भूकंप का अर्थ | भूकंप के प्रकार | विश्व में भूकंप के क्षेत्र

भूकंप का अर्थ


भूपटल में होने वाले कंपन को भूकंप कहते हैं। भूकंप मुख्यत: आकस्मिक भू-संचलन की क्रिया का परिणाम है, जिसका संबंध पृथ्वी की अंतर्जात शक्तियों से होता है। पृथ्वी पर होने वाले कंपन के वाह्य कारण भूकंप भी हो सकते हैं, लेकिन भूगर्भिक कारकों से ही तीव्र भूकंप आते हैं। भूकंप भूपटल में होने वाला कंपन है, जो धरातल के नीचे या ऊपर चट्टानों के लचीलेपन या गुरुत्वाकर्षण की स्थिति में क्षणिक अवस्था या विक्षोभ के द्वारा उत्पन्न होता है।

  • भूकंप मूल : धरातल के नीचे जहां भूकंप की घटना प्रारंभ होती है, उस स्थान को भूकंप का उत्पत्ति केंद्र या भूकंप मूल कहते हैं। भूकंप मूल वह स्थान है, जहां से भूकंपीय लहरें प्रारंभ होती हैं।
  • भूकंप केंद्र : भूकंप मूल के ठीक ऊपर धरातल पर स्थित केंद्र या स्थान जहां सर्वप्रथम भूकंपीय लहरों का ज्ञान होता है, उस स्थान को भूकंप केंद्र या अधिकेंद्र कहते हैं। यह अधिकेंद्र भूकंप मूल के ठीक ऊपर समकोण पर स्थित होता है।
  • सीस्मोग्राफ या भूकंपमापी : सिस्मोग्राफ भूकंपीय लहरों को अंकित करने वाला यंत्र है, जो धरातल के ऊपर भूकंप केंद्र या अधिकेंद्र पर लगाए जाते हैं। इसे भूकंप लेखन यंत्र कहा जाता है।

भूकंप विज्ञान या सीस्मोलॉजी


सीस्मोलॉजी वह विज्ञान या विषय है, जिसमें सिस्मोग्राफ की सहायता से भूकंप की लहरों की गति उनके उत्पत्ति स्थान एवं प्रभावित क्षेत्रों की विस्तृत जानकारी प्राप्त की जा सकती है। यह भारत में पुना, मुंबई, देहरादून, दिल्ली तथा कोलकाता में भूकंप लेखन यंत्र की स्थापना की गई है।

भूकंप के अधिकेन्द्र पर सर्वप्रथम भूकंपीय लहरों का प्रभाव होता है, इसी कारण अधिकेंद्र या भूकंप केंद्र अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा सबसे अधिक प्रभावित होता है। यहां भूकंपीय लहरों की तीव्रता सर्वाधिक होती है

भूकंपीय लहरें भूकंप मूल से उत्पन्न होकर भूकंप केंद्र या अधिकेंद्र पर पहुंचती है। अधिकेंद्र से भूकंपीय लहरें केंद्र के चारों ओर प्रसारित होने लगती हैं। इन लहरों का मार्ग प्राय वृत्ताकार या अंडाकार होता।

भूकंप समाघात रेखाएं


भूकंपीय तरंगों की तीव्रता एवं प्रभाव के कारण विभिन्नताओं में क्षति होती है। विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली क्षति की मात्रा के आधार पर समान आघात क्षेत्र का निर्धारण किया जाता है। भूकंपीय लहरों द्वारा उत्पन्न समान आघात क्षेत्रों को मिलाने वाली रेखाओं को भूकंप समाघात रेखाएं कहते हैं।

अधिकेंद्र की स्थिति एक बिंदु के ऊपर के रूप में नहीं होती है बल्कि अधिकेंद्र एक दरार के रूप में लंबी रेखा के रूप में होता है, जिसके कारण समाघात रेखाएं अंडाकार होती हैं। यदि अधिकेंद्र बिंदु के रूप में होता तो समाघात रेखाएं वृत्ताकार होती, परंतु ऐसा नहीं होता है।

भूकंप मूल की गहराई


भूकंपों की उत्पत्ति स्थान या भूकंप मूल की गहराई विभिन्न भूकंपों की स्थिति में भिन्न-भिन्न होती है। भूकंप मूल की गहराई की निम्न स्थिति है।

  1. सामान्य भूकंप की स्थिति में भूकंप मूल 0 से 50 किमी की गहराई पर स्थित होती है।
  2. मध्यवर्गीय भूकंप की स्थिति में भूकंप मूल 50 से 250 किमी की गहराई पर स्थित होती है।
  3. प्लूटोनिक भूकंप की स्थिति में भूकंप मूल 250 से 700 किमी की गहराई पर स्थित होती है।

 भ्रंश मूलक भूकंप का भूकंप मूल धरातल से कम गहराई पर ही स्थित होती है, अर्थात धरातल के अत्यंत निकट स्थित होता है, बिहार में 1934 का भूकंप तथा असम का 1950 का भूकंप जो कि भ्रंश मूलक भूकंप था, उसका भूकंप मूल धरातल से निकट ही था।

भूकंप के कारण


भूकंप भूपटल में होने वाला कंपन है, जिसका मूल कारण पृथ्वी की संतुलन व्यवस्था में अव्यवस्था का होना हैं। भूकंप प्रायः पृथ्वी के कमजोर तथा अव्यवस्थित भूपटल के सहारे ही पाया जाता हैं। यही कारण है कि पृथ्वी के भूकंप क्षेत्र वैसे ही भागों में पाए जाते हैं, जो नवीन मोड़दार पर्वतों के क्षेत्र हैं, ज्वालामुखी क्षेत्र हैं, या फिर भ्रंश के क्षेत्र हैं। भूकंप विश्व के वैसे भागों में भी आया है, जिसे पृथ्वी का स्थल भूखंड माना गया था। जैसे, भारत में 1967 में कोयना का भूकंप स्थिर माने जाने वाले प्रायद्वीपीय पठार पर आया था।

भूकंप का एकमात्र कारण धरातल पर संतुलन में अव्यवस्था का उत्पन्न होना हैं। इस अव्यवस्था को उत्पन्न करने वाले कई कारण है।

  • ज्वालामुखी क्रिया
  • भ्रंशन
  • समस्थिति समायोजन
  • प्रत्यास्थ पुनः स्वचलन सिद्धांत
  • प्लेट विवर्तनिकी
  • भूपटल का संकुचन
  • मानवीय क्रियायें

ज्वालामुखी क्रिया


ज्वालामुखी क्रिया भूकंप के प्रमुख कारणों में एक है। ज्वालामुखी उद्गार के कारण उत्पन्न मैग्मा, गैस, वाष्प आदि पदार्थ भूपटल पर धक्का लगाते हैं, जिससे भूपटल में कंपन उत्पन्न होती हैं और तीव्र भूकंप आते हैं। जब ज्वालामुखी पदार्थ भूपटल को तोड़कर विस्फोट रूप से उपर आते हैं, वहां भयंकर भूकंप आता है। ऐसा वहां होता है, जहां कमजोर भूपटल की स्थिति होती है। क्रकाटाओं ज्वालामुखी में 1883 ई. में उद्गार एवं एटना ज्वालामुखी में 1968 के उद्गार के समय भयंकर भूकंप आया था। सामान्यतः विश्व के सभी ज्वालामुखी क्षेत्र भूकंप के क्षेत्र भी हैं।

भू-संचलन या विवर्तनिक क्रिया एवं भूपटल भ्रंश


भू-संचलन के कारण भूपटल पर भ्रंशन एवं वलन की क्रिया होती हैं। इन क्रियाओं के कारण भूपटल पर तनाव तथा संपीडन शक्ति उत्पन्न होती है, जो भूकंप के भी कारण है। दबाव की क्रिया के फलस्वरुप मोड़दार पर्वतों की उत्पत्ति होती है। जहां चट्टाने वृहत रूप में अपनति एवं अभिनति के रूप में मुड़ जाती हैं। स्पष्टत: इस क्रिया के भूपटल की व्यवस्था में व्यापक स्तर पर परिवर्तन होता है, जो भूपटल में कंपन उत्पन्न करता है। नवीनतम मोड़दार पर्वतों के क्षेत्र हिमालय, आल्पस, राकी, इण्डीज आदि भूकंप के भी क्षेत्र हैं। तनाव की क्रिया से चट्टानें विपरीत दिशाओं में खिसकती हैं। जिससे भूपटल में दरार या भ्रंश का निर्माण होता है।

इस प्रक्रिया में चट्टानी धरातल का स्थानांतरण दरार रेखा के सहारे होता है, तथा धरातल ऊपर या नीचे की ओर खिसक जाते हैं। अर्थात उत्थान एवं घंसान की भी क्रिया व्यापक पैमाने पर होती है। इस क्रिया से भूपटल में कंपन उत्पन्न होता है। बिहार में 1934 का भूकंप तथा आसाम में 1950 का भूकंप भूपटल भ्रंश का ही उदाहरण है, जो भूपटल में खिसकाव (दरार) तथा अव्यवस्था उत्पन्न होने के कारण ही आया था। प्रायद्वीपीय भारत में कोयना (महाराष्ट्र) में 1967 में आने वाले भूकंप का कारण भी भूपटल की अव्यवस्था ही बताया जाता है। क्योंकि अरब सागर का निर्माण टर्शियरी युग में अफ्रीका एवं गोंडवाना लैंड के मध्य के स्थल भाग के नीचे धंसने के कारण ही हुआ है जो एक विस्तृत भ्रंश था।

वर्तमान में भी प्रायद्वीपीय भारत का पश्चिमी भाग अस्थिर हैं तथा चट्टानों की पुनर व्यवस्था का कार्य क्रियाशील हैं। इस कारण पठारी भाग पर भूकंप आते हैं। हालांकि कोयना के भूकंप के अन्य कारण को भी महत्व दिया जाता हैं। जैसे-जलीय भार एवं कोयना भ्रंश की स्थिति एवं भूपटल पर कमजोर क्षेत्र का होना भी कोयना के भूकंप का कारण माना जाता हैं।

प्रत्यास्थ पुनश्चलन सिद्धांत


भूपटल की उत्पत्ति के कारणों की व्याख्या के लिए एच एस रीड ने प्रत्यास्थ पुनश्चलन सिद्धांत दिया। यह सिद्धांत भूपटल भ्रंश पर ही आधारित है। इस सिद्धांत के अनुसार भूगर्भिक शैले रबड़ की तरह लचीली होती है। इन चट्टानों में तनाव होने पर एक सीमा तक खीचती है और अधिक तनाव की स्थिति में रबड़ की तरह टूट जाती है। टूटे हुए भूखंड पुनः अपना स्थान ग्रहण करते हैं, जिससे भूपटल में कंपन उत्पन्न होती है और भूकंप आता है। प्रत्यास्थ पुनश्चालन सिद्धांत को मान्यता प्राप्त है और अधिकांश भ्रंशमूलक भूकंप इसी प्रक्रिया से उत्पन्न होते हैं।

भ्रंश सिद्धांत


कृष्ण ब्रहृन तथा जी. नियोगी ने प्रायद्वीपीय भारत में होने वाले भूकंप के लिए भ्रंश सिद्धांत का प्रतिपादन किया। उन्होंने महाराष्ट्र में कोएना भ्रंश तथा कुर्डवानी भ्रंश की अवस्थिति का निर्धारण किया। ये दोनों भ्रंश तथा कुर्डवानी भ्रंश की अवस्थिति का निर्धारण किया। ये दोनों भ्रंश पूना के उत्तर में मिलते हैं। कोएना भ्रंश का विस्तार कर्नाटक के कुलाडगु से कोयना होते हुए नासिक के करीब तक है। कुर्डवानी भ्रंश का विस्तार शोलापुर के पास से कुर्डवानी होते हुए पूना के उत्तर तक है, जहां कोयना भ्रंश से मिल जाती है। इस सिद्धांत के अनुसार मत्सा बांध की स्थिति पूर्व पश्चिम दिशा में तावी भ्रंश तथा उत्तर पूर्व विस्तृत कोएना भ्रंश के जंक्शन पर स्थित है। इस प्रकार का क्षेत्र निश्चित ही कमजोर क्षेत्र है, जो भूकंप का मुख्य कारण है। इस सिद्धांत के अनुसार इन भ्रंशों की चौड़ाई 50 किमी है, और यह अभी सक्रिय अवस्था में है। इसकी उत्पत्ति कैम्ब्रीयन युग के पूर्व हुई थी।

समस्थिति समायोजन


भूपटल पर सामान्यतः समस्थिति या भूसंतुलन की अवस्था पाई जाती है। जब इन संतुलन में अव्यवस्था उत्पन्न होती है, तो भूपटल में कंपन या भूकंप उत्पन्न होता है। सामान्यतः भूपटल पर भू-संतुलन का कार्य होते रहते हैं, परंतु यदि तीव्र या आकस्मिक भू-संचलन होता है, तभी भूकंप तीव्र होते हैं, अन्यथा सामान्य भूकंप होते हैं, जो अनुभव भी नहीं किए जा पाते हैं। नवीन मोड़दार पर्वतों के क्षेत्र में अपरदन के कारण जब जलीय सागरीय भागों में मलवो का निश्चित होता है, तब अधिक भार के कारण भूसंतुलन समाप्त हो जाता है। इस स्थिति में जलीय क्षेत्र में तलीय भाग नीचे धरती है और भार के ह्रास होने के कारण पर्वतीय भागों की ऊंचाई बढ़ती है। इस तरह भूसंतुलन स्थापित होने की क्रिया में भूकंप आता है। हिंदूकुश, कांगड़ा, चीन के कान्सू प्रदेश व असम का भूकंप इसी प्रकार का था।

भूपटल संकुचन


संकुचन सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी के क्रमशः ठंडा होने के कारण संकुचन होने से भूकंप आते हैं, चूंकि भूपटल की पपड़ी में संकुचन के कारण पर्वत का निर्माण होता है। यदि संकुचन की क्रिया शीघ्र होती है, तो भूकंप आते हैं। इसी मत का प्रतिपादन सर्वप्रथम डाना ने तथा इलि डी. ब्लूमाण्ठट ने किया था। जेफरीज इस मत के प्रबल समर्थक थे। महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत में इस विस्तार की आलोचना की गई है।

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत


प्लेटो की गतिशीलता के कारण प्लेटो के सीमांत क्षेत्रों में भूकंप की उत्पत्ति होती है। विश्व के अधिकांश भूकंप इन्हीं प्लेट सीमांतों के सहारे आते हैं। प्लेट सीमांत तीन प्रकार के होते हैं।

  1. रचनात्मक प्लेट सीमांत 
  2. विनाशात्मक प्लेट सीमांत 
  3. संरक्षी प्लेट सीमांत

भूकंप के अन्य कारण


  • जलीय भार (कोएना के भूकंप का एक कारण) 
  • शैल स्खलन 
  • परमाणु विस्फोट 
  • गुफाओं के धंसने, भूमि के धंसने, समुद्री तटवर्ती क्षेत्र में तरंगों के प्रहार से।

भूकंप के प्रकार


भूकंप की उत्पत्ति में भाग लेने वाले कारकों के आधार पर भूकंप दो प्रकार के होते हैं।

  1. प्राकृतिक भूकंप
  2. कृत्रिम भूकंप

(1) प्राकृतिक भूकंप :   जब भूकंप की उत्पत्ति पृथ्वी के आंतरिक तथा बाह्य शक्तियों के कारण होती है, तब इसे प्राकृतिक भूकंप कहा जाता है, जैसे :

  • ज्वालामुखी भूकंप :  ज्वालामुखी उद्गार के कारण भूकंप आते हैं।
  • भ्रंश मूलक भूकंप :  भ्रंश क्रिया के कारण भूकंप आते हैं।
  • संतुलन मूलक भूकंप :  भूपटल के संतुलन में अव्यवस्था होने से भूकंप आते हैं।
  • प्लूटोनिक भूकंप :  यह भूकंप भूगर्भ में 300 किमी से 720 किमी की गहराई पर उत्पन्न होते हैं। सिएरानेवादा में 1954 में 630 किमी गहराई में भूकंप आया था।
  1. साधारण भूकंप या उथले भूकंप :  इस प्रकार के भूकंप भू-पटल से 50 किमी की गहराई तक उत्पन्न होते हैं। विश्व में अधिकांश भूकंप इसी प्रकार के होते हैं। यह बहुत विनाशकारी होते हैं। 
  2. मध्यवर्ती भूकंप :  यह भूकंप भूगर्भ में 50 से 250 किमी गहराई तक उत्पन्न होते हैं। 
  3. गहरे भूकंप :  इसे प्लूटोनिक भूकंप भी कहते हैं। इसका भूकंप मूल 250 से 700 किमी तक होता है। इसे गहरे भूकंप-मूल वाला भूकंप भी कहते हैं।

भूकंप का विश्व वितरण


भूकंप क्षेत्रों का संबंध भूपटल के कमजोर तथा अव्यवस्थित भागों से है। विश्व के 50 प्रतिशत से अधिक भूकंप नवीन मोड़दार पर्वतीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। 40 प्रतिशत भूकंप महाद्वीपीय द्वीपीय तथा सागरीय मिलन-बिंदु पर पाए जाते हैं। यहां सागरीय जल के नीचे रिसकर पहुंचने से एवं ताप से गर्म होकर वाष्प के रूप में ऊपर आकर भूपटल में धक्का देने से भूकंप आता है। ज्वालामुखी क्षेत्र भी भूकंप क्षेत्र है, फिर भी अधिकांश ज्वालामुखी क्षेत्र तथा भूकंप क्षेत्र एक नहीं है, फिर भी अधिकांश ज्वालामुखी उद्गार भूकंप को जन्म देते हैं, दरार तथा भूपटल भ्रंश के क्षेत्रों में भी भूकंप आते हैं।

भूकंप क्षेत्र प्रायः अनिश्चित होते हैं, लेकिन इन्हें तीन पेटियों में विभाजित किया जा सकता है।

  1. प्रशांत महासागर तटीय पेटी :  यहां विश्व का लगभग 63 प्रतिशत भूकंप आते हैं।
  2. मध्य महाद्वीपीय पेटी :  यहां विश्व के लगभग 21 प्रतिशत भूकंप आते हैं।
  3. मध्य अटलांटिक पेटी :  यहां विश्व के लगभग 10 प्रतिशत भूकंप आते हैं।

प्रशांत महासागर तटीय पेटी

यह विश्व का सबसे विस्तृत भूकंप क्षेत्र है, जहां समस्त पृथ्वी के 63 प्रतिशत भूकंप आते हैं। इस प्रदेश में भूकंप के लिए तीन प्रमुख दशाएं पाई जाती हैं –

  1.  सागर तथा स्थल का मिलन बिंदु
  2.  नवीन मोड़दार पर्वतों का क्षेत्र
  3.  ज्वालामुखी क्षेत्र

यहां प्लेटो के विनाशात्मक सीमांतों के सहारे भूकंप आते हैं। इस प्रदेश का विस्तार रॉकी, एंडीज पर्वतीय एवं ज्वालामुखी क्षेत्र में उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तटीय किनारों पर तथा एशिया के पूर्वी भाग में कमचटका से पूर्वी तटीय एशिया होते क्यूराइल द्वीप, जापान द्वीप तथा फिलीपाइन द्वीप होते हुए पूर्वी दीप समूह तथा न्यूजीलैंड तक है। इस पेटी में सर्वाधिक भूकंप जापान में आते हैं। जापान में सामान्यतः प्रतिवर्ष 1500 भूकंप के झटके अनुभव किए जाते हैं। प्रशांत महासागर में सुनामी सर्वाधिक संख्या में आते हैं। सर्वाधिक सुनामी जापान से संलग्न क्षेत्र में आते हैं। पश्चिमी उत्तरी अमेरिका के सभी क्षेत्रों में भूकंप नहीं आता, यहां पनामा जलडमरू मध्य, उत्तरी मेक्सिको, दक्षिणी कैलिफोर्निया, ओरगेन, वॉशिंगटन तथा ब्रिटिश कोलंबिया अब तक भूकंप से अप्रभावित हैं।

मध्य महाद्वीपीय पेटी

इस पेटी में विश्व के लगभग 21 प्रतिशत भूकंप आते हैं। और भूकंप का यह दूसरा सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र है। इस पेटी का विस्तार भूमध्य सागर से आल्पस, हिमालय, म्यांमार होते हुए पूर्वी दीप समूह तक हैं। इस भूकंपीय पेटी को भूमध्यसागरीय पेटी भी कहते हैं। यहां पर संतुलन मूलक तथा भ्रंश मूलक भूकंप आते हैं। यह पेटी भी प्लेटो के विनाशात्मक किनारों के सहारे पाई जाती है। पश्चिम में केपवर्ड द्वीप से प्रारंभ होकर पुर्तगाल होते अल्पस एवं एशिया माइनर तक पुनः हिमालय होते हुए पूर्वी दीपसमूह में जाकर प्रशांत महासागर के भूकंप क्षेत्र में मिल जाते हैं। चीन में कुनलुन, त्यानशान तथा शिंगलिंगशान पर्वतीय क्षेत्र के भूकंप भी इसी पेटी में आते हैं। यह उस पेटी हिमालय से तिब्बत होते चीन तक जाती है। भारत की भूकंप पेटी भी इसी पेटी के अंतर्गत आते हैं। भारत में हिमालय के क्षेत्र पश्चिमी क्षेत्र में पूर्वी क्षेत्र तक पेटी सर्वाधिक भूकंप प्रभावित है। मध्य महाद्वीपीय क्षेत्र में सर्व प्रमुख भूकंप क्षेत्र इटली, चीन, एशिया माइनर तथा बालकन प्रायद्वीप है।

मध्य अटलांटिक पेटी

यह पेटी विश्व की तीसरा प्रमुख भूकंप पेटी है, जिसका विस्तार मध्य अटलांटिक कटक के सहारे हैं। इस पेटी का विस्तार उत्तर में आइसलैंड तथा स्पिट बर्जेन से प्रारंभ होकर मध्यवर्ती कटक के सहारे दक्षिण में बोवोट द्वीप तक हैं। यहां सर्वाधिक भूकंप भूमध्य रेखा के आस-पास आते हैं। यहां रचनात्मक प्लेट के सहारे भूकंप आते हैैं।

अफ्रीकी भ्रंश घाटी का क्षेत्र

यह पेटी महाद्वीपीय पार्टी की ही शाखा है, जिसमें पूर्वी अफ्रीका की दरार घाटी क्षेत्र में भूकंप सम्मिलित किए जाते हैं। इस पेटी में भ्रंश मूलक भूकंप आते हैं। अरब सागर तथा हिंद महासागर के भूकंप भी इसी पेटी में आते हैं।

16 जून 1819 ईस्वी में कच्छ के भूकंप से तीव्र समुद्री लहरें उठी थी, जिससे कच्छ का तटवर्ती क्षेत्र जलप्लावित हो गया था। उसी समय स्थल का 24 किमी लंबा भाग ऊपर उठ गया, जिस पर लोग एकत्रित होकर अपनी रक्षा कर सकें। लोगों ने इसे ईश्वर की देन माना और उंचै उठे भाग को ‘ईश्वर का बांध’ नाम से संबोधित किया।

भारत के भूकंपीय क्षेत्र


भारत के भूकंपीय क्षेत्रों को तीन भागों में बांटा जाता है।

  1. अधिकतम प्रभावित क्षेत्र : इसके अंतर्गत हिमालय पर्वतीय भाग तथा संलग्न क्षेत्र सम्मिलित होते हैं। यहां पर्वत निर्माण की क्रिया चल रही है। जिसके कारण यहां संतुलन की स्थापना के लिए अव्यवस्था उत्पन्न हो जाती है। अतः विनाशकारी भूकंप आते हैं। हिमालय क्षेत्र में भारतीय प्लेट का यूरेशियन प्लेट के नीचे क्षेपण हो रहा है, जो भूकंप का मुख्य कारण है। यहां गढ़वाल हिमालय में सर्वाधिक भूकंप आते हैं।
  2. सामान्य प्रभावित क्षेत्र : इसके अंतर्गत मैदानी भारत को सम्मिलित किया जाता है। असम, बिहार व कोलकाता के भूकंप क्षेत्र इसी के अंतर्गत आते हैं।
  3. न्यूनतम प्रभावित क्षेत्र : इसके अंतर्गत प्रायद्वीपीय पठार क्षेत्र आते हैं जैसे कच्छ का रन, कोयना व लाटुर आदि।

महत्वपूर्ण तथ्य


  • भूकंप आने से पहले वायुमंडल में रेडॉन गैसों की मात्रा में वृद्धि हो जाती है, जहाँ से भूकंप आता है उसे भूकंप मूल तथा जहाँ अनुभव किया जाता है, उसे अधिकेंद्र कहते है।
  • प्राथमिक तरंगे जिन्हे अनुदैर्य कहते है, ये ध्वनि तरंगों की भांति चलती है, सबसे अधिक गति इन्हीं तरंगों की होती है।
  • द्वितीय या अनुप्रस्थ तरंगें प्रकाश तरंगों के सामान चलती है ये तरंगें केवल ठोस माध्यम में ही चल सकती है।
  • धरातलीय तरंगें सबसे ज्यादा विनाशकारी होती है।

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