राजकोषीय घाटा का अर्थ | राजकोषीय घाटा क्यों बढ़ जाता है?

राजकोषीय घाटे का अर्थ :

सरकार के कुल राजस्व और कुल व्यय के बीच अंतर को राजकोषीय घाटे के रूप में जाना जाता है। यह सरकार के विभिन्न कार्यों के लिए आवश्यक कुल उधार का संकेत है। ज्यादा राजकोषीय घाटे का मतलब यह होता है कि सरकार को विभिन्न कार्यों के लिए ज्यादा उधारी की आवश्यकता होती है। आमतौर पर यह राजकोषीय घाटा राजस्व घाटा या पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी के कारण होता है। पूंजीगत व्यय कारखानों, इमारतों, पर्वतीय सड़कों, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य विकास जैसे दीर्घकालिक संपत्ति बनाने के लिए किया जाता है। इन खर्चों में सरकार को प्रत्यक्ष रूप से कोई लाभ नहीं होता। घाटे को आमतौर पर देश के केंद्रीय बैंक से उधार लेने या ट्रेजरी बिल और बांड आदि द्वारा जारी करके पूंजी बाजार से धन जुटाकर वित्त पोषित किया जाता है।

राजकोषीय घाटे का मौद्रीकरण :

राजकोषीय घाटे का मौद्रीकरण करने के लिए सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के बीच इससे संबंधित वार्ता होती है और मौद्रीकरण की मात्रा पर सहमती होती है। सरकार भारतीय रिजर्व बैंक को सरकारी बॉन्ड के बदले में नई मुद्रा छापने के लिए कहती है। नई मुद्रा छापने के बदले में भारतीय रिजर्व बैंक को सरकारी बॉन्ड प्राप्त होते हैं। यह बॉन्ड भारतीय रिजर्व बैंक की परिसंपत्ति होती है। इस प्रकार सरकार को आवश्यक नकदी प्राप्त हो जाती है, जिसे वह विभिन्न जन कल्याणकारी कार्यों पर प्रयोग कर सकती है।

वर्तमान समय में राजकोषीय घाटे की स्थिति :

वर्तमान में सरकार के द्वारा राजकोषीय घाटे का मौद्रीकरण नहीं किया जाता है। वर्ष 1997 में सरकार के राजकोषीय घाटे के स्वत: मौद्रीकरण की नीति को समाप्त कर दिया गया था, परंतु वर्तमान संकट को देखते हुए इसकी आवश्यकता महसूस की जा रही है। 1994 और 1997 में सरकार और RBI के बीच दो समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए थे, ताकि एडहॉक ट्रेजरी बिल (Adhoc Treasury Bill) के माध्यम से फंडिंग पूरी तरह से समाप्त हो सके।

वर्ष 2003 में Fiscal Responsibility and Budget Management Act 1 अप्रैल, 2006 से RBI को सरकार के Bond के प्राथमिक निर्गमों की खरीद करने की बाध्यता को समाप्त कर दिया गया है।

भारत का राजकोषीय घाटा :

भारत का राजकोषीय घाटा चालू वित्त वर्ष 2021-22 में सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी का 6.9 प्रतिशत का अनुमान लगाया था। अगले वित्त वर्ष 2022-23 में राजकोषीय घाटे को 6.4 फीसदी पर सीमित करने का लक्ष्य रखा गया है ‌‌ इसलिए वर्ष 2020-21 में कोरोना की वजह से यह टारगेट से काफी अधिक पहुंच गया। क्योंकि सरकार ने लोगों को राहत देने के लिए कई तरह के प्रावधान किए थे जैसे राशन।