जैव विविधता जीवन और विविधता के संयोग से निर्मित शब्द है जो आमतौर पर पृथ्वी पर मौजूद जीवन की विविधता और परिवर्तनशीलता को संदर्भित करता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अनुसार, जैवविविधता (Biodiversity) विशिष्टतया अनुवांशिक, प्रजाति, तथा पारिस्थितिकि तंत्र के विविधता का स्तर मापता है।
जैव विविधता में ह्रास का तात्पर्य विभिन्न जीवो एवं वनस्पतियों के प्राकृतिक उत्पादन प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होने से उनकी संख्या तथा अनुवांशिक गुणों में कमी आना है। जिससे विभिन्न जीव-जंतुओं, वनस्पतियों की कई प्रजाति विलुप्त हो जाती है, या विलुप्त होने की स्थिति में होती हैं।
जैव विविधता में ह्रास का संकट मुख्यत: मानवीय हस्तक्षेप के कारण उत्पन्न संकट है। वर्तमान में प्रतिवर्ष 100 से लेकर 1000 तक विविध जीवो की जातियां तथा उपजातियां विलुप्त हो रही हैं। यदि वर्तमान दर से ही जैव विविधता में ह्रास होता रहा तो कुछ दशकों में ही पौधे, जंतुओं तथा सूक्ष्म जीवों की लाखों प्रजातियों का विनाश हो जाएगा, जो वृहद जैव विविधता संकट के रूप में सामने आएगा। जैव विविधता में ह्रास से हमारे भोजन की आपूर्ति ईधन और औषधि-दवाइयों, ऊर्जा के स्रोत, मनोरंजन एवं पर्यटन के अफसरों में भारी कमी आ जाएगी। जो मानवीय अधिवासीय संकट उत्पन्न कर सकता है।
पुनः भूमि अपरदन चक्र, अवशिष्टों का अवशोषण, अपघटक तत्वों में कमी, कार्बन तथा पोषण तत्वों का चक्रण अर्थात जीवो के मध्य पदार्थ तथा ऊर्जा का प्रवाह बाधित होंगे जो पारिस्थितिक तंत्र को असंतुलित कर देगी। अतः जैव विविधता में ह्रास के कारणों की पहचान कर उन्हें दूर करना अति आवश्यक है।
जैव विविधता में ह्रास के कारण
जैव विविधता में ह्रास के विभिन्न प्राकृतिक एवं अकस्मिक कारण, लेकिन मानवीय हस्तक्षेप ही जैव विविधता संकट का प्रमुख कारण है।
- मानवीय कारक : इसमें वन्य जीवो का अवैध शिकार, अति मत्स्यन, समुद्री संसाधनों का दोहन, औद्योगिक व्यापारिक उत्पादन, औद्योगिक, नगरीय, पर्यावरण प्रदूषण, कृषि की नवीन तकनीक आधी से ज्यादा संकट उत्पन्न हो रहा है।
- प्राकृतिक कारक : प्रमुख कारकों में तापमान वृद्धि, जलवायु परिवर्तन, ओजोन क्षरण, अम्ल वर्षा आदि प्रमुख कारक है।
- आकस्मिक कारक : भूकंप, तूफान तथा चक्रवात, बाढ़, सूखा, भूस्खलन, सुनामी तथा भूकंप आदि।
इस तरह जैव-विविधता के संकट का मूल का मानव जाति है, क्योंकि जनसंख्या वृद्धि के कारण मानवीय आवश्यकताओं, आर्थिक गतिविधियों के कारण जैव विविधता में ह्रास की दर बढ़ती है।
जैव विविधता में ह्रास के विभिन्न कारण निम्नलिखित हैं।
(1) तीव्र जनसंख्या वृद्धि :
तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या एवं आर्थिक विकास के कारण जैविक संसाधनों की बढ़ती मांग तथा जैविक संसाधनों पर दबाव जैव-विविधता में ह्रास का एक प्रमुख कारण है।
(2) आवासों का विनाश :
जीवो एवं वनस्पतियों का प्राकृतिक आवास होता है, जिसमें जीव जंतुओं का समुचित विकास होता है। लेकिन मानवीय हस्तक्षेप के कारण इन प्राकृतिक आवासों का विनाश सभ्यता के प्रारंभ से ही चला आ रहा है। वनों का विनाश होने से वन्यजीवों के सामूहिक सहजीविता को बाधित कर दिया गया तथा वन्य जीव एकाकी समूह में विभक्त हो गए। जिसमें उनकी प्रकृतिक अनुकूलन क्षमता में कमी आई तथा प्राकृतिक विपदाओं से लड़ने की शक्ति भी कम हो गई। इससे जैव संकट उत्पन्न हो गया।
(3) प्राकृतिक आवासों का बिखराव :
वन्यजीवों के आवास विगत शताब्दी में अनेक विकास क्रियाओं के कारण विखराव की स्थिति में आ गए हैं। वन्यजीवों के बड़े प्राकृतिक आवासों के मध्य सड़कें, कस्बे, रेलवे लाइन, नहरें, पर्यटक स्थल, बड़े बांध, जल विद्युत परियोजनाएं आदि विविध कार्य के लिए स्थान यु नगर बन गए हैं। जिसके कारण प्राकृतिक आवास टूट गया।
(4) वन्य जीवो का अवैध शिकार :
वन्यजीवों के अवैध शिकार एवं व्यापार के कारण तीव्रता से जीवो के विलुप्त होने का संकट उत्पन्न हो गया। वन्यजीवों से खाद्य पदार्थों, के अतिरिक्त व्यापारिक, उद्योग के समूर, सींग, हड्डी, जीवित नमूने, चिकित्सा व उपयोग की वस्तुएं प्राप्त होती है। विश्व में जैव विविधता में संपन्न उष्णकटिबंधीय देशों में पाए जाने वाले जीव जंतुओं की मांग विश्व के अन्य देशों में है। इसी कारण यह स्थिति संकट उत्पन्न करने के लिए प्रमुख उत्तरदायी कारक है।
(5) हरित क्रांति :
हरित क्रांति में विशेष प्रकार की फसलों का उत्पादन किया जाता है। जिसके कारण प्राकृतिक रूप में पायी जाने वाली कई फसल विलुप्त हो गई हैं। पुनः संकर बीजों तथा कीटनाशकों एवं रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से कई वनस्पतियां, फसलों की प्राकृतिक जातियां भी समाप्त हो गई। इससे जैव विविधता पर प्रभाव पड़ा।
(6) पर्यावरण प्रदूषण :
पर्यावरण प्रदूषण के कारण वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण जैसी कई समस्याएं उत्पन्न हो गई है। प्रदूषण के कारण विभिन्न जीवो के अस्तित्व का हिस्सा संकट संपन्न हुआ है। सागरीय प्रदूषण के कारण मछलियों के मरने, जीवो के मरने, प्रवाल जातियों के विनाश की समस्या भी उत्पन्न हुई है। इसी तरह मृदा प्रदूषण के कारण मृदा में पाई जाने वाली सूक्ष्मजीवों के विनाश होने की समस्या उत्पन्न हो रही है। गिद्ध प्रजाति के विनाशक और कीटनाशकों का फसलों के माध्यम से पशुओं के शरीर में संचित होना बताया जाता है। जिसका भक्षण गिद्ध करता था।
(7) भूमंडलीय परिस्थितिकी समस्याएं :
वर्तमान में कुछ दशकों से तापीय वृद्धि, ओजोन क्षरण, जलवायु परिवर्तन जैसी घटनाओं के कारण भी जैव विविधता में ह्रास हो रहा है। यदि वायुमंडलीय परिस्थितिकी की समस्याओं का शीघ्र समाधान और नियंत्रण नहीं हो सका, तो दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तन की घटना हो सकती है। जो जैव-अजैव जगत के संबंधों को परिवर्तित कर देगा और जीवन संकट की समस्या भयावह हो जाएगी।
भारत में 75000 प्रकार के जीव-जंतु तथा 45000 प्रकार की वनस्पति समुदाय पाए जाते हैं, अर्थात भारत जैव विविधता में पर्याप्त संपन्न है। इनमें से 1500 प्रजातियां अत्यंत संकट में है। भारत विश्व में 18 प्रतिशत पशु तथा 60 प्रतिशत बाघ पाए जाते हैं। अतः सभी समस्याओं को एक साथ जैव विविधता के विनाश का उत्तरदायी मानते हुए संरक्षण का कार्य किया जाना चाहिए।
जैव विविधता के संरक्षण से सम्बंधित उपाय
- जनसंख्या पर नियंत्रण
- प्रदूषण पर नियंत्रण
- जैव विविधता के संरक्षण को सुनिश्चित करना
- जैव विविधता का पोषणीय उपयोग
- पृथ्वी और इसके पर्यावरण की रक्षा करना,
- पारिस्तिथिकी संतुलन का अनुरक्षण तथा
- जैव विविधिता को समृद्ध बनाना
महत्वपूर्ण तथ्य :
- जैव विविधता के जनक के रूप में जीवविज्ञानी थॉमस यूजीन लवजॉय ने 1980 में ‘बायोलोजिकल’ और ‘डायवर्सिटी’ शब्दों को मिलाकर ‘बायोलॉजिकल डायवर्सिटी’ या जैविक विविधता शब्द प्रस्तुत किया। चूंकि ये शब्द दैनिक उपयोग के लिहाज से थोड़ा बड़ा महसूस होता था, इसलिए 1985 में डब्ल्यू. जी. रोसेन ने ‘बायोडायवर्सिटी’ या जैव विविधता शब्द की खोज की।
- भारत में जैव विविधता अधिनियम (2002) को लागू करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2003 में राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) की स्थापना की गई थी। यह एक वैधानिक निकाय है जो जैव संसाधनों के संरक्षण एवं धारणीय उपयोग के मुद्दे पर भारत सरकार के लिये विनियामक एवं सलाहकार संबंधी कार्य करता है।
इसी अधिनियम के अन्तर्गत वर्ष 2003 में जैव प्रौद्योगिकी नीति लागू कर ‘जैव प्रौद्योगिकी परिषद’ का गठन इस नीति के क्रियान्वयन के लिए किया गया। इसी क्रम में 11 अप्रैल, 2005 को मध्यप्रदेश राज्य जैवविविधता बोर्ड का गठन किया गया। - मध्य प्रदेश में जैव विविधता विरासत स्थलों की संख्या 526 आँकी गई हैं।
- 24 सितंबर, 2020 को जैव-विविधता पर संयुक्त राष्ट्र के मंत्रिस्तरीय संवाद की मेजबानी चीन के द्वारा की गई। विश्वव्यापी जैव-विविधता को अपनाने के लिए 2021 में चीन के कुनमिंग में सीवीडी से जुड़े पक्षकारों का 15वां सम्मेलन आयोजित किया जाएगा।
- संयुक्त राष्ट्र द्वारा हर साल 22 मई को कुछ मानवीय गतिविधियों के कारण जैविक विविधता में आने वाली महत्वपूर्ण कमी के विषय के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया जाता है। जैविक विविधता में विभिन्न प्रजातियों के पौधे, जानवर और सूक्ष्मजीव शामिल हैं जिनमें प्रत्येक प्रजाति के भीतर आनुवंशिक अंतर शामिल हैं, जैसे, फसलों की किस्मों और पशुओं की नस्लें।
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