भारत में जनसंख्या संबंधी समस्याओं के समाधान और जनसंख्या नियंत्रण को प्रभावशाली तरीके से निर्मित करने के लिए प्रयास प्रारंभ हो गया था। 1948 में ही भारत सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय प्रतिबद्धता की घोषणा की और 1951 में इसे राष्ट्रीय कार्यक्रमों में शामिल कर लिया गया।
प्रथम पंचवर्षीय योजना में परिवार कल्याण कार्यक्रम के अंतर्गत 65,00,000 रुपए खर्च करने का लक्ष्य रखा गया था, जो 10वीं योजना में बढ़कर 26126 करोड रुपए हो गया। भारत की जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रमों के अंतर्गत बहु-स्तरीय नीति अपनाई गई, इसमें जागरूकता कार्यक्रम, परिवार कल्याण केंद्र द्वारा निशुल्क गर्भनिरोधक की आपूर्ति, शल्य क्रियाओं के उपयोग द्वारा जनसंख्या नियंत्रण तथा गरीब दंपत्ति को वित्तीय प्रोत्साहन एवं सहायता और इसके लिए WHO & यूनिसेफ जैसी संस्थाओं का सहयोग लिया गया।
- जनसंख्या नीति के क्रम में 1976 में प्रथम राष्ट्रीय जनसंख्या नीति घोषित की गई थी। पुनः 1974 में और 1977 में संशोधित नीति की घोषणा की गई। 1977 में परिवार नियोजन का नाम परिवर्तित कर परिवार कल्याण कर दिया गया। इन कार्यक्रमों से जनसंख्या की वृद्धि की प्रवृत्तियों पर कुछ हद तक नियंत्रण स्थापित किया जा सका है, लेकिन जनसंख्या की विस्फोटक प्रवृत्ति 1991 तक बनी रही। ऐसे में नई जनसंख्या नीति 2000 की घोषणा की गई। यह नीति डॉ. एम एस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में गठित विशेष दल के रिपोर्ट के आधार पर तैयार की गई थी। इस नीति का प्रमुख उद्देश्य जनसंख्या वृद्धि को स्थिर करना था। इसमें 2040 तक जनसंख्या को स्थिर वृद्धि दर पर लाने का लक्ष्य रखा गया है।
इसके अंतर्गत तीन मुख्य उद्देश्य हैं :
- तत्कालिक उद्देश्य : इसके अंतर्गत गर्भनिरोधक स्वास्थ्य केंद्रों की आपूर्ति को सुनिश्चित करना,
- मध्यकालिक उद्देश्य : इसके अंतर्गत 2010 तक कुल प्रजनन दर को 2.1 के स्तर तक लाना,
- दीर्घकालिक उद्देश्य : इसके अंतर्गत 2045 तक स्थिर जनसंख्या के लक्ष्य को प्राप्त करना है।
इस नीति के अंतर्गत 16 प्रोत्साहन के कार्यक्रम भी सम्मानित किए गए तथा राष्ट्रीय सामाजिक जनांकिकी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कई उपाय सुझाए गए। निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा जैसे सुझाव भी दिए गए।
योजना आयोग के अनुसार ही देश का लगभग 1.9 प्रतिशत जनसंख्या भुखमरी की शिकार है। इस तरह जनसंख्या से संबंधित कई समस्याएं भारत में व्यापक स्तर पर बनी हुई है, जो एक और जनसंख्या विस्फोटक का परिणाम है, वही साथ ही इतनी बड़ी जनसंख्या को संसाधन के रूप में परिवर्तित न कर पाने की असफलता का प्रतीक है। इन समस्याओं के साथ ही सामाजिक पिछड़ापन, रूढ़िवादिता, अंधविश्वास, निरक्षरता, जागरूकता का अभाव आदि समस्याएं बनी हुई है, जो एक बड़ी चुनौती है। एक कुशल बड़ी जनसंख्या पर्यावरण निम्नीकरण का भी कारण होती है। क्योंकि बड़ी जनसंख्या के लिए विभिन्न सुविधाओं का विकास जैसे आवासीय समस्या का समाधान, परिवहन सुविधाएं, औद्योगिक विकास जैसे कार्यों के लिए प्राकृतिक संसाधनों का उचित एवं अनुचित दोहन किया जाता है जो पर्यावरणीय समस्या उत्पन्न करती है।
इस तरह भारत की जनसंख्या कई समस्याओं से ग्रसित है। अतः जनसंख्या नियंत्रण के प्रभावशाली उपायों के साथ ही वर्तमान जनसंख्या का उचित प्रबंधन एवं समाधान के रूप में परिवर्तन आवश्यक है।
नोट – द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार 11 जुलाई, 2023 में भारत की जनसंख्या 1,42,45,76,174 हो गई है जोकि विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या है। भारत में प्रजातीय एवं नृजातीय विविधताएं
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