.5 से कम होता है। जैसे – युगांडा, रवांडा, नाइजीरिया, चाड, माली, इरिट्रिया, सूडान, यमन, इथोपिया और लीबिया।
HDI का विकास पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब-उल-हक द्वारा किया गया था। इसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा प्रकाशित किया गया हैं। मानव विकास रिपोर्ट तैयार करने के लिए, महबूब उल हक ने पॉल स्ट्रीटन, शशांक जायसवाल, फ्रैन्सस स्टीवर्ट, गुस्ताव रानीस, कीथ ग्रिफिन, सुधीर आनंद और मेघनाद देसाई सहित विकास अर्थशास्त्रियों के एक समूह का गठन किया। नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने मानव क्षमताओं पर अपने काम में हक के काम का इस्तेमाल किया। मानव विकास सूचकांक को मापने की निम्नलिखित विधि है।
HDI=1/3 (LRI+EA:S:T) जहां,
- LRI – जीवन प्रत्याशा सूचकांक,
- EAI – शिक्षा प्राप्ति का सूचकांक
- SLI – जीवन स्तर का सूचकांक
मानव विकास रिपोर्ट 2005
UNDP द्वारा जारी वार्षिक मानव विकास रिपोर्ट 2005 विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अंतरराष्ट्रीय सहायता पर केंद्रित है। इसी रिपोर्ट से पता चलता है कि महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विकास की गति धीमी हुई है। इसमें वैश्विक आर्थिक विषमता पर चिंता जताते हुए बताया गया है कि गरीबों एवं अमीरों के बीच की खाई निरंतर चौड़ी होती जा रही है। रिपोर्ट में बताया गया है कि $1 प्रतिदिन से कम पर जीवन यापन करने वाले एक अरब लोगों को गरीबी रेखा के ऊपर रखने के लिए 300 अरब डॉलर व्यय की आवश्यकता है। पुनः शिशु मृत्यु दर में गरीब तथा अमीर देशों के बीच अंतर बढ़ा है।
- उप-सहारा अफ्रीकी प्रदेश में शिशु मृत्यु दर 1980 में विकसित देशों का 13 गुना थी, जो वर्तमान में 29 गुना हो गई है। पुनः कुछ विकासशील देश जैसे चीन एवं भारत ऐसे हैं, जहां राष्ट्रीय आय में वृद्धि हुई है। लेकिन शिशु मृत्यु दर में कमी नहीं आई है।
- रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में 189 देशों में मानव विकास सूचकांक की सूची में भारत का स्थान 131वां, भूटान 129वें, बांग्लादेश 133वें, नेपाल 142वें तथा पाकिस्तान 154वें स्थान पर रहा।
- PHDI को शामिल करने के बाद, 50 से अधिक देश ‘उच्च मानव विकास समूह’ से बाहर हो गए, जिससे यह संकेत मिलता है कि वे जीवाश्म ईंधन और भौतिक पदचिह्न पर अत्यधिक निर्भर हैं।
- भारत का मानव विकास रिपोर्ट – UNDP के तर्ज पर भारत ने मानव विकास रिपोर्ट प्रकाशित करना प्रारंभ किया है। सर्वप्रथम 2002 में भारत की मानव विकास रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी। इस रिपोर्ट में मानव विकास सूचकांक तथा मानव निर्धनता सूचकांक तैयार किया गया है।
- मानव विकास सूचकांक – इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक सूचक सम्मिलित है। शिक्षा को साक्षरता दर, विद्यालय में बिताए गए औसत वर्ष, जैसे उपसूचकों से परिभाषित किया गया है। स्वास्थ्य को शिशु मृत्यु दर, 1 वर्ष की उम्र में जीवन संभावना दर, जैसे उपसूचकों से तथा आर्थिक सूचक को प्रतिव्यक्ति व्यय जैसे उप-सूचकों से परिभाषित किया गया है।
- मानव निर्धनता सूचकांक – इसमें निर्धनता के साथ-साथ, आवास, आस-पास का वातावरण, मूलभूत सुविधाओं तक पहुंच के उप-सूचक का प्रयोग किया गया है।
उपरोक्त सूचकांकों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया कि 1980 के दशक में समग्र मानव विकास वृद्धि दर 2.4 प्रतिशत वार्षिक रही। जो 1990 के दशक में बढ़कर 3 प्रतिशत वार्षिक हो गई। रिपोर्ट में कहा गया कि उदारीकरण के दौर में पिछले 10 वर्षों में देश के समग्र विकास सूचकांक में बेहतर सुधार हुआ है। निर्धनता सूचकांक के अंतर्गत 1983 में 47 प्रतिशत, 1993-94 में 39 प्रतिशत तथा वर्तमान में लगभग 27 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे थी।
महिला पुरुष अनुपात में मामूली सुधार की बात भी कही गई है। जहां तक व्यय का सवाल है तो ग्रामीण जनता की व्यय क्षमता में कमी आई है, जबकि शहरी क्षेत्र में जनता के व्यय क्षमता में वृद्धि हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, प्रतिव्यक्ति उपभोक्ता व्यय पंजाब, हरियाणा, केरल एवं राजस्थान में राष्ट्रीय स्तर से अधिक है।
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