प्राकृतिक पूंजी लोगों को विभिन्न लाभ प्रदान करने वाले नवीकरणीय एवं गैर नवीकरणीय संसाधनों (जैसे पेड़-पौधे, जानवर, हवा, पानी, मिट्टी व खनिज पदार्थ) के भंडार के लिए प्रयुक्त एक अन्य प्रचलित शब्द है। 1970 के दशक की शुरुआत से ही सरकार, व्यवसाय, नागरिक समाज और शैक्षणिक समुदायों के भीतर प्राकृतिक पूंजी के परिपेक्ष्य के व्यावहारिक अनुप्रयोगों में रूचि काफी बढ़ गई है।
उदाहरण के लिए उत्तराखंड के चमोली में शुरू किया गया अभियान ‘पेड़ बचाओ’ इसका एक उदाहरण है।
प्राकृतिक पूंजी शब्द का श्रेय अर्थशास्त्री ई. एफ. शूमाकर को दिया जाता है, जिन्होंने 1973 में अपनी पुस्तक ‘Small is Beautiful’ में यह अवधारणा प्रस्तुत की थी।
प्राकृतिक पूंजी लेखा
प्राकृतिक पूंजी लेखा एक समूह शब्द है, जो प्राकृतिक पूंजी के भंडार और प्रवाह को मापने तथा दर्ज करने हेतु व्यवस्थित तरीका प्रदान करने के लिए एक लेखांकन ढांचा के उपयोग के प्रयास को शामिल करता है। इसका अंतर्निहित आधार यह है कि पर्यावरण समाज और अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है। इसे हमें एक ऐसी संपत्ति के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए, जिसका प्रबंधन और रखरखाव किया जाए।
प्राकृतिक पूंजीगत लेखांकन, व्यक्तिगत पर्यावरणीय संपत्ति जैविक और अजैविक दोनों तरह के संसाधनों (जैसे पानी, खनिज ऊर्जा, लकड़ी, मछली) के लेखांकन को कवर करता है। इसके साथ ही यह पारिस्थितिक तंत्र परिसंपत्तियों (जैसे वन व आर्द्रभूमि), जैव-विविधता तथा पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लेखांकन को भी शामिल करता है।
पर्यावरण या आर्थिक लेखांकन प्रणाली
पर्यावरण या आर्थिक लेखांकन प्रणाली पर्यावरण से संबंधित आर्थिक लेखांकन के लिए स्वीकृत अंतरराष्ट्रीय मानक है। यह पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के साथ इसके संबंध पर आंकड़ों को व्यवस्थित और प्रस्तुत करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करती है।
पर्यावरण या आर्थिक लेखांकन प्रणाली संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय आयोग, संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा विश्व बैंक के तत्वधान में निर्मित और जारी की जाती है।
पर्यावरणीय आर्थिक लेखांकन प्रणाली, सेंट्रल फ्रेमवर्क को संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी आयोग द्वारा वर्ष 2012 में पर्यावरण आर्थिक लेखांकन के लिए पहले अंतर्राष्ट्रीय मानक के रूप में अपनाया गया था।