भूसन्नति का अर्थ
भूसन्नतियों को वर्तमान स्थलखंडों का उद्गमस्थल कहा जा सकता है। साधारण अर्थ में भूसन्नति से अभिप्राय जलपूर्ण-गर्त से लिया जाता है, जिनमें तलछट का जमाव होता रहता है। अधिकांश विद्वानों का यह भी विचार है कि सभी मोड़दार पर्वतों का निर्माण भू-अभिनति के द्वारा ही हुआ है।
भूसन्नति की सामान्य विशेषताएं
- भूसन्नति उथले जलीय भाग हैं : होग का विचार था कि भूसन्नति गहरे जल के वे भाग होते हैं जिनकी लंबाई, चौड़ाई से अधिक होती है। लेकिन रोजर बंधुओं ने अप्लेसियन पर्वतों की संरचना का अध्ययन करके बताया कि इनकी चट्टानों का निर्माण उथले जलपूर्ण भागों में ही हुआ है।
- भूसन्नति की तली में धंसाव : साधारणतः यह माना जाता है कि भूसन्नति में जमे मलबे के भार से तली में धंसाव होता है, लेकिन होम्स का मत है कि इस धंसाव की क्रिया के मूल में न केवल मलबे का भार वरन भू-गर्भिक हलचल भी होती है।
- भूसन्नतियां संकरी और लंबी होती है : सामान्यतः मोड़दार पर्वतों का विस्तार लंबे किन्तु कम चोड़े भागों में है। हिमालय पर्वत की लंबाई लगभग 2400 किमी है जबकि चौड़ाई अपेक्षाकृत काफी कम है। इसी आधार पर विश्व के अन्य मोड़दार पर्वतों के विषय में भी कहा जा सकता है, कि इनकी भूसन्नतियां लम्बी किन्तु संकरी होती है।
- भूसन्नति में निक्षेपित अवसादो में एक क्रम पाया जाता है : भूसन्नति के तटीय भागों में अधिक पाने का अभाव होने के कारण बड़े जमाव पाए जाते हैं, जिन्हें नेरेटिक जमाव कहा जाता है। समुद्र जल के आगे पीछे होने के कारण यह जमाव प्रायः क्रमबद्ध नहीं होता है। इसके विपरीत थोड़ा अंदर की ओर महीन कणों का जमाव होता है। यह जमाव मोटा होने के साथ-साथ क्रमबद्ध होता है।
- भूपटल की प्राय: सभी भूसन्नतियां : सभी भूगर्भिक कालों में विभिन्न आकार प्रकार की रही हैं। इनके गतिशील रहने के कारण इनके क्षेत्रों को गतिशील क्षेत्र कहा जाता है।
- भूसन्नति में होने वाले मन्द धंसाव के कारण विस्तृत गड्ढों का, जिनका ढाल मंद होता है, उनका निर्माण होता है।
- भू-सन्नति केवल नाद के आकार का बेसिक ही नहीं है, वरन इसमें परतदार जमाव का भी स्थान है।
अतः भूसन्नतियां उथले जलीय भाग हैं, जिनमें तलछटीय निक्षेप के साथ ही उनकी तली धंसती जाती है। यह लंबे, अपेक्षाकृत संकरे जलपूर्ण गर्त होतें है, जिनमें तलछटीय जमाव के समय धंसाव होता रहता है।
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर दो मूल मत सामने आते हैं।
- अवसाद के जमाव के दौरान धंसाव : अर्थात अवसादो के भार से तली धंसती है जिससे उसमें और अधिक अवसाद जमा करने की संभावना हो जाती है और पुनः अवसादो का जमाव होता है।
- धंसाव के दौरान जमाव : अर्थात जब तली में जमाव होता है तभी तली निक्षेप लायक बन जाती है अन्यथा भू-अभिनति की तली शीघ्र भर जाती है और जमाव बहुत पतला हो जाएगा।
अतः इन दोनों ही तथ्यों में मूल्यत: कुछ भी अंतर नहीं है।
भूसन्नति संबंधी विभिन्न सिद्धांत
सन् 1963 में सर्वप्रथम डाना महोदय ने इस उथले जलीय भाग को भूसन्नति नाम दिया था। डाना के अनुसार, भूसन्नतियां लंबी, संकरी, उथली और निरंतर धंसती हुई समुद्र तली होती है।
उपरोक्त तथ्य को देने से पूर्व उन्होंने बताया कि मोड़दार पर्वतों की संरचना समुद्री निक्षेप से हुई है। डाना महोदय ने जीवाशेषों के आधार पर यह भी अनुमान लगाया कि इनका जमाव उथले जलीय भागों में हुआ होगा। ‘हाल’ ने सर्वप्रथम वलित पर्वतों भूसन्नतियों के मध्य संबंध स्थापित किया। उन्होंने कहा कि वलित पर्वतों व चट्टानों का निक्षेप उथले सागर में हुआ है। निक्षेप के कारण भूसन्नति की तली में धंसाव होता रहता है, लेकिन जल की गहराई में परिवर्तन नहीं होता है। भूसन्नति लंबाई की अपेक्षा कम चौड़ी होती है। भूसन्नति से संबंधित विचारधारा के संबंध में हाल और डाना का महत्वपूर्ण योगदान है। हालांकि इसे सैद्धांतिक रूप देने का श्रेय ‘होग’ जाता है।
होग की संकल्पना :
होग ने ‘हाल व डाना’ के विपरीत अपना मत व्यक्त किया है। इनके अनुसार भूसन्नतियां गहरी होती हैं, जिनकी लंबाई चौड़ाई से अधिक होती है। भूसन्नति की स्थिति के संबंध में होग का मत है कि यह कठोर खंडों के मध्य स्थित होती है। इन्हीं कठोर खंडों के कटाव से प्राप्त मलवा भूसन्नति में जमा होता है, जो कालांतर में मुड़कर मोड़दार पर्वतों का रूप धारण कर लेता है। होग ने मैसोजोइक युग के दृढ़ पांच खंडों को एक मानचित्र में दिखाया है। ये दृढ़ भू-खण्ड है।
- उत्तरी अटलांटिक दृढ़ खंड
- सिनो साइबेरिया
- अफ्रीका व ब्राज़ील
- ऑस्ट्रेलिया – भारत – मेडागास्कर
- प्रशांतीय खण्ड
इन कठोर खंडों के बीच 6 भूसन्नतियां थी।
- रॉकी भूसन्नति
- टैथिस भूसन्नति
- यूराल भूसन्नति
- प्रशांत भूसन्नति
- एण्डीज भूसन्नति
- मोजांबिक भूसन्नति
भूसन्नति निक्षेप को समझाते हुए होग ने बताया कि भूसन्नति के किनारे वाले भाग में जीव एवं वनस्पति के अवशेषों का जवाब मिलता है। गहरे मध्यवर्ती भागों में महीन कणों का जमा होता है। अतः जमाव क्रम के आधार पर तथा जीवा अवशेषों के आधार पर भी भूसन्नति की गहराई में मोटाई का अनुमान लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, तटीय जमाव उथले सागर में तथा ग्रेपटोलाइट नामक तैराक जीव के अवशेषों से निर्मित ग्रेपटोलाइट चट्टान का जमाव गहराई पर होता है।
भूसन्नति विकास को समझाते हुए ‘होग’ ने बताया है कि –
- तलछटीय जमाव, धंसाव और फिर जमाव विकास की प्रथम अवस्था है।
- दबाव के कारण कुछ भागों में मोड़ पड़ना विकास की दूसरी या मध्यवर्ती अवस्था है।
- अंतिम अवस्था में भूसन्नति का संपूर्ण मलवा मुड़कर पर्वत का रूप ले लेता है। ‘होग’ यह मानते हैं कि कभी-कभी इस प्रक्रिया में मामूली उत्थान होता है, उठे भाग पर अपरदन व फिर धंसाव होता है। यह अवसादों के पुनर्वितरण की अवस्था कहलाती है।
J. W. Evans के अनुसार :
भूसन्नति को तलछटीय धंसाव कहा जा सकता है, क्योंकि भूसन्नति की तले में निरंतर धंसाव होते रहते हैं। उन्होंने बताया कि यह एक अनिवार्य प्रक्रिया है। भूसन्नति की तली का आकार निरंतर परिवर्तित होता रहता है। भूसन्नति के किनारे पर एक दिग्नत मोड़ व उत्क्रम भ्रंश दोनों में से किसी एक के होने की संभावना रही है। तली की गहराई के अनुसार तलछटीय जमाव भी पाया जाता है यानी गहरे भागों में अधिक मोटा जमाव तथा उथले किनारे वाले भागों में अपेक्षाकृत कम मोटा जमाव पाया जाता है।
भूसन्नति चार स्थानों पर महाद्वीपीय समुद्री किनारों पर, 2 महाद्वीपों अथवा स्थल खंडों के बीच पर्वत पठार के सहारे विशाल नदियों के मुहाने पर पाए जाने की संभावना रहती है।
भूसन्नति के विकास के विषय में इन्होंने कहा कि तलछटीय जमाव के भार के कारण तली में धंसाव होता है इस धंसाव के कारण तली के नीचे की सीमा हटने लगती है। इस प्रकार अव्यवस्था उत्पन्न हो जाती है। संपीड़नात्मक दबाव के कारण तलछटीय भाग सीमा से हल्का होने के कारण नीचे न धंसकर ऊपर उठता है, और पर्वत निर्माण प्रारंभ हो जाता है। इस अवस्था को संतुलित करने के लिए अत्यंत धंसाव होता है, जिनमें इन पर्वतों से प्राप्त मलवा जमा होने लगता है। इस तरह भूसन्नति चक्र आरम्भ हो जाता है।
आर्थर होम्स का मत :
होम्स के भूसन्नति की उत्पत्ति तथा विकास का विवेचन करते हुए बताया है कि भूसन्नतियां भूतल पर तनाव एवं संपीडन बलों के कारण उत्पन्न होता हैं। इन्होंने भूसन्नति के विकास के निम्न कारण बताये।
- मैग्मा के बहाव के कारण : इनके अनुसार पृथ्वी के क्रस्ट का निर्माण ग्रेनहियोराइट, एम्फीबोलाइट, एक्लोजाइट और कुछ भाग का पैरिडोटाइट से हुआ है। होम्स के अनुसार एम्फीबोलाइट के नीचे मैग्मा भाग का निर्माण पैरिडोटाइट से हुआ है। होम्स के अनुसार एम्फीबोलाइट के नीचे से मैग्मा के बहाव के कारण ऊपरी परत में धंसाव होने लगता है और भूसन्नति का निर्माण हो जाता है इसको मैग्मा का बहाव या घर्षण कहते हैं। कोरल सागर, अरा फुरा, वैडेल व रोससागर इस प्रकार के भूसन्नतियों के उदाहरण हैं।
- सियाल परत के पतला होने के कारण : भूतल के नीचे चलने वाली तरंगों के विपरीत दिशा में चलने के कारण तनाव उत्पन्न होता है, अतः दो स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं।
- पहली सियाल के धीरे-धीरे पतला होने के कारण स्थल खंडों में फैलाव फलत: भूसन्नति का निर्माण होता है। जैसे टैथिस भूसन्नति का निर्माण।
- दूसरा तनाव की तीव्रता के कारण भूपटल का हिस्सा दो भागों में विभक्त हो जाता है तथा इससे भूसन्नति का निर्माण होता है। जैसे यूराल भूसन्नति का निर्माण।
- रूपांतर के कारण : पृथ्वी के आंतरिक भाग में दो संवहन तरंगों के मिलने के स्थान पर संपीडन के कारण चट्टानों का रूपांतरण होने लगता है, फलत: घनत्व बढ़ने के कारण नीचे की परत धंसने लगती है। इस धंसाव के कारण ऊपरी परत भी धंस जाती है और भूसन्नति का निर्माण होता है। अतः भूसन्नति का निर्माण प्राय अग्र देशों तथा मोड़दार पर्वतों के बीच में होता है। जैसे कैरेबियन रूम सागर आदि।
- संपीडन के कारण : पर्वत निर्माण के समय संपीडन के कारण कभी-कभी पर्वतों के सामने के भाग नीचे धंस जाते हैं। इस प्रकार अग्र प्रदेश व पर्वत श्रेणियों के बीच भूसन्नतियां उत्पन्न हो जाती है।
भूसन्नति के प्रकार :
विभिन्न प्रकार की भूसन्नतियों में विषमताओं के कारण शूशर्ट ने उन्हें कई भागों में विभाजित किया।
(1) एकल भूसन्नति :
वह भूसन्नति जो एक ही चक्र से गुजरे तथा विकास सीधा और सरल हो, एकल भूसन्नति कहलाती है। इस प्रकार की भूसन्नतियां लंबी एवं संकरी होती हैं। तली में जमाव व धंसाव का एक निश्चित क्रम पाए जाने के कारण इन भूसन्नतियों के जमाव में किसी प्रकार की असम्बद्धता नहीं पाई जाती है। इस प्रकार भूसन्नतियों का विस्तार महाद्वीपों के बीच एवं किनारों पर ही हो सकता है, इसका उदाहरण अप्लेसियन भूसन्नति है।
(2) बहुल भूसन्नति :
बहुल भूसन्नति उसे कहते हैं जिसका विकास बहुत उलझा हुआ हो, यें भूसन्नतियां चौड़े जलीय भाग थी और इनका विकास लम्बे भू-गर्भिक कालों में हुआ था। इन भूसन्नतियों के बीच-बीच में कई समानांतर भू-अपनतियों का विकास हुआ है, जो बाद में पुन: संपीडन के कारण पर्वत बने हैं। रॉकी भूसन्नति को उदाहरण स्वरूप लिया जा सकता है।
(3) मध्यस्थ भूसन्नति :
महाद्वीपीय भागों के बीच में स्थित भूसन्नतियां मध्यस्थ भूसन्नतियां कहलाती हैं। ये भूसन्नतियां उपरोक्त दोनों भूसन्नतियों की अपेक्षा अधिक जटिल है। ये कई चक्र अर्थात कई बार निक्षेप धंसाव, मोड़, अपरदन, निक्षेप, धंसाव और फिर मोड़ के दौर से गुजरकर भूसन्नति का रूप धारण करती हैं। यह ‘होग की संकल्पना’ को चरितार्थ करती हुई अधिक गहराई वाले जलीय भाग के रूप में है। टैथिस भू-सन्नति इस प्रकार का था और भूमध्य सागर इसका अवशेष है।
महत्वपूर्ण तथ्य :
- कोबर महोदय का भूसन्नति सिद्धांत संकुचन क्रिया पर आधारित था, क्योंकि इनमें से जो निर्बल क्षेत्र थे, वे पर्वत के रूप में ऊपर की ओर रूप में उठ गए। कोबर का मानना है कि उसके एक विशाल भाग में बहने वाली नदियों के द्वारा निरंतर मलवॆ का जमाव छिछले सागरीय द्रोणियों में होने लगा, जिसे उन्होंने भूसन्नति कहा।
- भू-अभिनति गर्त – भूपर्पटी में एक बड़ी तथा लम्बी निम्नावलि (Down warp) जिसके पृष्ठ के विस्तार को लगभग 20 मीलों में नापा जा सकता है और इसमें संचित अवसादों की मोटाई लगभग 30,000 फुट से 40,000 फुट तक हो सकती है।
- भ्रंशोत्थ पर्वत या ब्लॉक पर्वत ये तब बनते हैं, जब पृथ्वी की टेक्टॉनिक चट्टानें एक दूसरे से टकराती या सिकुड़ती हैं, जिससे पृथ्वी की सतह में मोड़ के कारण उभार आ जाता है, जैसे – हिमालय, यूरोपीय आल्प्स, उत्तरी अमरीकी रॉकी, दक्षिणी अमरीकी एण्डीज आदि सभी युवा अर्थात नये पर्वत हैं।