चट्टान का अर्थ | चट्टानों के प्रकार | चट्टानों का वर्गीकरण

चट्टान का अर्थ


पृथ्वी के भूपटल का निर्माण विभिन्न प्रकार की शैलों से हुआ है। शैलें खनिज पदार्थों के मिश्रण से निर्मित होती हैं। शैलों के अंतर्गत भू-पटल के सभी अधात्विक पदार्थों को सम्मिलित किया जाता है। यचीका मिट्टी की तरह कोमल और ग्रेनाइट की तरह कठोर तथा खड़िया की तरह अप्रवेश्य हो सकती हैं। चट्टान खनिजों का समूह है और पृथ्वी पर लगभग 200 खनिज पाए जाते हैं, लेकिन भू-पटल के निर्माण में 20 खनिज ही महत्वपूर्ण है। ये सभी खनिज मुख्यत: सिलिकेट, ऑक्साइड एवं कार्बोनेट के रूप में पाए जाते हैं।

भू-पटल की चट्टानों की उत्पत्ति में भौतिक गुण, रासायनिक गुण और स्थिति में पर्याप्त अंतर पाया जाता है। विभिन्न स्थलरूपों के निर्माण में शैले मूलभूत होती हैं।

चट्टानों के प्रकार


(A) बनावट एवं संरचना के आधार पर चट्टान 3 प्रकार की होती हैं

  • आग्नेय चट्टान
  • परतदार चट्टान
  • रूपांतरित चट्टान
  1. आग्नेय शैल या चट्टान : इनको आधारभूत चट्टान भी कहते हैं। सर्वप्रथम इसी शैल का निर्माण हुआ था। अतः इसे प्राथमिक शैल भी कहते हैं। अन्य चट्टानों का निर्माण भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इसी चट्टान से हुआ है
  2. आग्नेय चट्टानों के अपरदन, निक्षेप एवं स्तरीकरण से परतदार चट्टानों का निर्माण हुआ है। परतदार चट्टानों का निर्माण परतदार एवं रूपांतरित चट्टानों के अपरदन निक्षेपण एवं स्तरीकरण से भी होता है।
  3. रूपांतरित चट्टान : ये वह चट्टानें होती है जो अपने प्रारंभिक भौतिक, रासायनिक गुणों में परिवर्तन कर चुकी हैं। इनका विकास आग्नेय एवं परतदार चट्टानों के रूपांतरण से होता है। रूपांतरण के आधार पर परिवर्तित चट्टानों के दो महत्वपूर्ण गुण होते हैं। 
  1. कठोर होना
  2. तोड़ने पर एक निश्चित दिशा में टूटना

आग्नेय चट्टानों के गुण में परिवर्तन होता है तो उसे Orthoschist कहते हैं। जब परतदार चट्टानों में रूपांतरण होता है तो Paraschist कहते हैं। चट्टान के अंदर जो खनिज की सतहें होती हैं, उसे पठन Schislosity कहते हैं।

चट्टानों का वर्गीकरण


आग्नेय चट्टानें


आग्नेय चट्टान भू-पटल की प्राचीनतम चट्टान है। जिसकी उत्पत्ति का स्रोत मैग्मा है। अन्य चट्टानों की उत्पत्ति आग्नेय चट्टानों से ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से होती है। यही कारण है कि इसे आधारभूत चट्टान या  प्राथमिक चट्टान कहते हैं। मैग्मा पृथ्वी के भू-पटल से नीचे लगभग पिघली एवं चिपचिपी अवस्था में है, इसमें ताप संग्रह होता है, जिसके कारण ऊर्जा तरंगे चलती है। होम्स ने इसे संवहन तरंग कहा है, जो भूपटल के कमजोर क्षेत्रों जिसे विवर्तनिक क्षेत्र कहते हैं, उसमें अपनी भौगोलिक स्थिति के अनुसार पृथ्वी के अंदर या बाहर ठंडे होकर जम जाती हैं। और आग्नेय शैल का निर्माण करते हैं। 1700 डिग्री सेल्सियस पर मैग्मा भू-पटल के बाहर निकलता है।

(B) उत्पत्ति की प्रक्रिया एवं उत्पत्ति स्थान के आधार पर आग्नेय शैल 3 प्रकार के होते हैं

  1. पातालीय आग्नेय शैल भू-पटल के नीचे अधिक गहराई पर मैग्मा चेंबर के ऊपर तरल मैग्मा वृहत् क्षेत्र में ठंडे होते हैं, यहां पर उच्च तापमान के कारण मैग्मा के ठंडे एवं ठोस होने में अधिक समय लगता है, अतः ये बड़े रवेदार होते हैं। ग्रेनाइट इसका प्रमुख उदाहरण है।
  2. मध्यवर्ती आग्नेय शैल  :  ज्वालामुखी उद्गार के समय ऊपर उठा मैग्मा जब धरातलीय अवरोधों के कारण दरारों, छिद्रों और नलिकाओं में ही जमकर ठोस हो जाता है, तब इसे हाइपाविशाल चट्टान कहते हैं। यह पाताली चट्टाने की तुलना में जल्दी ठंडा होते हैं अतः इसमें सूक्ष्म रवे मिलते हैं। डोलोमाइट इसका प्रमुख उदाहरण है। ये अनेक आकृतियों में जमती हैं जैसे – लैकोलिथ, सिडार, फैकोलिथ, लोपोलिथ, बैकथोलिथ, शिल, सीट बांस व स्टाक आदि।
  3. बाह्य आग्नेय शैल :  जब पिघली हुई मैग्मा पदार्थ भू-पटल के बाहर वायुमंडलीय संपर्क में आकर शीघ्र जमता है, तो रवे नहीं बनते और खनिजों के ठोस महीन कणों का निर्माण होता है। ये ज्वालामुखी शैलें कहलाती है। जैसे – रायोलाइट और ग्रेबो

(C) रासायनिक संरचना के आधार पर आग्नेय चट्टानों का वर्गीकरण :

मैग्मा का वह भाग जो भू-पटल में प्रवेश कर जाता है, लावा कहलाता है। आग्नेय शैलो की रासायनिक संरचना में पर्याप्त विविधता पाई जाती है। सिलिका की मात्रा के आधार पर ये दो प्रकार के होते हैं।

  • अम्लीय या फेल्सिक शैल :  सिलिका का अंश 80% से अधिक होता है, जिससे गलनांक उच्च ताप पर होता है, अतः यह चिपचिपा होता है, जैसे ग्रेनाइट
  • क्षारीय या मैफिक शैल :  सिलिका का अंश 40% से कम होता है जिससे इसका गलनांक निम्न ताप पर होता है, परिणामस्वरुप ये लगभग तरल होते हैं और दरारों के बाहर भी निकल आते हैं, जैसे बेसाल्ट।

परतदार या अवसादी चट्टान


यें शैले भू-पटल के ऊपरी भाग में विस्तृत है। भू-पटल की ऊपरी सतह में 75% अवसादी शैलें शेष आग्नेय एवं रूपांतरित शैलें पायी जाती हैं, जबकि समस्त भू-पटल के निर्माण में मात्र 5% ही अवसादी शैल का योगदान है, 95% आग्नेय एवं परतदार चट्टानों का योगदान है। संरचनात्मक आधार पर ये पांच प्रकार के होते हैं।

  1. बालूका पत्थर :  ये रेत के कणों के एकत्रीकरण एवं संयोजन से निर्मित होते हैं। कणों का निर्माण क्वार्ट्ज खनिज से होता है।
  2. चिका मिट्टी :  चट्टान चूर्ण के बारीक कणों के निक्षेपण से चीका शैल का निर्माण होता है।
  3. चूना प्रधान शैल :  चूना पत्थर से बना होता है, जीवाश्म प्रधान शैल है, जैसे – लाइमस्टोन एवं खरिया
  4. कार्बन प्रधान :  इन शैलों की रचना प्रत्यक्षतः वनस्पतियों के अवशेषों के जमा होने एवं संगठित होने से होती है, जैसे पीट एवं कोयला
  5. कांग्लोमेरेट :  पत्थर के टुकड़े चीकायुक्त होने पर ग्रेबल कहलाती है। ग्रेबल में क्वार्ट्ज की अधिकता होने पर कंग्लोमेरेट कहलाती है।

रूपांतरित या कायांतरित चट्टानें


शैलो में विघटन हुए बिना ही उसकी आकृति एवं संघटन में परिवर्तन होने पर कायांतरित चट्टान का निर्माण होता है, रूपांतरित चट्टानों में भी रूपांतरण की क्रिया होती है, इसे पुनः रूपांतरण कहते हैं। शैलों में कायांतरण अत्यधिक दबाव, ताप एवं रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा होता है।

रूपांतरित चट्टानों को रूपांतरण की प्रक्रिया के आधार पर दो भागों में बांटते हैं।

  1. तापीय संपर्क से रूपांतरित चट्टान
  2. दबाव और ताप से रूपांतरित चट्टान

तापीय संपर्क से रूपांतरित मुख्यतः ज्वालामुखी क्षेत्रों में होता है। यहां गर्म मैग्मा के संपर्क से शैलों में रूपांतरण होता है जबकि दबाव और ताप से रूपांतरण पर्वत निर्माण के क्षेत्रों में होता है। पर्वत निर्माण के समय दबाव से भू-पटल की चट्टाने फैलती हैं और परिवर्तित भी होती है।

आग्नेय चट्टानों में कुछ विशेष परिस्थितियों में कुछ विशिष्ट खनिज की प्रधानता होती है एवं ऐसी स्थिति में परिवर्तन से जो चट्टाने बनती हैं, वह खनिज के नाम से जानी जाती हैं।

  • माइकाशिस्ट  –  उत्तरी छोटा नागपुर
  • हार्नब्लेड शिस्ट  –  महाराष्ट्र

वस्तुतः चट्टानों में अभी गत्यात्मकता होती है एवं उनकी अवस्थाओं में सतत परिवर्तन होता है और अनेक भूगर्भ शास्त्रियों के अनुसार चट्टानों की भी चक्रिय अवस्था होती है और यह चक्र संतुलन हेतु होता है।

मौलिक शैलों के आधार पर रूपांतरित शैलें 3 प्रकार की होती है।

  1. परि – आग्नेय शैलें
  2. परि – अवसादी शैलें
  3. पुनः – रूपांतरित शैले

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