स्वतंत्रता के पश्चात देश में खाद्यान्नों की एक बड़ी समस्या थी। फसलों का कम पैदा होना इसका मुख्य कारण था। क्योंकि स्वतंत्रता के बाद या पहले कृषि में रासायनिक उर्वरक का प्रयोग कम होता था। कीटनाशक दवाइयों का इतना प्रचलन नहीं था। अधिकतर कृषि वर्षा पर निर्भर थी। क्योंकि सिंचाई के साधन अच्छे नहीं थे। पारंपरिक बीजों के द्वारा ही खेती की जाती थी। इसी कारण खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि करने हेतु उर्वरक उपभोग में वृद्धि का प्रयास किया गया। अर्थात कृषि में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने का प्रयास किया गया, जिसे धूसर क्रांति कहा जाता है।
धूसर क्रांति के कारण वर्तमान समय में देश में 55 मिलीयन टन (2020 के अनुसार) उर्वरकों की खपत है। जिन क्षेत्रों में गहन कृषि की जाती है, वहां पर रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशक पदार्थों का प्रयोग ज्यादा मात्रा में किया जाता है। रासायनिक खाद पदार्थों का प्रयोग अधिक करने के कारण मिट्टी के पोषक तत्व एवं मिट्टी के स्वास्थ्य में दिन-प्रतिदिन गिरावट आ रही है। जिसका प्रमुख कारण नाइट्रोजन उर्वरक (यूरिया) का लगातार प्रयोग करना है। पंजाब, हरियाणा, तेलंगाना तथा तमिलनाडु कीटनाशकों के प्रयोग के मामले में शीर्ष स्थान पर है। मगर इस मामले में महाराष्ट्र एवं उत्तर प्रदेश प्रथम स्थान पर है। केंद्र शासित प्रदेशों की बात करें तो पांडिचेरी शीर्ष स्थान पर है, जहां पर फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए उर्वरकों की खपत सबसे ज्यादा की जाती है।
भारत के मुख्य उर्वरक कारखाने या फैक्ट्रियां
- राष्ट्रीय उर्वरक लिमिटेड
- राष्ट्रीय रसायन और उर्वरक लिमिटेड
- गुजरात नर्मदा घाटी उर्वरक और रसायन लिमिटेड
- जुआरी एग्रो केमिकल्स लिमिटेड,
- मंगलौर रसायन उर्वरक लिमिटेड
- गुजरात स्टेट फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल लिमिटेड
- चंबल फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स लिमिटेड
- कोरोमंडल इंटरनेशनल लिमिटेड
- दीपक फर्टिलाइजर्स एंड पेट्रोकेमिकल्स कॉरपोरेशन लिमिटेड
उर्वरक का विश्व में उत्पादन
आजादी के दौरान भारत में उर्वरक का बहुत ही कम प्रयोग किया जाता था। मगर, वर्तमान समय में भारत, चीन के बाद द्वितीय उर्वरक उपभोक्ता बन गया है। इसके बाद यूएसए, रूस, कनाडा तथा इंडोनेशिया आदि देश आते हैं।
रसायनिक उर्वरकों के प्रकार
- यूरिया – यूरिया एक कार्बनिक योगिक है। कार्बनिक रसायन के क्षेत्र में इसे कार्बामाइड के नाम से भी जाना जाता है। यह एक रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन एवं जहरीला ठोस पदार्थ है। कृत्रिम विधि से सबसे पहले यूरिया बनाने का श्रेय जर्मन वैज्ञानिक वोहलर को जाता है। यूरिया का उत्पादन द्रव अमोनिया तथा कार्बन डाइऑक्साइड की प्रतिक्रिया से होता है। वर्तमान समय में यूरिया उत्पादन क्षमता में भारत आत्मनिर्भर है तथा दूसरे देशों को भी यूरिया का निर्यात करता है।
भारतीय किसान यूरिया का सबसे ज्यादा प्रयोग करते हैं। यूरिया के अंदर 46 प्रतिशत नाइट्रोजन होता है। यह पानी में घुलनशील है, जिसके कारण फसलों को नाइट्रोजन आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
वर्तमान समय में देश में यूरिया की लगभग 21 इकाइयां है। यूरिया का MRP वैधानिक रूप से भारत सरकार द्वारा तय किया जाता है।
- डाई अमोनियम फास्फेट (DAP) – कृषि की उत्पादन क्षमता बढ़ाने में इसका महत्वपूर्ण योगदान है। इसके द्वारा मिट्टी को 21 प्रतिशत नाइट्रोजन तथा 24 प्रतिशत सल्फर प्राप्त होता है।
- जिंक फास्फेट – जिंक सल्फेट में मैग्नीशियम सल्फेट एक मिलावटी रसायन है। जिंक सल्फेट एक अकार्बनिक योगिक है जो खाद पूरक के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके प्रयोग से मिट्टी में जिंक की पूर्ति होती है।
- पोटाश – भारत में पोटाश का उत्पादन नहीं होता, जिसके कारण भारत को पोटाश का आयात करना पड़ता है। पोटाश के प्रयोग से पौधों की कोशिका दीवारें मजबूत होती हैं। जिसके फलस्वरूप फसल के गिरने का डर नहीं होता। पोटाश फसलों को मौसम की प्रतिकूलता जैसे सूखा, पाला, ओला एवं कीड़ों से फसल की रक्षा करता है। फसल में पोटाश के अभाव के कारण पत्तियों का रंग गहरा हो जाता है तथा पौधों की वृद्धि एवं विकास सही मात्रा में नहीं होता।
- कैल्शियम – वर्तमान समय में किसान कैल्शियम का प्रयोग यूरिया के साथ मिलाकर करने लगे हैं। कैल्शियम के कारण फसलों का तना मोटा एवं मजबूत हो जाता है। इसके अलावा फसल बोने के लिए विभिन्न प्रकार के खाद पदार्थों (उर्वरक) की आवश्यकता भी पड़ती है। जैसे लौह, मैंगनीज, क्लोरीन, बोरोन, जस्ता, तांबा, सेलेनियम, गंधक एवं मैग्नीशियम आदि पोषक तत्व की कमी के कारण भी फसलों का उत्पादन सही प्रकार से नहीं हो पाता है।
पौधे अपना भोजन पोषक तत्व के रूप में ग्रहण करते हैं। फसल द्वारा उपयोग किए गए पोषक तत्वों की क्षतिपूर्ति उर्वरक एवं खाद द्वारा न करने पर, भूमि में पोषक तत्वों की विशेष कमी हो जाती है, जिसके कारण पौधे मुरझाने लगते हैं। इसलिए फसलों को पोषक तत्व देने के लिए इस प्रकार के उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है। पौधों की वृद्धि के लिए कम से कम 16 तत्वों की आवश्यकता होती है, जिसमें कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन पानी तथा हवा से प्राप्त होते हैं। बाकी बचे 13 तत्व भूमि उर्वरक तथा खादो से प्राप्त करती है।