रानी दुर्गावती का इतिहास क्या है?

रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर, 1524 को कालिंजर फोर्ट, महोबा में हुआ था। दुर्गावती के पिता महोबा के राजा थे। 1542 में दुर्गावती का विवाह गौड़ साम्राज्य के संग्राम शाह के बड़े बेटे दलपत शाह के साथ हुआ था। इस विवाह के कारण ये दो वंश एक साथ हो गए। चंदेल और गौड़ साम्राज्य के सामूहिक आक्रमण की बदौलत शेरशाह सूरी के खिलाफ धावा बोला गया, जिसमें शेरशाह सूरी की मौत हो गई थी।

1545 में दुर्गावती ने एक बालक वीर नारायण को जन्म दिया था। बालक के जन्म के 5 वर्ष बाद ही दलपत शाह की मौत हो गई, जिससे सिंहासन खाली पड़ गया और बालक शिशु नारायण अभी गद्दी संभालने के लायक नहीं था। दलपत शाह के विरोधी एक योग्य उम्मीदवार की तलाश कर रहे थे तभी रानी दुर्गावती ने राजपाठ खुद के हाथों में ले लिया और खुद को गौड़ साम्राज्य की महारानी को घोषित कर लिया। गौड़ राज्य का कार्यभार अपने हाथों में आते ही उसने सबसे पहले अपनी राजधानी सिंगुरगढ़ से चौरागढ़ कर दी, क्योंकि नई राजधानी सतपुड़ा पहाड़ी पर होने की वजह से पहले से ज्यादा सुरक्षित थे।

रानी दुर्गावती ने अपने पहले ही युद्ध में भारत वर्ष में अपना नाम रोशन कर लिया था। शेरशाह सूरी की मौत के बाद सूरत खान ने उसका कार्यभार संभाला, जो उस समय मालवा गणराज्य पर शासन कर रहा था। सूरत खान के बाद उसके पुत्र राजबहादुर ने कमान अपने हाथों में ले ली, जो रानी रूपमती से प्रेम के लिए प्रसिद्ध हुआ था। सिंहासन पर बैठते ही बाज बहादुर को एक महिला शासक को हराना बहुत आसान लग रहा था, इसलिए उसने रानी दुर्गावती के गौड़ साम्राज्य पर धावा बोल दिया।

बाज बहादुर के द्वारा रानी दुर्गावती को कमजोर समझने की भूल के कारण उसे भारी हार का सामना करना पड़ा और उसके कई सैनिक घायल हो गए थे। बाज बहादुर के खिलाफ इस जंग में जीत के कारण और उसके राज्यों में महारानी दुर्गावती का डंका बज गया था। अब रानी दुर्गावती के राज्य को पाने की हर कोई कामना करने लगा था। जिसमें से एक मुगल सूबेदार अब्दुल माजिद खान भी था। ख्वाजा अब्दुल माजिद खान कारा मणिकपुर का शासक था, जो रानी के पास का नजदीकी साम्राज्य था। जब उसने रानी के खजाने के बारे में सुना तो उसने आक्रमण करने का विचार बनाया। अकबर से आज्ञा मिलने के बाद आसिफ खान भारी फोर्स के साथ गर्हा की ओर निकल पड़ा। जब मुगल सेना दमोह के नजदीक पहुंची तो मुगल सूबेदार ने रानी दुर्गावती से अकबर की अधीनता स्वीकार करने को कहा, तब रानी दुर्गावती ने कहा, कलंक के साथ जीने से अच्छा है गौरव के साथ मर जाना।

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