राष्ट्रीय जल विकास प्राधिकरण ने 1993 में जल संसाधन के विकास हेतु एक वृहद योजना बनाई है, जिसके अनुसार देश के जल संसाधनों का समुचित विकास एवं प्रबंध तथा देश के सभी भागों में रहने वाले लोगों को जल संसाधन से लाभ की नीति अपनाई गई है। इस नीति के अंतर्गत जल संसाधन के विकास के लिए 17 वाटर ट्रांसफर लिंक को विकसित किए जाने का प्रस्ताव है। जिसके अनुसार –
- पूर्वी हिमालय की नदियों के जल को पश्चिमी हिमालय की तरफ तथा उत्तर-पश्चिम भारत में ले जाने का प्रस्ताव है।
- उत्तर-पश्चिम भारत के हिमाचल प्रदेश की नदियों के जल को पश्चिमी हिमालय के तरफ से गुजरात के मैदान तक ले जाने का प्रावधान है।
- हिमालय अपवाह के जल अर्थात उत्तरी के जल को कावेरी अपवाह तंत्र तक ले जाने का प्रावधान है।
- केरल के अतिरिक्त जल को तमिलनाडु में ले जाने का प्रावधान है।
लेकिन इन योजनाओं को क्रियान्वित उच्च तकनीकी और काफी निवेश पर निर्भर करता है। साथ ही राजनीतिक, प्रशासनिक एवं पारिस्थितिक जटिलताएं भी है। इसी कारण इसे राष्ट्रीय विकास के सामने नहीं रखा जा सका है। 8वीं योजना के अंतर्गत सिंचाई एवं जल विद्युत हेतु लघु एवं मध्यम योजनाओं को ही प्राथमिकता मिली थी, लेकिन 9वी योजना में पारिस्थितिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर सिंचाई और जल विद्युत योजनाओं का निर्माण किया गया है। 9वीं पंचवर्षीय योजना योजना में भूमिगत जल, सतही जल और पारिस्थितिकी के अनुकूल जल उपयोग को सर्वाधिक प्राथमिकता दी गई है। प्रारंभ में उत्तर-पूर्वी भारत के लिए लघु जल विद्युत परियोजना का प्रावधान था, लेकिन 9वी योजना के वृहद जल विद्युत निवेश की प्राथमिकता पर निर्भर है।
नवीन जल संसाधन नीति 2002 में निम्नलिखित बातों को प्राथमिकता दी गई थी –
- उपलब्ध सतही और भूजल के उपयुक्त और रिकॉर्ड उपयोग के लिए समन्वित जल संसाधन विकास एवं प्रबंधन
- सुविकसित सूचना प्रणाली का विकास
- जल संरक्षण एवं मांग प्रबंधन
- गुणवत्ता, मात्रा, पर्यावरणीय संतुलन को ध्यान में रखना
- प्रशिक्षण एवं अनुसंधान
- परियोजना से प्रभावित लोगों को पुनर्वास एवं पुनरीक्षण पर विशेष बल
- निजी क्षेत्र की सहभागिता को ध्यान में रखना
इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय न्यूनतम साझा कार्यक्रम में जल क्षेत्र और प्रबंधन को प्राथमिकता दी गई थी तथा वर्ष 2007 को जल वर्ष के रूप में मनाया गया।
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