इच्छा मृत्यु :
किसी मरीज की लाईलाज बीमारी (जिसका इलाज न हो सके) से पीड़ित व्यक्ति के जीवन का अंत डॉक्टर की मदद से किया जाता है। इसे इच्छा मृत्यु कहते हैं।
इसके अंतर्गत मरीज का इलाज बंद कर दिया जाता है, या अंत में उसे जहर देने तक की नौबत आ जाती है। मतलब स्वेच्छा से मौत को गले लगाना, इच्छामृत्यु कहलाता है। यह एक ऐसा पहलू है जिसे कोई भी देश स्वीकार नहीं करेगा, खासकर भारत। मगर मरीज की हालत को देखते हुए इस विषय पर पूरे विश्व में बात छिड़ी, कि क्या इच्छा मृत्यु एक सही उपाय है? मरीज की मंजूरी के बाद जानबूझकर ऐसी दवाइयां देना जिससे मरीज की मृत्यु हो जाए, ऐसा केवल यूरोप के बेल्जियम, स्विजरलैंड एवं नीदरलैंड में ही वैध है। अगर देखा जाए तो विश्व में सबसे पहले मामला भारत में आया था। क्योंकि महाभारत में इच्छामृत्यु सिर्फ भीष्म पितामह को ही प्राप्त थी।
वर्तमान समय में यह मामला बड़ा ही पेचीदा है। क्योंकि अगर मरीज मानसिक तौर पर बीमार है तो वह इच्छा मृत्यु को कैसे स्वीकार करें। अगर उसे नशीली दवाइयां भी दी जाती हैं तो यह गैरकानूनी होगा, क्योंकि यह इच्छा मृत्यु तो नहीं है। इसलिए अगर मरीज मानसिक रूप से बीमार है तो मरीज की मृत्यु के लिए उसका इलाज बंद करना होगा या जीवन रक्षक प्रणाली को हटाना होगा, जिससे मरीज प्राकृतिक रूप से अपने प्राण त्याग दें। यही पहलू पूरी दुनिया में कानूनी माना गया तथा इसे पूरी तरह से मान्यता तो नहीं मिली मगर यह कम विवादास्पद रहा है।
अफीम से बनने वाली दवाइयां जिससे मरीज की धीरे-धीरे मृत्यु हो जाती है। यह तरीका अभी कुछ देशों में वैध माना गया। अमेरिकी महिला टेरी शियावो को कोर्ट से मिली मंजूरी के अनुसार उनकी भोजन नली को हटा दिया गया था, जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गई। भारत में यूथिनिसिया या इच्छा मृत्यु के मामले सामने आए। क्योंकि भारत के बिहार राज्य में कंचन देवी जो काफी सालों से बेहोश थी।
मगर भारतीय कानून में आईपीसी धारा 309 के तहत यह एक आत्महत्या है। अगर पीड़ित व्यक्ति असहाय दर्द के कारण इच्छा मृत्यु या दया मृत्यु प्राप्त करना चाहता है तो आईपीसी धारा 304 के अंतर्गत उसे आत्म सदोष हत्या का अपराधी माना जाता है।
पी. रथीनम बनाम भारत संघ (1984) के मामले में आईपीसी की धारा 309 के आधार पर कहा गया कि अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीने का अधिकार है तो मरने का अधिकार क्यों नहीं?
उसी जबाव में 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानकौर बनाम पंजाब राज्य के मामले में इसे अमान्य घोषित कर दिया। क्योंकि अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन का अधिकार है न कि मृत्यु का। उदाहरण के तौर पर आचार्य विनोबा भावे ने भी इच्छा मृत्यु जाहिर की, मगर ऐसा नहीं हुआ।