प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत | Plate Tectonic Theory in Hindi

प्लेट विवर्तनिकी एक ऐसा सिद्धांत है, जिसने भू-भौतिकी विज्ञान के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है। इस सिद्धांत की मान्यता ने भू-संतुलन, पर्वत निर्माण, ज्वालामुखी क्रिया, भूकंप आदि विवर्तनिक क्रियाओं के परंपरागत मान्यताओं को अस्वीकृत कर दिया तथा एक ऐसी संकल्पना प्रस्तुत की, जो भू-भौतिक विज्ञान से संबंधित मान्यताओं का वैज्ञानिक विश्लेषण करता है।

यह एक ऐसा सिद्धांत है, जो एक ही प्रक्रिया द्वारा ज्वालामुखी की उत्पत्ति, पर्वत निर्माण, भूकंप समुद्र तल का प्रसार कटक का निर्माण, गर्त का निर्माण, महाद्वीपीय विस्थापन, भूपटलीय संरचना आदि को स्पष्ट करता है।

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत का आधार हैरीहैस द्वारा प्रस्तावित सागर नितल प्रसरण की संकल्पना है। इसको पुराचुंबकत्व तथा वहाइन एवं मैथ्यूज के रेखिक चुंबकीय विसंगति के विश्लेषण ने और भी स्पष्ट किया। प्लेट शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम टूजो विल्सन ने 1965 में दिया था। मार्गन ने प्लेट टेक्टोनिक सिद्धांत का पूर्ण विकास किया। मैकेंजी, एवं पार्कर ने इस सिद्धांत की पुष्टि की। प्रारंभ में यह सिद्धांत ‘न्यू ग्लोबल टेक्टोनिक्स’ के नाम से जाना जाता था, बाद में प्लेट टेक्टोनिक्स कहा जाने लगा। होम्स के संवहन तरंग सिद्धांत ने इसे और दृढ़ किया एवं प्रमाणिकता प्रदान की। हालांकि यह सिद्धांत प्लेट विवर्तनिकी के पूर्व भी आ चुका था, लेकिन प्लेटो की गति को संवाहनिक तरंगों के द्वारा ही स्पष्ट किया गया। Eulers Theoremes से प्लेट की गति का स्पष्टीकरण होने के बाद 1968 से प्लेट प्रक्रिया का व्यापक प्रयोग होने लगा।

यह सिद्धांत निम्न मान्यताओं पर आधारित है।

  1. यह सिद्धांत भूपटल को दो भागों में बांटता है। पहला भाग प्लेट है, जो स्थित क्षेत्र है, यहां विवर्तनिक क्रियायें नहीं होती, और यह संवहन तरंगों से मुक्त क्षेत्र है। दूसरा विवर्तनिक क्षेत्र है, जहां भू-संचलन की क्रियाएं होती है। यह प्लेट के सीमा एवं सीमांत के क्षेत्र हैं।
  2. यहां सभी प्लेट दुर्बलमण्डल पर स्थित है। दुर्बलमंडल की अवस्था चिपचिपी या प्लास्टिक जैसी है और यह अधिक घनत्व की चट्टानों से बना है। परिणामत: सभी प्लेट इसमें प्रवाहित होती है। यहां तैराव का सिद्धांत लागू नहीं होता है।
  3. यहां सभी प्लेट वृत्ताकार पथ पर एक दूसरे के सापेक्ष में प्रवाहित होते हैं एवं पृथ्वी के अक्ष का अनुसरण करते हैं।

वैगनर की प्रवाह की अपेक्षा यह अधिक वैज्ञानिक एवं स्पष्ट परिभाषा है। यहां महाद्वीप नहीं प्लेट प्रवाहित होती हैं। प्लेटो की गतिशीलता ही इस सिद्धांत का आधार है।
उपर्युक्त मान्यताओं से स्पष्ट है कि प्लेट विस्थापित होते हैं, जिसके कारण विवर्तनिक क्रियायें घटित होती हैं।

प्लेटों का वर्गीकरण


स्थलीय दृढ़ भूखण्ड को प्लेट कहते हैं। प्लेट स्थलमंडल में स्थित होते हैं, जो विभिन्न आकार एवं मोटाई के होते हैं। संपूर्ण भूपटल में अनेक प्लेटें पायी जाती हैं। प्लेट महाद्वीपीय एवं महासागरीय होते हैं। अधिकांश प्लेट महाद्वीपीय सह महासागरीय प्रकृति के होते हैं। 

  • महाद्वीपीय प्लेट जैसे – अफ्रीका प्लेट
  • महासागरीय प्लेट जैसे – प्रशांत प्लेट
  • महाद्वीपीय सह महासागरीय प्लेट जैसे – इंडियन प्लेट

प्रशांत प्लेट को छोड़कर सभी प्लेट महाद्वीपीय सह महासागरीय प्रकार के हैं। अमेरिकी विज्ञान एकेडमी के अनुसार 7 बड़े मुख्य एवं 6 छोटे प्लेट है।

7 बड़े प्लेट : 

  1. प्रशांत प्लेट 
  2. इंडियन प्लेट
  3. उत्तरी अमेरिकन प्लेट
  4. दक्षिणी अमेरिकन प्लेट
  5. यूरेशियन प्लेट
  6. अफ्रीकन प्लेट
  7. अंटार्कटिका प्लेट

6 छोटे प्लेट : 

  1. अरेबियन प्लेट
  2. फिलीपींस प्लेट
  3. कोकोस प्लेट (पनामा)
  4. कैरेबियन प्लेट
  5. नाज्का प्लेट (पेरू)
  6. स्कोशिया प्लेट (दक्षिण अर्जेंटीना)

इन प्लेटो की औसत गहराई 70 किमी है, लेकिन वह संचरण के कारण कुछ अधिक तथा कुछ कम मोटे हैं। प्लेटो की अधिकतम गहराई 100 किमी तथा न्यूनतम 5 किमी है। 1984 में नासा ने 100 प्लेटो का होना बताया है। मोरगन ने 20 प्लेट का होना स्वीकार किया है।
वर्तमान में कई छोटे-छोटे प्लेटो का पता चला है, अतः प्लेटो की कोई निश्चित संख्या नहीं है। इसकी पहचान विवर्तनिकी क्षेत्रों एवं संवाहनिक तरंगों के क्षेत्रों में ही हो पाती है, और संवाहनिक तरंगों की जटिलताओं को पूर्णतः समझा नहीं जा सका है।

ये सभी प्लेट दुर्बलमंडल का पर स्थित है एवं ये सभी प्लेट एक दूसरे से इस प्रकार सटे हुए हैं कि बिना भूगर्भिक अध्ययन के इनकी सीमाओं का पता लगाना लगभग असंभव है। इन सीमाओं पर प्लेट अपनी गतिशीलता के कारण टकराता है, अलग होता है, या रगड़ खाकर गुजरता है, एवं विभिन्न प्रकार की भू-संचलन की क्रियाएं घटित होती हैं।

प्लेट गति एवं विवर्तनिक क्रियाएं


प्लेट की गति के विषय में अनेक तथ्य एवं कारण दिए गए हैं, जिनमें सर्वमान्य तथ्य निम्न है।

  1. प्लेट हल्के चट्टान से निर्मित एवं कम घनत्व के हैं, जो नीचे स्थित प्लास्टिक अवस्था (Zone of low velocity) के दुर्बल मंडल पर प्रवाहित होते हैं। यहां तैराव का सिद्धांत लागू होता है। दुर्बलमंडल आंतरिक संरचना का वह भाग है, जिस पर प्लेट गतिशील होते हैं।
  2. महासागरीय नितल के प्रसार के कारण प्लेटो में खिसकाव आता है। कटक के सहारे नवीन मैग्मा के ऊपर आने से कटक के दोनों और प्रसार होता है, और प्लेट कटक के सहारे विस्थापित होते हैं। अर्थात कटक दबाव की क्रिया से प्लेटों में गति उत्पन्न होती है।
  3. गुरुत्वाकर्षण के कारण प्रत्यावर्ती प्लेट करीब 45 डिग्री का ढाल बनाता है। यह ढाल प्लेट के प्रवाह के लिए पर्याप्त है।
  4. होम्स का संवहन सिद्धांत प्लेट के गति का सर्वाधिक संतोषजनक व्याख्या करता है। यद्यपि यह सिद्धांत प्लेट विवर्तनिकी के परिपेक्ष में नहीं दिया गया है, लेकिन बाद के वर्षों में प्लेट टेक्टोनिक्स को स्पष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

होम्स के अनुसार, पृथ्वी के आंतरिक भागों में रेडियो सक्रिय पदार्थ के विखंडन एवं सामान्य ताप में वृद्धि (32 मीटर पर 1 डिग्री सेल्सियस) से ताप संग्रह होता है। यह संग्रहित ताप उर्जा संवहन तरंगों को जन्म देती है। ये तरंग इतनी शक्तिशाली होती है कि ये प्लेट को खींचते हैं, विखण्डित करती हैं, मोड़ ला देती है और ऊंचे एवं गहरे भूपटलीय खण्डों का निर्माण करते हैं, अर्थात भूपटल में विरूपण उत्पन्न करती है।स्पष्टत: संवहन तरंगे प्लेटों में गति लाती है और ये गतिशील प्लेट अपनी सीमाओं पर टकराती है, एक दूसरे से अलग होती है या रगड़ खाती है।

  1. स्लैब क्रिया द्वारा भी प्लेटों का विस्थापन होता है। जिन स्थानों पर प्लेटों का निर्माण होता है, उससे दूर जाने पर प्लेट ठण्डे होते हैं, जिसका घनत्व अधिक होता है। इस कारण यह भारी हो जाता है और पूरे प्लेट को अपने साथ प्रत्यावर्तन के क्षेत्र में खींच लेते हैं।
  2. मैण्टल में गर्म स्थल की स्थिति स्वीकार की गई है। जिससे मैग्मा, तरल लावा पदार्थ भूपटल की और आते है। जो कटक के सहारे सतह पर आ जाते हैं। महासागरों में ज्वालामुखी द्वीपों, पर्वतों की उत्पत्ति का संबंध Hot-Spot से भी है।

प्लेटों के प्रकार


सीमा की विशेषताओं के आधार पर प्लेट की गति 3 प्रकार की होती है।

  1.  निर्माणकारी गति
  2.  विनाशकारी गति
  3.  संरक्षक गति

उपरोक्त तीन गति क्रमश: 3 प्रकार के सिमांतों के सहारे उत्पन्न होती हैं।

  1.  रचनात्मक प्लेट सीमांत
  2.  विनाशात्मक प्लेट सीमांत
  3.  संरक्षणात्मक प्लेट सीमांत

रचनात्मक प्लेट सीमांत :

यहां ऊपर उठती संवहन तरंगों के कारण प्लेट का विलगाव (अपसरण) होता है। विलगाव के कारण ज्वालामुखी क्रियाएं होती हैं एवं मैग्मा ऊपर निकलता है, फलस्वरुप भूपटल का निर्माण कार्य होता है। यह निर्माणकारी सीमांत है। सभी महासागरों के मध्य स्थित कटक का निर्माण निर्माणकारी सीमांत के सहारे होता है। कटक पर स्थित ज्वालामुखी दीपों का निर्माण भी इसी प्रक्रिया से होता है। यदि महाद्वीपों के नीचे से संवाहनिक तरंगे ऊपर उठती हैं। तो महाद्वीप दो खण्डों में विभक्त होने की स्थिति में होता है। यह महाद्वीपों पर भ्रंश की उत्पत्ति होती है। अफ्रीका की भ्रंश घाटी का निर्माण इसी प्रक्रिया से हुआ है। पैंजिया का विभाजन भी इसी प्रक्रिया से हुआ था।


विनाशात्मक प्लेट सीमांत :

विनाशात्मक सीमांत वह है, जहां दो प्लेट आपस में टकराते हैं। अधिक घनत्व वाले प्लेट नीचे चले जाते हैं और हल्के घनत्व वाले प्लेट ऊपर चले जाते हैं। चूंकि नीचे जाने वाले प्लेट का अग्रभाग नीचे जाकर अधिक ताप के कारण पिघल जाता है और उसका विनाश हो जाता है, अतः इसे विनाशात्मक किनारा कहते हैं। यह सीमांत स्थलाकृतियों के विकास एवं निर्माण की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। जहां पर अधिक घनत्व वाले प्लेट कम घनत्व वाले प्लेट के नीचे जाता है, वहां गहरी खाई का निर्माण होता है। यह महासागरीय गर्त कहलाता है।
यह स्पष्ट है कि समुद्र के सर्वाधिक गहरे भाग समुद्र के मध्य न होकर तट के नजदीक होते हैं, क्योंकि महाद्वीप हल्के घनत्व के होते हैं। अतः जहां महासागरीय प्लेट एवं महाद्वीपीय प्लेट टकराते हैं, वहां महाद्वीपीय प्लेट समुद्री प्लेट के ऊपर चढ़ जाते हैं। एवं महाद्वीप का अग्रभाग रगड़ खाने से मुड़ जाता है। इसी प्रक्रिया से एण्डिज एवं रॉकी पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ है। पुनः महासागरीय प्लेट नीचे जाने के बाद पिघल जाता है और ज्वालामुखी के रूप में ऊपर आता है, एवं ज्वालामुखी पर्वत का निर्माण करता है। इस प्रकार की क्रिया दो महाद्वीपीय प्लेटों एवं दो महासागरीय प्लेटों के मध्य भी होती है, जिससे क्रमश: महाद्वीपीय मोड़दार पर्वतों, समुद्री मोड़दार पर्वतों एवं द्वीपीय चाप व द्वीपीय तोरण की उत्पत्ति होती है। हिमालय की उत्पत्ति यूरेशियन एवं इंडियन प्लेटों के टकराने से ही हुई है।
अतः ये विनाशात्मक प्लेट सीमांत समुद्री खाई, तटीय मोड़दार पर्वत, मध्य महाद्वीपीय मोड़दार पर्वत एवं पर्वत के पीछे के ज्वालामुखी पर्वत द्वीपीय चाप, द्वितीय तोरण को भी स्पष्ट करता है। विनाशात्मक प्लेट सीमांत के सहारे 3 प्रकार की क्रियाएं होती हैं। यहां प्लेटों का अभिसरण निम्न तीन प्रकार से होता है।

  1. महाद्वीपीय – महाद्वीपीय प्लेट अभिसरण
  2. महासागरीय – महाद्वीप के प्लेट अभिसरण
  3. महासागरीय – महासागरीय प्लेट अभिसरण

संरक्षनात्मक प्लेट सीमांत :

संरचनात्मक सीमांत के सहारे दो प्लेट एक दूसरे के बगल से सरकते हैं, यहां पर नवीन स्थलों का न तो निर्माण होता है और न ही विनाश होता है। यहां पर भूकंप आते रहते हैं। रूपांतरण भ्रंश की उत्पत्ति इसी प्रकार होती है। ऑस्ट्रेलिया एवं पैसिफिक प्लेट के पास संरक्षी सीमांत का निर्माण होता है। प्रशांत प्लेट के पूर्वी तथा अमेरिकन प्लेट के पश्चिमी सीमांतों के सहारे सान एंड्रियास भ्रंश की उत्पत्ति संरक्षनात्मक सीमांत के सहारे ही हुई है।

भू-गर्भिक समस्याओं का समाधान


  1. पर्वतों की उत्पत्ति, मोड़दार पर्वत, ज्वालामुखी पर्वत, ब्लॉक पर्वत, भ्रंश, पैंजिया का विभाजन, टैथिस की उत्पत्ति एवं गर्त की उत्पत्ति की व्याख्या करता है।
  2. पर्वत, ज्वालामुखी एवं भूकंप सभी विवर्तनिक क्रियाओं की व्याख्या एक ही सिद्धांत से करता है।
  3. समुद्र के बीच स्थित, किनारे स्थित व महाद्वीपों के मध्य में स्थित सभी प्रकार के पर्वत की उत्पत्ति की व्याख्या करता है।
  4. महासागरीय नितल के फैलाव की व्याख्या करता है।
  5. महासागरीय कटक एवं कटक पर स्थित ज्वालामुखी द्वीपों की व्याख्या करता है।
  6. भू-संचलन की व्याख्या व भूपटल की मोटाई में भिन्नता की व्याख्या।
  7. विवर्तनिक जटिलताओं की व्याख्या।
  8. आंतरिक शक्तियों की व्याख्या।
  9. महासागरों के किनारे स्थित ट्रेंच की व्याख्या आदि सभी की व्याख्या करता है।

सिद्धांत की सीमाएं


  1. प्लेटो की गति के कारणों की अधिक विश्वसनीय वैज्ञानिक व्याख्या नहीं करता, क्या संवहन तरंग हिमालय की उत्पत्ति का कारण हो सकता है।
  2. दो प्लेटों के मिलने वाली सीमा एवं विलगाव की सीमा के बीच समरूपता नहीं पायी जाती।
  3. कई प्लेटो के अंदर भी कई प्लेट है, जिसकी गतिशीलता कई दिशाओं में है अर्थात विरोधी गति के प्रमाण मिलते हैं।
  4. पुराने के केलिडोनियन, हर्सिनियन पर्वत की उत्पत्ति की अधिक वैज्ञानिक व्याख्या नहीं कर पाता।
  5. प्लेटो की संख्या की सही जानकारी नहीं है और कई नवीन प्लेटो का पता चला है।
  6. एक ही प्लेट के भिन्न-भिन्न किनारों में गति संबंधी भिन्नता पायी जाती हैं।

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत की आलोचना


हालांकि, यह सिद्धांत पृथ्वी की विभिन्न विवर्तनिक क्रियाओं एवं स्थलाकृतिक विशेषताओं की वैज्ञानिक एवं तार्किक व्याख्या करता है, फिर भी यह सिद्धांत पूर्णत: दोषपूर्ण नहीं है। इस सिद्धांत की प्रमुख समस्याएं निम्नलिखित हैं –

  1. प्रसार कटको की लंबाई महासागरीय गर्त से अधिक है, दोनों एक समान नहीं है, तो नवीन भूपटल का निर्माण होना चाहिए।
  2. यह सिद्धांत यह बतलाने में असमर्थ है, कि जहां प्रसार सभी महासागरों में हो रहा है, वहां प्रत्यवर्तन केवल प्रशांत महासागर में ही क्यों है।
  3. किसी एक प्लेट के एक ही दिशा में गति होने चाहिए, लेकिन प्रतिरोधी गति में प्रमाण मिले हैं।
  4. बेनी ऑफ जोन‘ सभी स्थानों में पूर्णतः नहीं मिलता। उत्तरी अमेरिका में मध्यम एवं तीव्र भूकंप नहीं आते हैं।
  5. कई वलित पर्वतों की उत्पत्ति की पुष्टि नहीं होती, जबकि वलित पर्वत की उत्पत्ति के लिए विनाशकारी प्लेट आवश्यक है। ये है –
  • ऑस्ट्रेलिया – हसटन हाइलैंड
  • दक्षिण अफ्रीका – ड्रैगन्सबर्ग
  • ब्राजील – सियरा डोलमार

यह प्लेट विवर्तनिकी से संबंधित नहीं है।

प्लेटो की संख्या निश्चित नहीं है। छोटे प्लेटो की संख्या 100 तक बतायी जाती है। नवीन प्लेटों की पहचान तभी हो पाती है, जब कहीं विवर्तनिक क्रिया घटित होती है, क्रियाशील संवाहनिक तरंगों के क्षेत्र की पूर्ण पहचान तथा क्रियाशीलता का पता नहीं लगाया जा पाता है। यदि ऐसा होता तब भूकंप का पूर्व अनुमान भी लगाया जा सकता था। अतः प्लेटों की गतिशीलता, क्रियाशीलता एवं संवाहनिक तरंगों के क्षेत्रों से संबंधित अनुसंधान की आवश्यकता है।

महत्वपूर्ण तथ्य


  • वर्ष 1955 में सर्वप्रथम कनाडा के भू-वैज्ञानिक जे. टूजो विल्सन ने ‘प्लेट’ शब्द का प्रयोग किया। वर्ष 1967 में मैकेंजी, मॉर्गन व पारकर पूर्व के उपलब्ध विचारों को समन्वित कर ‘प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत’ का प्रतिपादन किया।
  • प्रशान्त महासागरीय प्लेट – यह महासागरीय प्लेट है जिसका विस्तार अलास्का क्यूराइल द्वीप समूह से प्रारम्भ होकर दक्षिण में अंटार्कटिक रिज तक सम्पूर्ण प्रशान्त महासागर पर है। इसके किनारों पर फिलीपींस, नजका तथा कोकोस लघु प्लेटें स्थित हैं। यह प्लेट सबसे बड़ी हैं।
  • प्लेट की रूपांतर सीमा, अभिसरण सीमा और अपसारी सीमा में मुख्य अंतर – प्लेट की रूपांतर सीमा – जहाँ न तो नई पर्पटी का निर्माण होता है और न ही पर्पटी का विनाश होता है, उन्हें रूपांतर सीमा कहते हैं। अपसारी सीमा – वह स्थान जहाँ से प्लेट एक-दूसरे से हटती है, अपसारी सीमा कहलाती है।

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