भारत के संविधान में भाग-4 अनुच्छेद 36-51 तक राज्य के ‘नीति निदेशक तत्व’ का वर्णन किया गया है। इन्हें आयरलैंड के संविधान से लिया गया है। नीति निदेशक सिद्धांतों का मुख्य उद्देश्य लोकतंत्र को वास्तविक बनाने के लिए सामाजिक एवं आर्थिक आधार प्रदान करना तथा लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। इन सिद्धांतों को न्यायालय में लागू नहीं किया जा सकता है अर्थात ये वाद योग्य नहीं है, लेकिन कानून बनाते समय इन तत्वों का प्रयोग करना राज्य का कर्तव्य होगा। ग्रेनविल ओस्टिन ने निदेशक तत्व और अधिकारों को ‘संविधान की मूल आत्मा’ कहा है।
नीति निदेशक सिद्धांतों को मुख्यतः 3 श्रेणी में बांटा जा सकता है।
- समाजवादी सिद्धांत
- गांधीवदी सिद्धांत
- उदारवादी सिद्धांत।
अनुच्छेदों के अनुसार राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत :
- अनुच्छेद 36 : राज्य की परिभाषा
- अनुच्छेद 39 (अ) : समान न्याय एवं निशुल्क कानूनी सहायता
- अनुच्छेद 39 (घ) : पुरुषों और स्त्रियों को समान कार्य के लिए समान वेतन
- अनुच्छेद 40 : ग्राम पंचायतों का संगठन
- अनुच्छेद 43 (अ) : उद्योगों के प्रबंधन में कर्मचारियों को सेवा गीता
- अनुच्छेद 48 : कृषि एवं पशुपालन का संगठन
- अनुच्छेद 48 (अ) : पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन तथा वन एवं वन्यजीवों की सुरक्षा
- अनुच्छेद 49 : स्मारकों तथा राष्ट्रीय महत्व के स्थानों एवं वस्तुओं का संरक्षण
- अनुच्छेद 50 : न्यायपालिका कार्यपालिका से अलगाव
- अनुच्छेद 51 : अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को प्रोत्साहन
86 वें संविधान संशोधन 2002 में अनुच्छेद 45 की विषय वस्तु को बदला गया और प्राथमिक शिक्षा को अनुच्छेद 21 क तहत मूल अधिकार बनाया गया।