ऑर्गेनिक जैविक कृषि का अर्थ एवं परिभाषा
Organic farming या जैविक खेती कृषि का वह तरीका है, जिसमें उर्वरकों एवं कीटनाशकों का अनुप्रयोग या न्यूनतम प्रयोग किया जाता है। तथा भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिये फसल चक्र, हरी खाद तथा कम्पोस्ट (केंचुआ खाद या वर्मी कम्पोस्ट पोषण पदार्थों से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक है। यह केंचुआ आदि कीड़ों के द्वारा वनस्पतियों एवं भोजन के कचरे आदि को विघटित करके बनाई जाती है।) आदि का प्रयोग होता है।
1990 के बाद यानी वैश्वीकरण के बाद से भारत एवं विश्व में जैविक उत्पादों का बाजार काफ़ी बढ़ा है। जैविक खेती पर्यावरण के अनुकूल होती है। इसके प्रयोग करने से मानव को किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुंचती, बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद होती है।
वर्तमान समय में सरकार इस पर विशेष ध्यान दे रही है। एवं जैविक खेती करने के लिए सब्सिडी तथा विभिन्न प्रकार की योजनाएं भी चलाई जा रही हैं। सरकार के साथ-साथ निजी कंपनियां भी जैविक खेती करने के लिए जमीन तलाश कर रहे हैं, ताकि जैविक खेती करके वह ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा सकें। क्योंकि जो खेती रासायनिक उर्वरकों (यूरिया, NPK एवं डाई) एवं कीटनाशकों (रोगाणु नाशक दवाइयां) की सहायता से की जाती है, उसके विपरीत जैविक खेती से उत्पन्न होने वाले सभी अनाजों, फलों एवं सब्जियों को बाजार में उच्च दामों पर बेचा जाता है। क्योंकि यह प्रति हेक्टेयर पैदावार में रासायनिक खेती के मुकाबले कम उत्पादित होती है।
यह पर्यावरण के अनुकूल होती हैं जोकि मानव स्वास्थ्य पर किसी भी प्रकार का प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालती। इसलिए बाजार में इनकी कीमत रासायनिक फसलों से ज्यादा होती है। भारत के सिक्किम राज्य में वर्तमान में किसान अधिकतर जैविक खेती का उत्पादन करते हैं। भारत में सिक्किम एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां भारत में सबसे ज्यादा जैविक खेती की जाती है।
इसके अंतर्गत अधिकतर सब्जियां, फल एवं दालें जैविक रूप से उत्पादित की जाती है, क्योंकि सबसे ज्यादा रासायनिक पदार्थों का प्रयोग सब्जियों एवं फलों पर प्रयोग किया जाता है। इसलिए सरकार ने फलों एवं सब्जियों को रासायनिक पदार्थों से दूर रखने के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएं भी चलाई हैं। एवं जैविक खेती करने के लिए सरकार ऋण भी उपलब्ध कराती है ताकि किसान अपनी जमीन की उर्वरता बनाए रखने के लिए एवं कीटनाशक तथा उर्वरक का कम से कम प्रयोग करके जैविक खेती का उत्पादन करें।
ऑर्गेनिक कृषि के फायदे/लाभ
विश्व के सभी देश धीरे-धीरे जैविक खेती का प्रयोग कर रहे हैं। इसका कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाला प्रभाव है। जैविक खेती पर्यावरण के अनुकूल होती है। हमारे स्वास्थ्य पर इसका किसी भी प्रकार का कोई भी नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है। बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए एक वरदान के रूप में साबित हो चुकी है।
अगर हम जैविक खेती से उत्पादित हुए पदार्थों का सेवन करें तो यह हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक सिद्ध होगा। इस प्रकार ऑर्गेनिक खेती के कुछ लाभ हैं। जो इस प्रकार हैं –
- जैविक खेती से भूमि की उपजाऊ क्षमता (उर्वरा शक्ति) में वृद्धि हो जाती है।
- सिंचाई अंतराल में वृद्धि होती है। अर्थात हमें फसल को जल्दी-जल्दी पानी नहीं देना होता है।
- रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है। इसका कारण यह है कि कीटनाशकों का प्रभाव कृषि पर अधिक हो जाता है एवं हम नाइट्रोजन की पूर्ति करने के लिए उर्वरकों का प्रयोग करते हैं, जो हमें जैविक खेती से नाइट्रोजन की इतनी पूर्ति नहीं हो पाती।
- जैविक खेती के अंतर्गत हम उन फसलों की पैदावार करते हैं, जो नाइट्रोजन युक्त होती हैं, जैसे दाल की खेती
- बाज़ार में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ने से किसानों की आय में भी वृद्धि होती है। इसका कारण यह है कि यह पर्यावरण के अनुकूल होती हैं तथा स्वास्थ्य के लिए किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाती।
- जैविक खाद के उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है। अर्थात जमीन का उपजाऊपन कम होने की बजाय बढ़ जाता है।
- जब हम रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करते हैं तो बार-बार प्रयोग करने से भूमि की उर्वरा शक्ति क्षीण होने लगती है अर्थात हमारी भूमि बंजर होने लगती है। इसके लिए हमें बार-बार पानी देने की आवश्यकता होती है। मगर जैविक कृषि के अंतर्गत भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ जाती है।
- रासायनिक उर्वरक का अधिक प्रयोग करने से हमारी भूमि लवण युक्त हो जाती है जिसके कारण जमीन पानी को रोक नहीं पाती एवं पानी वाष्पीकृत हो जाता है। इस प्रकार ऑर्गेनिक खेती करने में भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होगा।
- यह पर्यावरण के अनुकूल होती है, जिसके कारण किसी प्रकार के जीव जंतु को हानि नहीं पहुंचती। वर्तमान समय में रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशको का इतना प्रयोग होता है कि यह हमारे पर्यावरण के साथ-साथ हमारे जीव-जंतु की वृद्धि को धीरे-धीरे नष्ट कर रहे हैं।
- रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने से खेती को पाने की ज्यादा आवश्यकता होती है जिसके कारण भूमि का जलस्तर बढ़ने लगता है। इसी जल स्तर को कम रोकने के लिए जैविक खेती करना अति आवश्यक है क्योंकि जैविक खेती में पाने की ज्यादा आवश्यकता नहीं होती है।
- जैविक खेती मिट्टी, खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है।
- घर से निकलने वाला कचरा (पशुओं के गोबर) को हम कृषि में जैविक खाद के रूप में प्रयोग करते हैं, जिसके कारण भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है।
- जैविक कृषि करने से हमारी कृषि लागत में कमी आती है। इसका कारण यह है कि इसमें किसी प्रकार के रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों की आवश्यकता नहीं होती। इस प्रकार किसान की आय में वृद्धि होती है।
- आधुनिक काल में लोग बड़ी-बड़ी नौकरियों को छोड़कर जैविक खेती में अपना अनुभव बांट रहे हैं जिसके कारण जैविक खेती का स्लैब बढ़ता जा रहा है। एवं जैविक खेती पर वर्तमान में अनुसंधान भी किए जा रहे हैं।
ऑर्गेनिक कृषि से नुकसान
प्रत्यक्ष रूप से देखा जाए तो जैविक खेती के लाभ लाभ हैं क्योंकि यह पर्यावरण के अनुकूल है मगर इसके अंतर्गत कुछ हानियां भी देखी गई हैं, जो इस प्रकार है –
- वर्तमान समय में बढ़ रही आबादी की खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए जैविक कृषि पर्याप्त नहीं है। इसके लिए हमें रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशकों का प्रयोग करना ही होगा।
- रसायनिक कृषि के मुकाबले जैविक खेती में औसत उत्पादन कम होता है।
- जैविक खेती में खाद एवं पानी की पूर्ति करने के लिए हमें ज्यादा से ज्यादा निराई-गुड़ाई करनी पड़ती है जो वर्तमान समय में संभव नहीं है।
- किसान की आय को दोगुना करने के लिए हमें रासायनिक उर्वरकों के साथ जाना ही होगा।
- जिस क्षेत्र में रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। उस क्षेत्र में जैविक खेती करना असंभव है। क्योंकि फसल को नुकसान पहुंचाने वाले जीव-जंतु फसल को होने नहीं देंगे। और अंत में हमें कीटनाशकों का प्रयोग करना ही होगा।
जैविक खेती में प्रयोग होने वाले कीटनाशक
- नीम की पत्ती का घोल/निबोली/खली : नीम की पत्तियां और निबोली को पानी में मिलाकर तथा उसका घोल बनाकर स्प्रे के रूप में किया जा सकता है। जिससे किसी प्रकार का कीड़ा फसल को जल्दी से नुकसान नहीं पहुंचाएगा।
- गौ मूत्र : गोमूत्र भी एक औषधि है और यह एक कीटनाशक के रूप में काम करता है।
- हल्दी, हींग व एलोवेरा जैल का छिड़काव : हल्दी एवं एलोवेरा का गोल बनाकर उसे खेत में डाला जा सकता है।
- मिर्च तथा लहसुन : मिर्च का गोल बनाकर फसलों पर छिड़का जा सकता है। जिससे फसलों पर लगने वाले कीटनाशक एवं छोटे जीव-जंतु मिर्च के कारण फसल से दूर रहते हैं।
- लकड़ी की राख : लकड़ी एवं उपले की राख का प्रयोग छोटी फसलों पर किया जाता है। जैसे बरसीम, प्याज, लहसुन, आलू और धनिया इत्यादि।
- फसलों का अवशेष : कुछ फसलें रक्षा कवच के रूप में कार्य करती है। जैसे नागफनी एवं एलोवेरा की फसल। यह बाढ़ फसल के रूप में भी कार्य करती है। जिससे कोई जीव-जंतु आसानी से खेत में प्रवेश नहीं कर पाता।
- गोबर का छिड़काव : गोबर का छिड़काव करने से भी फसल को नुकसान पहुंचाने वाले जीव-जंतु दूर रहते हैं। जैसे नीलगाय एवं चूहे इत्यादि।
- गन्ने से निकलने वाली मैली : गन्ने की मैली से निकलने वाली बदबू के कारण छोटे जीव-जंतु फसल से दूर रहते हैं।
रासायनिक एवं जैविक खेती में अंतर
रासायनिक एवं जैविक खेती में निम्नलिखित अंतर है।
- रासायनिक कृषि : यह पर्यावरण के विपरीत होती है। इसमें रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। यह महंगी खेती होती है। कीटनाशकों के प्रयोग से निराई गुड़ाई की आवश्यकता नहीं होती। खरपतवार कम पैदा होते हैं। सिंचाई की आवश्यकता अधिक होती है।
- जैविक कृषि : यह सस्ती फसल है। यह पर्यावरण के अनुकूल है। यह स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है। इसमें पशुओं के गोबर एवं घर से निकलने वाले कूड़े को उर्वरक के रूप में प्रयोग करते हैं। पानी की कम आवश्यकता होती है। भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखती है। निराई-गुड़ाई की आवश्यकता अधिक होती है। खरपतवार अधिक पैदा होते हैं।
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