राजनीति में फ्लोर टेस्ट क्या होता है?

सदन में फ्लोर टेस्ट यह निर्धारित करता है कि मुख्यमंत्री को विधायकों के बहुमत का समर्थन प्राप्त है या नहीं। जिसमें विश्वास मत का परीक्षण ध्वनि मत से अथवा प्रत्येक विधेयक के वोट (Vote) को दर्ज करके किया जा सकता है। यदि फ्लोर टेस्ट के दौरान कुछ विधायक अनुपस्थित रहते हैं या मतदान नहीं करते हैं तो बहुमत की गणना उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के आधार पर की जाती है। मतगणना के दौरान जिस प्रतिनिधि के पास विधायकों का पूर्ण बहुमत होता है, उसे ही मुख्यमंत्री के लिए चुन लिया जाता है।

13 अप्रैल, 2020 को दिए अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि किसी राज्य के राज्यपाल को ऐसा लगता है कि सरकार सदन का विश्वास हो चुकी है या अस्थिर है तो ऐसी स्थिति में राज्यपाल किसी भी समय फ्लोर टेस्ट की मांग कर सकता है।

उदाहरण के लिए

  • न्यायालय ने 1994 के SR बोम्बे फैसले का हवाला दिया तथा कहा कि विश्वास मत साबित करने के लिए राज्यपाल को फ्लोर टेस्ट करने का निर्देश देने का अधिकार है।

विश्वास मत का उद्देश्य चुने हुए प्रतिनिधियों को यह निर्धारित करने में सक्षम बनाना है कि क्या मंत्री परिषद को सदन का बहुमत प्राप्त है या नहीं।

पीठ के अनुसार, राज्यपाल राजनीतिक कारणों से निर्वाचित सरकारों को विस्थापित करने के उद्देश्य से फ्लोर टेस्ट आयोजित करने हेतु अपनी व्यापक शक्तियों का दुरुपयोग नहीं कर सकता।