किसी भी राष्ट्र की कार्यिक जनसंख्या की स्थिति जनसंख्या की कार्य क्षमता एवं संसाधनात्मक महत्व को बताता है। यदि कार्यिक जनसंख्या अधिक है तो स्वभाविक है कि निर्भर जनसंख्या कम होगी, जिससे प्रति व्यक्ति उत्पादन, प्रति व्यक्ति आय अधिक होगी। ऐसे में निर्भर जनसंख्या के लिए कार्यिक सुरक्षा बनी रहती है। कार्यिक जनसंख्या के अंतर्गत 18-60 वर्ष की आयु की जनसंख्या को रखा जाता है। न कि शेष निर्भर जनसंख्या कही जाती है। कार्यिक जनसंख्या को सामान्यतः तीन भागों में बांटा जाता है।
- पहले वर्ग में मुख्य कामगार के अंतर्गत वैसे श्रमिकों को शामिल करते हैं, जिन्होंने 6 महीने या अधिक समय खर्च किया हो। 1981 में इसे वर्ष में 183 कामगार दिन माना जाता था।
- दूसरे वर्ग में सीमांत कार्मिक हैं जो 6 महीने से कम काम करते हैं।
- तीसरे वर्ग में अर्थात शेष लोग गैर-कामगार में आते हैं, जो वर्ष भर में कोई काम नहीं करते।
इस दृष्टिकोण से 2001 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या में 30.4 प्रतिशत मुख्य कामगार, 8.7 प्रतिशत सीमांत कारगार और 60.9 प्रतिशत गैर-कामगर है। इससे स्पष्ट होता है कि भारत में कार्यिक जनसंख्या की तुलना में निर्भर जनसंख्या अधिक है। यह स्थिति जनसंख्या संसाधन की दृष्टि से संतोषप्रद नहीं कही जा सकती। मुख्य एवं सीमांत कार्यकाल जिसे कार्यिक जनसंख्या के अंतर्गत रखते हैं, वह 39.1 प्रतिशत मात्र है। लेकिन 1991 की 37.3 प्रतिशत की तुलना में थोड़ी अधिक है। इनमें भी महिला एवं पुरुष कामगारों की स्थिति में विभाजन बना हुआ है। पुरुष जनसंख्या का 51.7 प्रतिशत मुख्य कामगार श्रेणी में आते हैं जबकि 25.6 प्रतिशत स्त्रियां ही इस वर्ग में आती है। राज्यों के अनुसार भी कामगार जनसंख्या में पर्याप्त भिन्नता मिलती है। पुनः प्राथमिक कार्यों में अभी भी 65 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या नियोजित है।
स्पष्ट है कि द्वितीय एवं तृतीय क्षेत्रों में कार्यिक जनसंख्या का अनुपात कम बना हुआ है। यह स्थिति जनसंख्या के अनुकूलतम उपयोग के संदर्भ में असंतुलित कही जा सकती है।
वर्तमान में कृषि का विभेदीकरण, कृषि आधारित उद्योगों का विकास, विशेषकर खाद्य प्रसंस्करण उद्योग तथा डेयरी उद्योग, पशुपालन उद्योग जैसे आर्थिक क्षेत्रों के विकास से प्राथमिक कार्यों में लगी जनसंख्या को द्वितीय क्षेत्र में प्रतिस्थापित किया जा रहा है। लेकिन इसके लिए अत्यंत गंभीर प्रयास किया जाना चाहिए। पारंपरिक अर्थव्यवस्था को आधुनिक एवं औद्योगिक स्वरूप में परिवर्तन कर कार्यिक जनसंख्या को द्वितीय क्षेत्र के साथ ही सेवा क्षेत्रों या तृतीय क्षेत्रों में नियोजित कर उत्पादकता और गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है। तीव्र औद्योगिकरण की प्रतिक्रिया सेवा क्षेत्रों का विस्तार से भी कार्यिक जनसंख्या को अधिक उत्पादक बनाया जा सकता है।
वर्तमान संदर्भ में शिक्षा में जिस दर में बढ़ोतरी हो रही है उसी संदर्भ में शिक्षित बेरोजगारी भी बढ़ती जा रही है। आज के समय में बेरोजगारी भारत का सबसे बड़ा अभिशाप बना हुआ है। भारत में शिक्षित बेरोजगारी का कारण गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का न होना भी हो सकता है। >>> भारत में जनसंख्या एक अभिशाप <<<