भारत की जनसंख्या समस्या

भारत में स्वतंत्रता के बाद से ही जनसंख्या वृद्धि में विस्फोट प्रवृत्ति बनी रही है और 1951 में देश की जनसंख्या 36.1 करोड़ थी, जो 1991 में 84.6 करोड़, 2001 में 102.7 करोड और 2011 में 125.03 करोड हो गई। वर्तमान दशक में हालांकि जनसंख्या वृद्धि दर में कमी आई, और 1981-91 की 3.14% की तुलना में 1991-2001 में 1.93% वृद्धि दर रही, लेकिन वृद्धि दर में तुलनात्मक कमी के बावजूद कुल वृद्धि पिछले दशक के 16 करोड़ की तुलना में वर्तमान दशक में 18 करोड़ हुई। स्पष्ट है कि जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्तियां विस्फोटक बनी हुई है जो जनसंख्या की प्रमुख समस्या है। बढ़ती हुई जनसंख्या संसाधनों पर दबाव लाती है, जिससे प्रति व्यक्ति संसाधन उपलब्धता में कमी आती है। 

भारत में भी प्रति व्यक्ति कृषि भूमि की उपलब्धता में कमी आयी है। साथ ही प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उपलब्धता में कमी की बड़ी समस्या है। बढ़ती हुई जनसंख्या भी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एक बड़ी चुनौती होती है। ऐसे में जीवन स्तर की गुणवत्ता से जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग वंचित रह जाता है। स्वाभाविक है कि जनसंख्या के बेहतर नियोजन के अभाव की समस्या, जनसंख्या प्रबंधन की समस्या आदि कई सामाजिक और आर्थिक चुनौतियां उत्पन्न होती हैं। 

भारत में बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी और कुपोषण की समस्या वृहद स्तर पर विद्यमान है। 2001 में 50.62 लाख पंजीकृत बेरोजगार थे। इनमें वैसे लोग शामिल नहीं है, जो निरक्षर व अकुशल बेरोजगार हैं। अगर संपूर्ण बेरोजगार जनसंख्या को शामिल किया जाए, तो यह 5 करोड़ से अधिक हो जाती है। इस तरह योजना आयोग के अनुसार 2004-05 के लिए 27.5% जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे है। तेंदुलकर समिति के अनुसार यह 38% से अधिक है। 

जनसंख्या नियंत्रण के लिए जुलाई 2000 में राष्ट्रीय जनसंख्या तथा सामाजिक विकास आयोग का गठन किया गया, जिसमें 127 सदस्य थे। प्रधानमंत्री इस आयोग के अध्यक्ष और योजना आयोग के उपाध्यक्ष होते हैं। इसका प्रमुख उद्देश्य उच्च प्राथमिकता के आधार पर सरकार को जनसंख्या स्थिर करने के लिए ठोस सुझाव देना है। जुलाई 2000 में ही राष्ट्रीय जनसंख्या स्थिरीकरण कोष की स्थापना की घोषणा की गई, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों तथा निजी क्षेत्र और औद्योगिक घरानों से प्राप्त धन को भी रखा गया जाएगा। महिलाओं एवं बच्चों के कल्याण के लिए 2005-06 से केंद्रीय बजट में लिंग आधारित बजट अर्थात जेंडर बजट की व्यवस्था की गई है। इस तरह कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं और विशेषकर जन जागरूकता कार्यक्रम पर बल दिया जा रहा है, ताकि अधिक से अधिक लोगों को परिवार नियोजन कार्यक्रमों से जोड़ा जा सके।

Posted in Uncategorized