NATO | नाटो की स्थापना | संरचना | उद्देश्य

नाटो (NATO – North Atlantic Treaty Organization) एक सैन्य संगठन है, जिसकी स्थापना 4 अप्रैल, 1949 को हुई थी। इसका मुख्यालय बेल्जियम (ब्रुसेल्स) में स्थित है। अमेरिका तथा ब्रिटेन सहित इसमें 31 सदस्य देश हो गए हैं। फिनलैंड नाटो में  जुड़ने वाला सबसे नया देश है , जो 4 अप्रैल, 2023 से  शामिल हुआ है। संगठन सामूहिक सुरक्षा पर कार्य करता है अर्थात एक-एक सदस्य राष्ट्रों की सुरक्षा का उत्तरदायित्व सभी राष्ट्रों पर है, जिसे संयुक्त सेना भेजकर पूरा किया जाता है। इसका नेतृत्व मुख्य रूप से अमेरिका करता है। नाटो प्रारंभ में एक राजनीतिक संगठन था, मगर वर्तमान में यह एक सैन्य संगठन में परिवर्तित हो गया है।

नाटो की शुरुआत 1947 में फ्रांस और ब्रिटेन के बीच डनकिर्क संधि से हुई थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी की ओर से हमला होने की स्थिति में मिलकर सामना करने के लिए यह संधि हुई थी। 1949 में जब नाटो बना तो इसके 12 संस्थापक सदस्य थे – अमेरिका, ब्रिटेन, बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्जमबुर्ग, नीदरलैंड्स, नॉर्वे और पुर्तगाल

नाटो की संरचना

नाटो संगठन 4 उप-संगठन से मिलकर बना एक संगठन है। जिनकी अलग-अलग एवं महत्वपूर्ण भूमिका है।

    1. परिषद : यह नाटो की सर्वोच्च संस्था है। जिसका निर्माण राज्य के मंत्रियों से होता है। उसके मंत्री वर्ष में एक बार बैठक लेते हैं एवं इस परिषद के द्वारा ही महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते हैं।
    2. उप परिषद : इस इस परिषद में नाटो के सदस्य देशों द्वारा नियुक्त कूटनीतिक परिषदों के सदस्य आते आते हैं। यह नाटो के संगठन से संबंधित सामान्य हितों एवं मुख्य सिद्धांतों पर विचार करते हैं।
    3. सैनिक समिति : इसका मुख्य कार्य नाटो परिषद एवं उसकी प्रतिरक्षा समिति को सलाह देना है। इस संगठन में सदस्य देशों के सेना अध्यक्ष शामिल होते हैं।
    4. प्रतिरक्षा समिति : इसमें सदस्य देशों के प्रतिरक्षा मंत्री शामिल होते हैं, जो प्रतिरक्षा प्रणाली पर विचार करते हैं।

नाटो संगठन का मुख्य उद्देश्य

  1. पश्चिमी यूरोपीय देशों को एक सूत्र में संगठित करना।
  2. इस संगठन में अमेरिका की महत्वपूर्ण भूमिका है, इसलिए अमेरिका चाहता है कि पूरी दुनिया पर उसका राज कायम रहे।
  3. यूरोप पर आक्रमण के समय अवरोधक की भूमिका निभाना अर्थात यूरोप पर आक्रमण होने के विरोध में नाटो प्रतिरक्षा प्रणाली की भूमिका अदा करता है।
  4. यूरोप एवं अमेरिका आदि किसी भी सदस्य देश पर आक्रमण होने पर नोटों पर, आक्रमण माना जाता है।
  5. सोवियत संघ के पश्चिम यूरोप में तथाकथित विस्तार को रोकना तथा युद्ध की स्थिति में लोगों को मानसिक रूप से तैयार करना।
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