आर्द्रता/Humidity
वायु में जल की स्थिति जलवाष्प या जल की गैसीय अवस्था को वायु की आर्द्रता या नमी कहते हैं। आर्द्रता वर्षण के लिए आवश्यक शर्त है। आर्द्र वायु से ही संघनन की क्रिया होती है।
सापेक्षिक आर्द्रता 100% हो तो ऐसी वायु संतृप्त कहलाती है। संतृप्त वायु में ही संघनन की क्रिया होती है। बादलों का निर्माण होता है, और वर्षा होती है।
ओसांक/Dew point
वह तापमान जिस पर संघनन क्रिया प्रारंभ होती है। उसे 0°C या 32°F ओसांक कहते है।
वर्षण/Precipitation
संतृप्त वायु का संघनन के बाद जल बिंदुओं के रूप में पृथ्वी के तल पर गिरना, वर्षण कहलाता है।
जब आर्द्र वायु, ओसांक को प्राप्त कर लेती है, तो संघनन की क्रिया प्रारंभ होती है और संघनन जलबिंदु या हिम कणों के रूप में होता है। दोनों ही परिस्थितियों में सतह पर जल वर्षा होती है। हालांकि वर्षा के विभिन्न रूप है। जैसे जलवृष्टि, हिमवृष्टि, सहिमवृष्टि एवं ओलावृष्टि, लेकिन जलवृष्टि को ही वास्तविक रूप में वर्षण कहते हैं।
वर्षा के प्रकार
- संवहनिक वर्षा (Convective rain)
- पर्वतीय वर्षा (Mountain rain)
- चक्रवातीय वर्षा (Cyclonic rain)
संवहनिक वर्षा
यह अधिक तापमान के क्षेत्रों में सतह के अत्यंत गर्म हो जाने के कारण होती है। अधिक तापमान एवं सूर्यतप के अत्यधिक प्राप्ति के कारण, सतह की हवाएं अत्यधिक गर्म होकर ऊपर उठने लगती है, और क्रमशः ठंडी होती जाती है। जिससे क्रमशः संघनन के बाद वर्षा कपासी बादलों का निर्माण होता है, जिससे तीव्र एवं मूसलाधार वर्षा होती है। सतह से ऊपर उठती हवाएं क्षोभमंडल तापीय विशेषताओं के कारण ठंडी होने के कारण सतह पर बैठने लगती है, जो सतह के गर्म क्षेत्र के संपर्क से गर्म होकर पुनः ऊपर उठ जाती हैं। इस प्रकार हवाओं का संवहनिक चक्र उत्पन्न होता है, जिससे हवाएं चक्रिय रूप से ऊपर नीचे प्रवाहित होने लगती है। अतः इसे संवहनिक वर्षा कहते हैं। इस प्रकार की वर्षा में तीव्र मूसलाधार वर्षा, बादलों का गर्जन, बिजली का चमकना, तड़ित झंझा की उत्पत्ति, जैसी विशेषताएं पाई जाती है। संवहनिक वर्षा के विश्व में 2 क्षेत्र हैं।
- 10°N से 10°S के मध्य स्थित विषुवतीय वर्षा प्रदेश
- मरुस्थलीय प्रदेश (Desert region)
विषुवत प्रदेश में संवहनिक वर्षा दोपहर 12:00 बजे प्रारंभ होती है। सांय 4 बजे के बाद वर्षा समाप्त हो जाती है। इसका कारण दोपहर में सतह का अधिक गर्म हो जाना है। विषुवतीय प्रदेश में विश्व में, सर्वाधिक तड़ित झंझा उत्पन्न होते हैं। यहां वर्ष में 75-150 तड़ित झंझा उत्पन्न होते हैं, जो अत्यंत तूफानी होते हैं।
पर्वतीय वर्षा
जब समुद्री आर्द्र हवाएं पर्वतीय क्षेत्र से टकराती है तो ऊपर उठने लगती हैं। ऊपर उड़ती हवाओं में शुष्क रुद्धोष्म परिवर्तन की दर से तापमान में कमी आती है। फलस्वरुप हवाएं ठंडी होने लगती हैं, जिसमें संघनन की क्रिया के फलस्वरुप विभिन्न प्रकार के बादलों का विकास होता है और तीव्र वर्षा होती है। इसे पर्वतीय वर्षा कहते हैं। इसमें वर्षा पर्वतों के पवन अभिमुख ढाल पर अधिक मात्रा में वर्षा होती है जबकि पर्वतों के विमुख ढाल पर उतरती हुई, आर्द्र हवाओं की आद्रता में कमी के कारण अपेक्षाकृत कम वर्षा प्राप्त की जाती है। ऐसे क्षेत्रों को वृष्टिछाया प्रदेश कहते हैं। पर्वतों के विमुख ढाल पर सीमित मात्रा में वर्षा होने का एक प्रमुख कारण उतरती हुई हवाओं पर दबाव की क्रिया से तापीय वृद्धि का होना है, जिसके कारण हवाएं ऊपर उठ जाती हैं और संघनन के बाद वर्षा करती हैं। इसी कारण वृष्टि छाया प्रदेश पूर्णतः शुष्क नहीं रहता।
चक्रवातीय वर्षा
चक्रवातीय वर्षा, उष्ण चक्रवात, शीतोष्ण चक्रवात दोनों ही अवस्थाओं में होती है, सामान्यतः चक्रवात के केंद्र में LP के केंद्र की स्थिति होती है, जिसके चारों ओर से हवाएं प्रवाहित होती है, जबकि मध्य के निम्न वायुदाब केंद्र से हवाएं ऊपर उठती है, जिससे संघनन की क्रिया के फलस्वरुप बादलों का निर्माण होता है, और तीव्र वर्षा होती है। चक्रवात में वर्षा, चक्रवात के विस्तार, प्रवाह मार्ग, चक्रवात की स्थिति एवं ठहराव पर निर्भर करती है। सामान्यतः चक्रवातों में तीव्र मूसलाधार एवं तूफानी वर्षा होती है, लेकिन इसकी प्रवृत्ति उष्ण चक्रवात और शीतोष्ण चक्रवात में भिन्न-भिन्न होती है।
उष्ण चक्रवात में वर्षा
शीतोष्ण चक्रवात में वर्षा
उष्ण चक्रवात के विपरीत शीतोष्ण चक्रवात में वाताग्र का विकास होता है और वाताग्र के सहारे सतह की हवाएं ऊपर उठती हैं, जिसमें संघनन की क्रिया के फलस्वरुप बादलों का निर्माण होता है और वर्षा होती है। शीतोष्ण चक्रवात में वर्षा, शीत वाताग्र एवं उष्ण वाताग्र के सहारे होती है। क्योंकि शीत वाताग्र का ढाल तीव्र होता है। अतः वर्षा छोटे क्षेत्र में लेकिन तीव्र एवं मूसलाधार होती है और वर्षा कपासी बादलों से होती है।
उच्च वाताग्र (High atmosphere) मन्द ढाल का होता है एवं गर्म वायु धीरे-धीरे ठंडी वायु के ऊपर चढ़ती है अर्थात मंद ढाल के सहारे गर्म वायु ऊपर उठती है, जिससे बहुस्तरीय बादलों का विकास होता है और वर्षा मुख्यत वर्षा स्तरी बादलों से होती है। इसमें वर्षा अपेक्षाकृत बड़े क्षेत्र में लेकिन धीमी गति से होती है।
शीतोष्ण चक्रवातों (Temperate cyclones) से मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में वर्षा होती है। पश्चिमी यूरोपीय जलवायु प्रदेश, भूमध्यसागरीय जलवायु प्रदेश में शीतोष्ण चक्रवात से शीतकाल में पर्याप्त वर्षा होती है। पछुआ विक्षोभ की वर्षा भी शीतोष्ण चक्रवात की वर्षा है।
विश्व में वर्षा का वितरण
विश्व में वर्षा की निम्नलिखित पेटियां हैं।
- विषुवतीय अधिकतम वर्षा की पेटी (10°N – 10°S)
- व्यापारिक पवन की वर्षा पेटी (10°-20°NS)
- उपोष्ण कटिबंधीय न्यूनतम वर्षा की पेटी (20°-30°NS)
- भूमध्यसागरीय वर्षा की पेटी (30°-40°NS)
- मध्य अक्षांशीय द्वितीय अधिकतम वर्षा की पेटी (40°-60°NS)
- ध्रुवीय निम्न वर्षा की पेटी (60°-90°NS)
- सर्वाधिक वर्षा का क्षेत्र, वर्षा का औसत 175-200 सेंमी। अधिकांश क्षेत्र में 250 सेंमी वर्षा से अधिक। वर्षा संवाहनिक प्रकार की, तड़ित झंझा (Thunderstorm), गर्जन के साथ, मूसलाधार वर्षा, 75-150 तड़ित झंझा, दोपहर 12:00 से 4:00 बजे तक बारिश। वर्षा वर्ष भर होती है।
– विषुवतीय वन प्रदेश के विकास में सहायक। यहां सदाबहार (Evergreen) कठोर लकड़ी के वन पाए जाते हैं
- वर्षा – व्यापारिक पवनों से महाद्वीपों के पूर्वी भाग में मुख्यतः 50-150 सेंमी तक औसत वर्षा होती है। भारत की मानसूनी वर्षा के प्रदेश भी इसके अंतर्गत आते हैं। यहां मानसूनी पवनों से वर्षा होती है। वर्षा मुख्यतः ग्रीष्म काल में समुद्री आर्द्र पवनों से होती है।
- यह उच्च वायुदाब (High Air Pressure) का क्षेत्र है। अतः न्यूनतम वर्षा का क्षेत्र है। महाद्वीप के पश्चिमी भाग में विश्व की न्यूनतम वर्षा होती है। इस क्षेत्र में विश्व के सभी उष्ण मरुस्थल है। यहां प्रतिचक्रवातीय स्थिति पाई जाती है। औसत वर्षा 90 सेंमी होती है। पूर्वी भाग में मां व्यापारिक पवनों के कारण पर्याप्त वर्षा होती है। यह भारत के मानसून वर्षा क्षेत्र की पेटी में है। यहां मनीसराम (चेरापूंजी, मेघालय) में 1000 सेंमी वर्षा होती है।
- 30°-40° अक्षांश (Latitude) के मध्य महाद्वीपों (Continents) के पश्चिमी भाग में औसत वर्षा 100 सेंमी होती है। वर्षा शीतकालीन होती है। इसका कारण शीतोष्ण चक्रवात (Temperate cyclones) एवं पछुआ हवाओं के कारण वर्षा का होना है। ग्रीष्मकाल शूष्क होता है। इस समय यह क्षेत्र, शुष्क व्यापारिक पवन के प्रभाव में आ जाने से वर्षा नहीं हो पाती। यह प्रदेश संतरा, अंगूर, जैतून के लिए महत्वपूर्ण है।
- महाद्वीपों के पश्चिम भाग में स्थित, दूसरा सर्वाधिक वर्षा का क्षेत्र है। औसत वर्षा 75-125 सेंमी है। यहां वर्षभर वर्षा होती है। शीतकाल में समुद्री आर्द्र पछुआ हवा तथा शीतोष्ण चक्रवात दोनों से वर्षा होती है। ग्रीष्म काल में पछुआ हवाओं से वर्षा होती है। यहां की जलवायु सर्वोत्तम मानी जाती है।
- 60° से ध्रवों की ओर आर्द्रता में कमी आने लगती है और वर्षा की मात्रा क्रमशः घटती जाती है। ध्रुवीय क्षेत्र में 25 सेंमी से भी कम वर्षा होती है। {किस कंपनी के शेयर खरीदें?}
- 60° से ध्रवों की ओर आर्द्रता में कमी आने लगती है और वर्षा की मात्रा क्रमशः घटती जाती है। ध्रुवीय क्षेत्र में 25 सेंमी से भी कम वर्षा होती है। {किस कंपनी के शेयर खरीदें?}