विकास ध्रुव सिद्धांत क्या है?

विकास नाभि के पदानुक्रम शीर्ष पर विकास ध्रुव होता है। यह वृहद महानगरीय कार्यों का केंद्र होता है तथा इसके विस्तृत क्षेत्रों में गैर-कृषि कार्यों का विशिष्टीकरण होता है। विकास ध्रुव के अंतर्गत विविध कार्य किए जाते हैं। यहां विविध उत्पादक इकाइयां, औद्योगिक फर्म, विभिन्न उद्योग तथा दुकान इत्यादि स्थित होते हैं तथा यह ध्रुव (Pole) या फोकस (Focus) के रूप में वर्ष में कार्य करता है। क्योंकि यहां विविधता पूर्ण कार्यों का प्रभाव होता है, अतः यह प्रकार्यात्मक विविधता का केंद्र होता है। यहां उच्च तकनीक, पूंजी निवेश एवं नियोजित विकास की प्रक्रिया अपनाई जाती है।

किसी भी प्रदेश में उचित भौगोलिक अवस्थिति का निर्धारण किया जाता है और वहां विकास ध्रुव की स्थापना एवं विकास किया जाता है। विकास ध्रुव पर आवश्यक कार्यों का जमाव एवं एकत्रीकरण नियोजित प्रक्रिया से किया जाता है। कार्यों का जमघट ही विकास जमाव (Growth Cluster) की रचना करते हैं। स्पष्टत: कार्यों की गहनता या विविधता विकास के आधार की मुख्य विशेषता होती है। 

विकास ध्रुवों की स्थापना भौगोलिक स्थिति एवं अवस्थिति दोनों के संदर्भ में होनी चाहिए, ताकि आसपास के क्षेत्रों में विकास की गति तीव्र हो सके। व्यवहारिक रूप में आसपास के क्षेत्र ही किसी क्षेत्र केंद्र को विकास ध्रुव के रूप में स्थापित करता है। हालांकि यह आवश्यक है कि पहले से ही वह स्थान केंद्रीय स्थिति रखता है तथा कुछ प्राथमिक कार्य को करता है। यदि ऐसे केंद्र पर नोदक फर्म/प्रगति फॉर्म (Progressive Firms) स्थापित हो जाते हैं तो यह केंद्र विकास ध्रुव के रूप में विकसित हो जाता है। यह केंद्र पर्याप्त प्रभाव क्षेत्र रखता है तथा नवाचार या नवोत्पाद के विसरण में सक्षम होता है।

एक शीर्ष विकास नाभि के रूप में क्षेत्र के विकास में यह प्रमुख भूमिका निभा सकता है। क्रिस्टॉलर के केंद्रों के पदानुक्रममित विकास की योजना में स्थापित केंद्र स्थल एवं पदानुक्रमित विकास नाभि में विकसित पदानुक्रममित विकास केंद्र एक दूसरे के अनुरूप है।  {जाने गिल इंडिया के बारे में}

Scroll to Top
10 TYPES OF ROSES FOR YOUR LOVELY HOME OR GARDEN Benefits of Gulmohar Tree or Plant Some important facts about IRIS plant