भारत में मोटर गाड़ी उद्योग के विकास के क्या कारण है?

भारत में मोटर वाहन उद्योग का प्रारंभ 1928 में मुंबई में जनरल मोटर्स कंपनी के रूप में हुआ था, जहां विदेशी आयातित कल पुर्जों को जोड़कर मोटर बनाई जाती थी। इसी क्रम में 1930 में चेन्नई में फोर्ड कंपनी, 1944 में हिंदुस्तान मोटर्स लिमिटेड कोलकाता एवं प्रीमीयर मोटर्स लिमिटेड मुंबई की स्थापना की गई। लेकिन स्वतंत्रता के पूर्व भारतीय मोटर वाहन उद्योग पूर्णतः आयात पर निर्भर था, लेकिन बाद में विदेशी पुर्जों के आयात पर भारी कर लगने के बाद देश में ही पुर्जे बनने लगे जिससे भारतीय मोटर उद्योग का विकास प्रारंभ हुआ और निरंतर प्रगति होती रही। 

मोटर वाहन उद्योग को 1991 में नई औद्योगिक नीति की घोषणा के साथ ही लाइसेंस मुक्त कर दिया गया। इनमें यात्री कार उद्योग को 1993 में लाइसेंस मुक्त किया गया। उदारीकरण के बाद मोटर वाहन उद्योग को प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए विदेशी पूंजी निवेश और प्रौद्योगिकी आयात संबंधी नियमों को भी उधार बनाया गया। वर्तमान में मोटर वाहन उद्योग में स्वत: अनुमोदन सहित 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति है। पुनः $20 लाख के एकमुश्त भुगतान पर प्रौद्योगिकी के आयात की भी अनुमति है। इस समय यात्री कारों तथा बहु उपयोगी वाहनों के उत्पादन करने वाली 17 कंपनियां वाणिज्यिक उत्पादन करने वाली 9 कंपनियां दुपहिया एवं तिपहिये वाली 16 कंपनियां, ट्रक के उत्पादन वाली चार कंपनियां तथा इंजन के उत्पादन वाली 5 कंपनियां है।

उदारीकरण की नीतियों के साथ ही भारतीय मोटर वाहन उद्योग में पर्याप्त प्रगति हुई है और निर्यात भी किया जा रहा है। 2004-05 में 1.60 लाख यात्री कारों का निर्यात किया गया वहीं 2019 में 7.06 लाख तथा 2020 में 4.28 लाख कारों का निर्यात किया गया। कोरोनावायरस महामारी के कारण वर्ष 2020 में भारत से वाहनों का निर्यात लगभग 47% कम हो गया। मोटर वाहन उद्योग में लगभग 500000 लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्राप्त है।

वितरण एवं उत्पादन

भारतीय मोटर वाहन उद्योग में यात्री कारों का उत्पादन एवं मांग में वृद्धि 1980-81 में मारुति उद्योग लिमिटेड की स्थापना गुड़गांव के साथ हुई। मारुति उद्योग लिमिटेड ने 1983 में उत्पादन शुरू किया। मारुति ने अपने नए मॉडल 1000 CC इंजन क्षमता वाली कार का निर्माण किया जिसे छोटी कारों के क्षेत्र में नई शुरुआत या क्रांति कही जाती है। 

वर्तमान में भारत में 17 विनिर्माता कंपनियां है, जो यात्री कार और बहुउद्देशीय उपयोग में आने वाले वाहनों का निर्माण करती है। भारत की महत्वपूर्ण वाहन निर्माता कंपनियां निम्नलिखित है –

  • हिंदुस्तान मोटर्स – एंबेसडर – कोलकाता 
  • प्रीमियम मोटर्स – फिएट – मुंबई
  • मारुति मोटर्स – मारुति, जेन, स्टीम – गुड़गांव
  • टेल्को – सुमो, इंडिका, इंडिगो – जमशेदपुर
  • हुंडई मोटर्स – सैंटरो – कोरिया
  • स्टैण्ड्र मोटर्स – स्टैण्ड्र वैन, गार्ड – चेन्नई
  • अशोक लेलैंड – डीजल ट्रक – चेन्नई
  • टाटा लोकोमोटिव – डैम्लर ट्रक – जमशेदपुर
  • महिंद्रा एंड महिंद्रा – जीप, मार्शल – पुणे

यात्री कारों के विनिर्माण एवं कारोबार में मारुति प्रथम स्थान पर है। इसके बाद क्रमशः मैसर्स हुंडई तथा टेल्को है। वर्तमान में टाटा मोटर्स वाहन यात्रियों के निर्माण में बहुत तेजी से प्रगति हो रही है। भारत की पहली स्वदेशी कार टाटा इंडिका थी इसे भारत में स्क्रैच ने इंडिया में बनाया था। तथा 1999 में टाटा इंडिका को बाजार में लाया गया। 

भारत में मोटर वाहन उद्योग के विकास के कारण

  1. बड़े घरेलू बाजार एवं बढ़ती हुई मांग
  2. तीव्रता से विकास करती हुई अर्थव्यवस्था और उपभोक्तावादी अर्थव्यवस्था का विकास।
  3. लोहा इस्पात मशीनरी एवं अन्य आधारभूत संरचना का विकास
  4. औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण मांग में वृद्धि
  5. सड़क परिवहन का यात्री परिवहन और माल परिवहन दोनों ही दृष्टि से महत्वपूर्ण होना।
  6. पठारी भारत एवं पहाड़ी क्षेत्रों में रेलवे विकास में बाधा फल स्वरुप मोटर वाहन उद्योग को तुलनात्मक लाभ।

स्पष्टत: भारत में मोटर वाहन उद्योग के विकास की आदर्श स्थितियां है और विकास की व्यापक संभावना है। वर्तमान में नए मॉडलों के आने से मांग में वृद्धि हुई है एवं निर्यात में भी वृद्धि हो रही है। इस प्रकार अगर देखा जाए तो वर्तमान समय में बढ़ती हुई आवश्यकताओं के अनुसार मोटर वाहन क्षेत्र में काफी तेजी से वृद्धि हुई, जिसका एक कारण लोगों का उच्च जीवन स्तर होना है।

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