जलवायु में बदलाव एक ऐसा परिवर्तन है, जिसे उस मानवीय गतिविधियों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जोड़ा जा सकता है। जोकि सार्वभौमिक वातावरण के संगठन को बदल देता है और जिसे जलवायु में बदलाव को तुलनात्मक समयावधि के साथ आलोकित किया जा सकता है।
अधिक सुख-सुविधा जुटाने की होड़ में आज मनुष्य के क्रियाकलाप वायुमंडल में ऊष्मा रोधी गैसों की संख्या बढ़ाते जा रहे हैं। ऊष्मा रोधी गैसों को हरित गृह प्रभाव वाली गैसे भी कहते हैं। संपूर्ण सौरमंडल का लगभग 44 प्रतिशत पृथ्वी के वायुमंडल द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है, जो बाद में धीरे-धीरे विकिरण के रूप में वायुमंडल से निकल जाता है। हमारे वायुमंडल में बढ़ती ऊष्मा रोधी गैसों जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, जलवाष्प, नाइट्रस ऑक्साइड, मीथेन, क्लोरोफ्लोरोकार्बन, सल्फर हेक्साफ्लोराइड तथा ट्राई फ्लोरोमिथाइल, सल्फर पेंटाफ्लोराइड आदि के कारण वायुमंडल अधिक ऊष्मा रोधी होता जा रहा है और धरती अधिक गर्म हो रही है।
तापमान में बढ़ोतरी केवल गर्मी बढ़ाने तक ही सीमित नहीं होती, बल्कि इसका पूरा प्रभाव जलवायु और पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ता है जिससे जलवायु का पूरा संतुलन बिगड़ जाता है। कहीं अधिक वर्षा तथा कहीं सूखे की स्थिति देखने को मिलती है। कहीं पर जंगलों में आग लग जाती है तथा कहीं पर चक्रवात विनाश का कारण बनते हैं। जलवायु परिवर्तन का कहर धरती को हर तरफ से बर्बाद कर रहा है। तापमान बढ़ने से दुनिया भर के पहाड़ों की चोटियों और ध्रुवों से बर्फ पिघल रही है। बर्फ पिघलने से सागरों का जलस्तर बढ़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने आईपीसीसी नामक एक वैज्ञानिक दल का गठन किया, जिसकी ताजा रिपोर्ट के अनुसार यदि सागर केवल 1 मीटर ऊपर उठ जाए तो दुनिया के बहुत से द्वीप जलमग्न हो जाएंगे।
विश्व वन्यजीव कोष
विश्व वन्यजीव कोष 2005 ने चेतावनी दी थी कि आर्कटिक हिम के कुल क्षेत्रफल का 9.2 प्रतिशत भाग हर 10 साल में घट रहा है, जिससे ध्रुवीय भालू के लुप्त होने का खतरा बढ़ गया है। ब्रिटिश अटलांटिक सर्वे के अनुसार लार्सन बी नामक अटलांटिक आईस शीट खिसक रही है।
जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव से बचने के रास्ते अभी भी हैं, लेकिन पूरी दुनिया एक साथ चलें और मिलजुलकर कदम उठाएं तभी मानव इस भयंकर होने वाली बर्बादी को रोक सकता है। वैश्विक ताप वृद्धि की प्रमुख दोषी गैसें जैसे कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल से खींचने के लिए अधिक से अधिक पेड़ लगाए ताकि कार्बन डाइऑक्साइड गैस पैदा करने वाले कार्यकलापों पर अंकुश लगाया जा सके। सबसे अधिक कार्बन डाइऑक्साइड ऊर्जा के परंपरागत साधनों जैसे कोयला, डीजल, पेट्रोल, गैस आदि के दहन से होती है। इसके लिए ऊर्जा के नवीकरणीय विकल्पों जैसे पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा तथा जल विद्युत ऊर्जा का प्रयोग करना होगा।
जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए यह आवश्यक है कि वैश्विक ताप वृद्धि को रोका जाए। अतः सभी मानवीय क्रियाकलापों पर सख्ती से प्रतिबंध लगाया जाए, जिनके कारण हरित गृह प्रभाव वाली गैसों की उत्पत्ति होती है। जलवायु परिवर्तन पर अंकुश लगाने के लिए 1997 की क्योटो संधि के प्रावधानों का अनुपालन किया जाए।
1 दिसंबर, 2023 को दुबई में हुई Cop-28 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दुनिया से विकासशील और निर्धन देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने के लिए वित्त के मामले में ठोस नतीजे देने का आह्वान करते हुए कहा कि विकसित देशों को 2050 से पहले कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता को पूरी तरह कम करना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी ने यहां COP-28 में ‘Transforming Climate Finance’ पर एक सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि भारत ‘New Collective Quantified goal’ पर ठोस और वास्तविक प्रगति की उम्मीद करता है, जो 2025 के बाद का एक नया वैश्विक जलवायु वित्त लक्ष्य है। उन्होंने कहा, ”विकसित देशों को 2050 से पहले ही कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता को पूरी तरह कम करना चाहिए।”
3 प्रभावित गैसें
पहले यह सम्मेलन चिली में होना था लेकिन वहां अशांति होने के कारण इसे स्पेन में आयोजित किया गया है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने ग्रीनहाउस गैस के बारे में दर्शाया है कि वातावरण में तीन प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों – कार्बनडाई ऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड – का स्तर लगातार बढ़ रहा है जिससे मानवता के भविष्य के लिए ख़तरा पैदा हो रहा है। [ India24 ]
अगर धरती के तापमान में वृद्धि इसी तरह से होती रही तो जल सकंट पैदा होगा, समुद्री जल स्तर बढ़ेगा और समुद्री व भूमि पारिस्थितिक तंत्रों के लिए ख़तरा पैदा हो जाएगा।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण संस्था (UNEP) ने कहा कि पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए वर्ष 2020 से 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में प्रतिवर्ष 7.6 फ़ीसदी की कमी सुनिश्चित करना ज़रूरी है। लघु द्वीपीय देशों ने वर्ष 2050 तक नैट कार्बन उत्सर्जन को शून्य बनाने का संकल्प लिया है और वर्ष 2030 तक उनकी योजना 100 फ़ीसदी नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल करने की है।
पाकिस्तान से ग्वाटेमाला तक, कोलंबिया से नाईजीरिया तक और न्यूज़ीलैंड से बारबेडोस तक 11 अरब वृक्ष लगाने का संकल्प लिया गया है
मौजूदा समय में इन तीन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए पर्याप्त क़दम नहीं उठाए जा रहे हैं: वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 45 फ़ीसदी की कटौती लाना; वर्ष 2050 तक कार्बन न्यूट्रैलिटी को हासिल करना (नैट कार्बन उत्सर्जन शून्य); और इस सदी के अंत तक वैश्वित तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना।
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