गोल क्रांति का संबंध आलू उत्पादन से है। केंद्रीय अनुसंधान संस्थान, शिमला द्वारा विकसित प्रौद्योगिकी एवं रोग रोधक किस्मों के परिणामस्वरुप भारत में आलू की क्रांति की शुरुआत हुई, जिसे गोल क्रांति की संज्ञा दी जाती है। देश में आलू उत्पादन को तीव्र गति प्रदान करने के लिए वर्ष 1971 में अखिल भारतीय समन्वित आलू सुधार परियोजना की शुरुआत की गई थी, जिसके अंतर्गत CPRS मोदीपुरम मेरठ में आलू अनुसंधान हेतु एक कार्यरत संस्था है।
दरअसल, भारत में आलू 16वीं सदी में पुर्तगाल से लाया गया, जहां यह ग्रीष्मकालीन फसल के रूप में उगाया जाता था। लेकिन, भारत में यह सर्दियों के मौसम में उगाया जाता है। यह बदलाव केंद्रीय अनुसंधान संस्थान, शिमला के प्रयासों के फलस्वरूप संभव हुआ। जिसके परिणामस्वरूप गोल क्रांति की शुरुआत हुई। इसके परिणामस्वरूप पिछले 50 वर्षों में आलू की खेती के क्षेत्रफल में लगभग 5 गुना तथा उत्पादन में लगभग 14 गुना वृद्धि हुई है।
आलू उत्पादन क्षेत्र
आलू उत्पादन के मामले में भारत, चीन एवं रूस के बाद तीसरे स्थान पर है। भारत में आलू की औसतन पैदावार प्रति हेक्टर 20-30 टन (2023 के अनुसार) है, जबकि विश्व स्तर पर यह 20 टन है। इस प्रकार भारत विश्व में एक बड़ा उत्पादक देश भी है। भारत के संदर्भ में, आलू उत्पादन के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल एवं पंजाब शीर्ष स्थान पर है।
आलू की प्रजातियां
केंद्रीय अनुसंधान संस्थान शिमला द्वारा विकसित आलू की निम्नलिखित प्रजातियां हैं।
कुफरी, चंद्रमुखी, कुफरी ज्याति, कुफरी लवकार, कुफरी लालिमा, कुफरी चिप्सोना, कुफरी स्वर्ण एवं कुफरी बादशाह आदि महत्वपूर्ण किस्में है। वर्ष 2021-22 के अनुसार, भारत में लगभग 56 मिलियन मेट्रिक टन आलू का उत्पादन हुआ। जिसमें उत्तर प्रदेश (31 प्रतिशत) सबसे ज्यादा उत्पादन करने वाला राज्य है। उसके बाद पश्चिम (23 प्रतिशत), बिहार (13 प्रतिशत), गुजरात (8 प्रतिशत) तथा मध्य प्रदेश (6 प्रतिशत) की भागीदारी निभाते हैं।