अलनीनो एक प्रकार की उपसतही गर्म समुद्री जलधारा है, जो पेरू के तट पर सम्मान्यत: उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होती है। यह गर्म जलधारा विश्वव्यापी मौसमी प्रभाव डालती है। मानसून की उत्पत्ति और उसका प्रभाव को इस सिद्धांत से स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। अलनीनों का अध्ययन सर्वप्रथम गिलबर्ट वाल्कर (अमेरिका) द्वारा किया गया था।
गिलबर्ट वाल्कर के अनुसार, इसके गर्म जल के प्रभाव से पहले दक्षिणी विषुवतीय गर्म जलधारा का तापमान बढ़ जाता है, क्योंकि यह जलधारा पूर्व से पश्चिम की ओर जाती है। इसलिए संपूर्ण मध्य प्रशांत का जल गर्म हो जाता है और एक वृहद निम्न भार का निर्माण होता है। लेकिन कभी-कभी उस निम्न भार का विस्तार हिंद महासागर के पूर्वी मध्यवर्ती क्षेत्र तक हो जाता है। ऐसी स्थिति में निम्न भार मानसून की दिशा को संशोधित कर देती है। इस निम्न भार के संदर्भ में भारतीय उपमहाद्वीप, बंगाली खाड़ी, अरब सागर और हिंद महासागर के अधिकतर क्षेत्र उच्च भार का निर्माण करने लगते हैं।
अतः अरब सागर की हवाएं भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपर न जाकर मध्य सागरीय निम्न भार की तरफ चलने लगती हैं, और भारत में वृहद सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। 1987 के सूखे का यही प्रमुख कारण था। पुनः 1993 के मानसून वर्ष में भी वर्षा ऋतु के मध्य सूखे की स्थिति का एक महत्वपूर्ण कारण अलनीनो के अभाव का विस्तारीकरण था। लेकिन इसके विपरीत अलनीनो हवाओं का प्रभाव सिर्फ प्रशांत के मध्य में होता है। जिससे भारतीय उपमहाद्वीप और हिन्द महासागर प्रभावित नहीं होते हैं। ऐसी स्थिति में भारतीय उपमहाद्वीप एक निम्न भार क्षेत्र होता है और मानसूनी हवाएं दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की तरफ प्रवाहित होने लगती हैं। इससे भारत में भारी वर्षा होती है और वर्ष विशेष में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है।
अतः स्पष्ट है कि यह सिद्धांत बाढ़ और सूखे का एक वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत करता है। लेकिन अल्लीनों के विभिन्न आंकड़ों को देखने से स्पष्ट होता है कि 1875 से 1985 के अंतर्गत 43 वर्ष सूखे की स्थिति में से मात्र 19 वर्षों की स्थिति की व्याख्या ही इससे होती है। पुनः 6 वर्ष बहुत ही अच्छा मानसून था, जब अलनीनों का गहन प्रभाव था। इसी प्रकार 1976 तथा 1979 के सूखे के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि इन वर्षों में अलनीनों की अपेक्षा जेट स्ट्रीम का अधिक प्रभाव था। इसके विपरीत लानीना (Lanina) की स्थिति में मानसून अच्छा होता है और बाढ़ की समस्या भी उत्पन्न होती है। अलनीनो के ठंडे रूप को ‘लानीना’ कहते हैं। 1997 में अलनीनो अधिक गर्म हो गया था, जिसके तापमान में जून, 1998 के बाद कमी आ गई। इस अपेक्षाकृत ठंडी जलधारा को लानीना कहा गया। लानीना के प्रभाव से मानसून अच्छा होता है।