औद्योगिक रूग्णता (Industrial Sickness) क्या है?

भारत में औद्योगिक क्षेत्र की समस्याओं में औद्योगिक अस्वास्थ्यता या रूग्णता एक गंभीर समस्या है। रूग्ण औद्योगिक इकाइयों के निरंतर वित्तीय प्रवाह से बैंकिंग संसाधनों का दुरुपयोग तो होता ही है, साथ-साथ सरकार पर खर्चे का भार भी बढ़ता है।
1985 के अस्वस्थ औद्योगिक कंपनी अधिनियम के अधीन आरंभ में केवल निजी क्षेत्र की इकाइयों को ही बीमार इकाइयों में शामिल किया गया था, किंतु दिसंबर 1991 से सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को भी इसमें शामिल कर लिया गया। 1992 के संशोधन विधेयक के द्वारा 1985 के अधिनियम में दो परिवर्तन किए गए। पहला पंजीकरण की अवधि 7 वर्ष से घटाकर 5 वर्ष कर दी गई तथा नगद हानि को छोड़ दिया गया।

दिसंबर 2002 में पारित किए गए कंपनी (द्वितीय संशोधन) अधिनियम के अनुसार उन कंपनियों, संस्थानों अथवा नियमों को माना जाता है।

  1. जिसकी विचाराधीन वर्ष में कुल संचित हानि पिछले 4 वर्षों में उसकी औसत निबल मालियत 50% से अधिक हो अथवा 
  2. जो लेनकर्ता की मांग के बावजूद लगातार तीन तिमाही अवधियों के भी लिए गए ऋण की अदायगी न कर सके।
पिछले कुछ वर्षों में भारत में बीमार उद्योग इकाइयों की संख्या बढ़ी है। जून 1987 के अंत में 159938 औद्योगिक इकाइयां बीमार घोषित की गई थी और उन पर बैंक ऋणो् का बकाया राशि 5738 करोड़ पर था।

औद्योगिक रुग्णता के कारण

औद्योगिक इकाइयों में रुग्णता के निम्नलिखित कारण है।

  •  कच्चे माल की अनियमित आपूर्ति :

कुछ औद्योगिक इकाइयां ऐसे कच्चे माल का उपयोग करती हैं जिनकी आपूर्ति अनियमित है। इसका परिणाम यह होता है कि उत्पादन कार्य भी अनियमित हो जाता है और औद्योगिक इकाइयों को हानि उठानी पड़ती है। ऐसा प्राय उन इकाइयों में होता है जो आयातित कच्चे माल का इस्तेमाल करती हैं।

  •  सरकार की नीतियां :

सरकारी नीतियों के कारण भी औद्योगिक इकाइयां अस्वस्थ हो जाती हैं। आयात, निर्यात, औद्योगिक लाइसेंस, कराधान आदि के बारे में सरकारी नीति अचानक बदल जाने से औद्योगिक इकाइयां अस्वस्थ हो जाती है। सरकार ने विश्व व्यापार संगठन को दिए गए वादे के कारण पिछले कुछ वर्षों में घरेलू बाजार को विदेशी वस्तुओं के लिए खोल दिया है तथा विदेशी व्यापार पर माता आत्मक प्रतिबंधों को समाप्त कर दिया है इससे कई उद्योग इकाइयों के लिए गंभीर समस्या पैदा हो गई है।

  •  वित्तीय समस्याएं :

अनेक औद्योगिक इकाइयों के सामने परियोजना तैयार करने की अवस्था से लेकर उसे लागू करने तक और उसके बाद भी वित्तीय समस्याएं बनी रहती है। छोटे पैमाने की इकाइयों का प्रायः शेयर पूंजी आधार कमजोर होता है और बाजार में थोड़ी सी गड़बड़ी से उन पर वित्तीय दबाव बढ़ जाता है। प्रायः लघु इकाइयां बैंकों और दूसरी वित्तीय संस्थाओं से ऋण लेती हैं और उन्हें समय पर वापस नहीं कर पाती। उन पर वापस में होने वाले ऋण का बाहर बढ़ जाता है और वह बीमार बन जाती हैं।

  •  उद्यम कर्ताओं की अयोग्यता :

अधिकांश लोग जो छोटे पैमाने पर औद्योगिक इकाइयों की स्थापना करते हैं अयोग्य उद्यम कर्ता होते हैं। उनके पास जो  वस्तु वे उत्पादित करते हैं। उसके बारे में बुनियादी तकनीकी जानकारी और व्यवसायिक बुद्धि नहीं होती। ऐसी स्थिति में औद्योगिक इकाइयों का अस्वस्थ बनना स्वभाविक हो जाता है।

  •  बिजली की कटौती :

भारत में बिजली का उत्पादन आवश्यकता से कम है। इस स्थिति में बहुत सारी इकाइयों को बिजली की कटौती का सामना करना पड़ता है। इस वजह से उत्पादन प्रभावित होता है और इकाइयां सामान्य रूप से काम नहीं कर पाती।

  •  मांग में कमी अथवा मंदी के कारण :

कभी-कभी बाजार में मंदी के कारण मांग में भारी कमी हो जाती है और बिना बिका माल बचा रह जाता है इससे औद्योगिक इकाइयों को हानि उठानी पड़ती है और यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहती है तो संबंधित इकाइयां अस्वस्थ हो सकती हैं।

  •  श्रम संबंधी समस्याओं के कारण :

कभी-कभी हड़ताल तालाबंदी के कारण भी औद्योगिक इकाइयां बंद होने के कगार पर पहुंच जाती हैं। यह समस्याएं प्रायः श्रम संघों और प्रबंधकों के बीच मजदूरी, मजदूरों की छटनी, या निलम्बन आदि के कारण उत्पन्न मतभेदों से पैदा होती है। अगर इन समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता है तो संबंधित इकाई अस्वस्थ बन जाती है।

औद्योगिक अस्वस्थता दूर करने के उपाय

भारत में औद्योगिक अस्वस्थता को एक सामाजिक समस्या के रूप में देखा जाता है। यही कारण है कि सरकार द्वारा अस्वस्थ इकाइयों को अनेक रियायतें, प्रोत्साहन, अनुदान आदि दिए जाते हैं, ताकि यें इकाइयां फिर स्वस्थ्य बनकर अपने पैरों पर खड़ी हो सके। 

  • रिजर्व बैंक द्वारा किए गए प्रयास :

किसी अस्वस्थ औद्योगिक इकाई की समस्या दूर करने के लिए उपायों में सबसे पहला कार्य अस्वस्थ इकाई का शीघ्र पता लगाना होता है। रिजर्व बैंक ने समय-समय पर प्रारंभिक अवस्था में ही अस्वस्थता का पता लगाकर उसे दूर करने के उपाय करने की आवश्यकता पर जोर दिया है। जिन वर्गों की औद्योगिक इकाइयां रुग्ण औद्योगिक कंपनी अधिनियम, 1985 के अंतर्गत नहीं आती, उनके बारे में रिजर्व बैंक ने बैंकों को सुझाव दिया है कि जैसे ही इनमें से कोई भी औद्योगिक इकाई कमजोर हो जाती है अर्थात उसकी 50% या उससे अधिक विशुद्ध पूंजी नष्ट हो जाती है। वैसे ही उसको पुनः स्वस्थ बनाने के लिए उपाय शुरू कर देना चाहिए।

  • भारतीय औद्योगिक निवेश बैंक की स्थापना :

अस्वस्थ औद्योगिक इकाइयों को फिर से स्वस्थ बनाने के लिए विविध प्रकार की सहायता देने के उद्देश्य से भारत सरकार ने भारतीय औद्योगिक पुनर्निर्माण निगम की स्थापना की, जिसे 1997 में भारतीय औद्योगिक निवेश बैंक बना दिया गया। इसके मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं –

  1. अस्वस्थ औद्योगिक इकाइयों को वित्तीय सहायता पहुंचाना। 
  2. अस्वस्थ औद्योगिक इकाइयों को प्रबन्धनीय एवं तकनीकी सहायता देना।
  3. अस्वस्थ औद्योगिक इकाइयां फिर से स्वस्थ बन सके इसके लिए अन्य वित्तीय संस्थाओं और सरकारी संगठनों से उन्हें वित्तीय सहायता दिलाना।
  4. समामेलन, विलयन आदि के लिए मर्चेंट बैंकिंग सेवा उपलब्ध कराना।
  5. बैंकों को अस्वस्थ औद्योगिक इकाइयों के बारे में परामर्श सेवाएं प्रदान करना।

औद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड की स्थापना

अस्वस्थ औद्योगिक कंपनी (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1985 के अंतर्गत भारत सरकार ने जनवरी 1987 में औद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड की स्थापना की। इसका कार्य अस्वस्थ औद्योगिक कंपनियों के विषय में वे सभी उपाय तय करना था जिनसे अस्वस्थता को रोका जा सके। उपाय तय हो जाने के बाद उन्हें किस तरह लागू करना है यह बताना भी बोर्ड का कार्य है। मई, 1987 में अपनी स्थापना से लेकर दिसंबर, 2007 के अंत तक बोर्ड के समक्ष 7158 मामले सामने आए। इन मामलों में से 5,471 मामलों का पंजीकरण किया गया तथा बाकी को रद्द कर दिया गया तथा कुछ समय पुनर्रीक्षण के बाद 825 मामलों में पुनर्निर्माण योजनाओं की स्वीकृति दी गई।

सरकार द्वारा दी गई रियायतें

सरकार ने बिना सीधे हस्तक्षेप के अस्वस्थ औद्योगिक इकाइयों के पुनरुद्धार के लिए कुछ रियायतें दी हैं जो निम्नलिखित हैं।

  1. जून, 1987 में छोटे पैमाने पर उत्पादन के क्षेत्र में औद्योगिक अस्वस्थता कम करने के उद्देश्य से एक उदार अतिरिक्त मुद्रा राशि योजना शुरू की गई। इस योजना के अंतर्गत राज्य सरकारें छोटी औद्योगिक इकाइयों को अपनी अस्वस्थता दूर कर फिर से स्वस्थ स्थिति में लाने के लिए सहायता देती है। इसके लिए शर्त यह है कि इकाई जितनी राशि स्वयं जुटाती है उसे उतनी राशि ही सरकार से मिलेगी 
  2. अक्टूबर 1989 में सरकार द्वारा अस्वस्थ्य कमजोर औद्योगिक इकाइयों के लिए उत्पादन ऋण की योजना को स्वीकृति दी गई। इसके अधीन अस्वस्थ औद्योगिक इकाइयों को उत्पादन शुल्क में रियायत दी गई।
  3. सरकार ने 1947 में आयकर में एक संशोधन द्वारा उन स्वस्थ्य इकाइयों को एक कर (Tax) संबंधी रियायत दी है जो अस्वस्थ इकाइयों को ठीक करने के उद्देश्य से उन्हें अपने में मिला देती हैं। कर संबंधी रियायत के अंतर्गत यह व्यवस्था की गई कि समामेलित अस्वस्थ इकाई की एकत्रित व्यावसायिक हानियों और उस मूल्य ह्रास को जिसकी पहले व्यवस्था नहीं की गई है आगे ले जा सकती है।

कंपनीज (द्वितीय संशोधन) अधिनियम 2002

सरकार ने संसद में दिसंबर 2002 में कंपनीज एक्ट पारित किया, जिसने औद्योगिक कंपनी अधिनियम 1985 का स्थान लिया है। नए अधिनियम में अवस्थता की परिभाषा को पूरी तरह बदल दिया गया है। नई परिभाषा के अनुसार, यदि कोई कंपनी लगातार 9 महीने तक, मांगने के बावजूद, लेनदार को ऋण नहीं लौटा पाती तो उसे अस्वस्थ घोषित किया जा सकता है।

स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना

सरकार ने अस्वस्थ और हानि उठा रहे उद्यमों की पुनः संरचना के प्रयास में सरकार ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना को और उदार बना दिया है ताकि केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम अतिरिक्त श्रम शक्ति से छुटकारा पा सके।

औद्योगिक रुग्णता पर गठित समितियां

  • गोस्वामी समिति 1993 :

सरकार औद्योगिक अस्वस्थ्ता दूर करने के लिए सुझाव प्राप्त करने के लिए अप्रैल, 1993 में भारतीय सांख्यिकी संस्थान के डॉ ओमकार गोस्वामी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई, जिसने 13 जुलाई, 1993 को अपनी रिपोर्ट वित्त मंत्रालय को सौंप दी थी। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में औद्योगिक इकाइयों को अस्वस्थ घोषित किए जाने के लिए पूर्व निर्धारित परिभाषा को बदलने के साथ-साथ रूग्ण औद्योगिक कंपनी अधिनियम के आमूल-चूल परिवर्तन करने का सुझाव दिया। 

 इसके अतिरिक्त समिति ने औद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड की भूमिका में बदलाव के लिए भी प्रस्ताव किया। समिति का कहना था कि बोर्ड की रुचि बीमार इकाइयों को बंद करने के स्थान पर उनके पुनरुत्थान में अधिक रही है। वास्तव में पुनरुत्थान के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना अकुशल और गैर जिम्मेदार उद्यमियों को पुरस्कृत करने के समान है। यही नहीं, इससे श्रमिकों को आपातकालीन लाभ ही मिल पाता है, दीर्घकालीन में उन्हें हानि ही उठानी पड़ती है।

  • इराडी समिति 2000 :

औद्योगिक इकाईयों के दिवालियापन के संबंध में सुझाव देने के लिए बी. बालकृष्ण इराडी की अध्यक्षता में गठित समिति ने 31 अगस्त, 2000 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

इराडी समिति ने कंपनियों के पुनर्गठन के संबंध में सरकारी नीतियों के आमूल-चूल परिवर्तन के लिए सुझाव दिए थे। समिति ने एक ऐसे राष्ट्रीय न्यायाधिकरण के गठन का प्रस्ताव किया जिसे कंपनी लॉ बोर्ड के सारे अधिकार प्राप्त हों। समिति के प्रस्ताव न्यायाधिकरण के माध्यम से वह सारे कार्य निपटाने का सुझाव दिया था, जो अस्वस्थ औद्योगिक कंपनी अधिनियम के तहत फिलहाल औद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्गठन अपीली प्राधिकरण द्वारा निपटाए जा रहे हैं। समिति ने अपनी रिपोर्ट अस्वस्थ औद्योगिक कंपनी अधिनियम के साथ-साथ उपयुक्त दोनों निकायों को समाप्त करने के सुझाव दिए थे।

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