पृथ्वी के तल पर वायुदाब एवं तापमान संबंधित भिन्नता पाई जाती है, जिससे विभिन्न अक्षांशों के मध्य तापीय विषमता उत्पन्न होती है। पृथ्वी के विभिन्न अक्षांशों को प्राप्त सौर्यिक ऊर्जा की मात्रा भी भिन्न होती है। पुनः समान अक्षांश पर भी स्थलाकृतिक विविधता एवं तल की प्रकृति की भिन्नता के कारण भी प्राप्त ऊर्जा की मात्रा भिन्न होती है। स्पष्टत: पृथ्वी के विभिन्न अक्षांशों के मध्य तापीय विषमता उत्पन्न होती है, पुनः समान अक्षांश पर भी तापीय विषमता पायी जाती है। इन्हीं कारणों से वायुमंडलीय परिसंचरण की उत्पत्ति होती है। वायुमंडलीय परिसंचरण की उत्पत्ति तापमान एवं वायुदाब में अंतर के कारण होती है। इसके अंतर्गत वायुमंडल की विभिन्न गतियों को सम्मिलित करते हैं। वायुमंडल कभी भी शांत नहीं रहता बल्कि तापीय एवं वायुदाब संबंधी भिन्नता के कारण कई प्रकार की वायु प्रवाह उत्पन्न होती है।
वायुमंडल में उत्पन्न गतियों को तीन वर्ग में रखा जाता है।
प्रारंभिक परिसंचरण
इसके अंतर्गत विभिन्न स्थाई वायुदाब पेटियों के मध्य प्रवाहित होने वाली स्थायी या प्रचलित पवनों को रखा जाता है। व्यापारिक पवन, पछुआ पवन, ध्रुवीय पवन, विषुवतीय पछुआ पवन इसी प्रकार के हैं। इन्हीं पवनों से अन्य वायु संचार की पृष्ठभूमि एवं ढांचा तैयार होता है।
द्वितीय परिसंचरण
इसके अंतर्गत चक्रवातों, प्रतिचक्रवातों, मानसून, अन्य मौसमी पवन तथा वायु राशियों का अध्ययन किया जाता है।
तृतीय परिसंचरण
इसके अंतर्गत स्थानीय मौसम को प्रभावित करने वाले स्थानीय कारणों से उत्पन्न स्थानीय पवन आते हैं। इनके प्रभाव क्षेत्र स्थानीय एवं सीमित है। इसमें दैनिक पवनें जलीय समीर, स्थलीय समीर, घाटी समीर, पर्वतीय समीर तथा चिनूक, फान, सिराको जैसी गर्म तथा ब्लिजार्ड, बोरा जैसी ठंडी स्थानीय पवने आती हैं।
ऊपरी वायु परिसंचरण
वायुमंडल के क्षोभमंडल पर धरातल से लगभग 3 किमी ऊपर बिल्कुल भिन्न प्रकार का वायुसंचरण होता है। ऊपरी वायु संचरण के निर्माण में पृथ्वी के धरातल के निकट वायुमंडलीय दाब की भिन्नता की कोई भूमिका नहीं होती। इन्हें जेट प्रवाह कहा जाता है।
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