ग्रीन एकाउंटिंग क्या/Green Accounting
- लेखांकन की एक पद्धति जिसके अंतर्गत पर्यावरण गुणवत्ता के आधार पर उत्पाद एवं संसाधनों का मूल्यांकन किया जाता है।
हरित आय/Green Income
- विश्व बैंक द्वारा प्रस्तावित राष्ट्रीय आय की मापक विधि जिसमें प्राकृतिक संपदा को स्थिर रखकर 1 वर्ष से उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के मुद्रिक का योग निकाला जाता है।
ले ऑफ/Lay off
- वस्तुओं की मांग कम हो जाने पर उत्पादन में कटौती के कारण या किसी अन्य कारण से आवश्यकता से अधिक मजदूरों की छटनी कर दी जाती है। इस क्रिया को ले ऑफ कहते हैं। GDI (Gender Development Index) क्या है? 1995 में जारी यूएनडीपी रिपोर्ट में महिलाओं में जीवन प्रत्याशा, शिक्षा एवं प्रति व्यक्ति आय के आधार पर तैयार सूचकांक जो पुरुष महिला असमानता की स्थिति को प्रकट करता है।
GEM
- (Gender Empowerment Index) u.n.o. 1995 में महिलाओं की सामुदायिक भागीदारी एवं निर्णय निर्माण की समता को प्रदर्शित करने वाला बनाया गया सूचकांक जो तीन तत्वों अर्थात महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी, आर्थिक भागीदारी तथा आर्थिक संसाधनों पर नियंत्रण को लेकर बनाया गया है।
गरीबी रेखा/Poverty Line
- आय का वह स्तर जिसके नीचे उपभोग करने पर कोई व्यक्ति पोषण का न्यूनतम स्तर भी प्राप्त नहीं कर पाता है। गरीबी रेखा कहलाती है।
- जब कोई व्यक्ति प्रचलित कीमत या उससे कम दर पर भी रोजगार प्राप्ति हेतु तत्पर हो परंतु उसे रोजगार नहीं मिल पा रहा हो, ऐसी स्थिति अनैच्छिक बेरोजगारी है। यदि व्यक्ति प्रचलित दरों पर कार्य न करें तो वह ऐच्छिक बेरोजगारी होगी।
अल्प बेरोजगारी/Acute Unemployment
- जब किसी व्यक्ति को उसकी क्षमता से कम काम मिलता है तो वह अल्प बेरोजगार की श्रेणी में आता है। जैसे कोई इंजीनियर लिपिक का काम करें।
संरचनात्मक बेरोजगारी/Structural Unemployment
- किसी राष्ट्र के पिछड़े आर्थिक ढांचे के कारण उत्पन्न दीर्घकालिक बेरोजगारी जो मुख्यतः विकासशील एवं अविकसित राष्ट्रों की समस्या है।
पूर्ण रोजगार/Full Employment
- वह काल्पनिक स्थिति जब बेरोजगारों की संख्या रोजगार के लिए उपलब्ध रिक्तियों से कम होती है। अर्थात संपूर्ण श्रम बल में आवश्यकता से अधिक रोजगार उपलब्ध हो।
चक्रीय बेरोजगारी/Cycle Unemployment
- व्यापार चक्र में मंदी की स्थिति में उत्पन्न बेरोजगारी जो मूलतः विकसित राष्ट्रों की समस्या है।
कोर सेक्टर/Core Sector
- अर्थव्यवस्था के विकास हेतु आवश्यक आधारभूत उद्योगो जैसे – सीमेंट, लोहा, इस्पात, पेट्रोलियम इत्यादि को कोर सेक्टर उद्योग कहते हैं। इन पर अन्य उद्योगों का अस्तित्व एवं विकास निर्भर करता है। कोर सेक्टर उद्योगों को ही इंडस्ट्री भी कहते हैं।
प्रजातांत्रिक नियोजन/Democratic planning
- मिश्रित अर्थव्यवस्था में अपनायी जाने वाली नियोजन तकनीक जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र का नियंत्रण व निजी क्षेत्र की आर्थिक स्वतंत्रता को सम्मिलित रूप से अपनाया जाता है। नियोजन की कार्यप्रणाली जनतांत्रिक विधियों द्वारा जनसहयोग से संचालित होती है।
स्थैतिक नियोजन
- परंपरागत एवं दृढ़ नियोजन की, वह तकनीक जिसमें योजना के लक्ष्य अंत तक स्थिर बने रहते हैं। तथा उनमें परिस्थिति के अनुरूप परिवर्तन संभव नहीं होता।
सुधारवादी नियोजन/Reformist planning
- विकसित राष्ट्रों में प्रयुक्त नियोजन की तकनीक जिसमें मात्रात्मक विकास के चरम पर अवस्थित राष्ट्र आवश्यकतानुसार सुधार एवं गुणात्मक संवर्धन हेतु प्रयास करते हैं।
संतुलित नियोजन/Balanced planning
- अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों पर समान महत्व देते हुए विकास की रणनीति, यह आंशिक नियोजन के विपरीत है जिसमें किसी समस्या विशेष या क्षेत्र विशेष के आधार पर नियोजन किया जाता है।
संरचनात्मक नियोजन
- अर्थव्यवस्था के संरचनात्मक ढांचे में परिवर्तन कर विकास की रणनीति जो मुख्यतः पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में अपनाई जाती है। यह व्यवस्था के स्वरूप को बदलकर तीव्र विकास का सुदृढ़ आधार तैयार करती है।
राशिपतन/Dumping
- किसी वस्तु के अति उत्पादन की स्थिति में बाजार में वस्तु के मूल्य को एक न्यूनतम स्तर से नीचे गिरने से रोकने के लिए वस्तु के अतिरिक्त भंडार को विदेशी बाजार में बहुत कम मूल्य पर बेचने और यहां तक कि नष्ट तक कर देने की प्रक्रिया राशिपतन कहलाती है। उत्पादकों के हितों की सुरक्षा के लिए कभी-कभी ऐसा करना पड़ता है, ताकि अतिरिक्त उत्पादन को बाजार से दूर करके वस्तु के मूल्य को गिरने से रोका जा सके।
श्रम विभाजन/Division of Labor
- किसी कार्य की संपूर्ण प्रक्रिया को एक ही व्यक्ति द्वारा न कराकर विभिन्न चरणों को भिन्न-भिन्न लोगों से पूरा कराने की प्रक्रिया ही श्रम विभाजन कहलाती है। श्रम विभाजन से विशिष्टकरण को प्रोत्साहन मिलता है।
मुद्रा अपस्फीति अथवा विस्फीति/Disinflation
- मुद्रास्फीति पर नियंत्रण लाने हेतु जो प्रयास किए जाते हैं (जैसे साख नियंत्रण आदि), उनके परिणामस्वरुप मुद्रास्फीति की दर घटने लगती है, कीमतों में गिरावट आती है और तथा रोजगार पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह स्थिति मुद्रा अपस्फीति अथवा विस्फीति की स्थिति कहलाती है। इस स्थिति में यद्यपि मूल्य स्तर गिरता है, तथापि यह सामान्य मूल्य स्तर से ऊपर ही रहता है।
स्टैगफ्लेशन/Stagflation
- स्टैगफ्लेशन से तात्पर्य है स्फीतियुक्त गतिहीनता स्टैगफ्लेशन एक ऐसी विरोधाभासी स्थिति है जिसमें अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के साथ-साथ गतिहीनता भी विद्यमान रहती है। इस स्थिति में अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों में एक ओर ऊंचे मूल्य तथा अधिपूर्ण रोजगार की स्थिति दृष्टिगोचर होती है, तो दूसरी ओर के क्षेत्रों में गति हीनता की स्थिति अथवा औद्योगिक तथा कृषि उत्पादन में कमी, अत्यधिक मात्रा में बेरोजगारी इत्यादि दृष्टिगोचर होती है।
ब्लू चिप/Blue Chip
- यह शब्द प्रायः उन कंपनियों के शेयरों के लिए प्रयोग किया जाता है, जो अत्यंत सुदृढ़ हैं। तथा जिनका प्रबंध इत्यादि अतिकुशल है। ऐसे शेयरों को खरीदने में हानि की संभावना बहुत कम होती है तथा जब चाहे, उचित मूल्य पर इन्हें बाजार में बेचा जा सकता है।
एड-वेलोरम/Ad-Valorem
- वस्तुओं पर लगाए गए, जो कर उनकी मात्रा के आधार पर न लगाकर मूल्यानुसार लगाए जाते हैं। एड-वैलोरम कहलाते हैं।
फेरा और फेमा/Fera & Fema
- विदेशी नियंत्रित कंपनियों को नियमित करने के लिए 1947 में एक अधिनियम बनाया गया, जिसे भारतीय विदेशी विनिमय नियंत्रण अधिनियम (फेरा) के नाम से जाना जाता है।
पूंजी पलायन/Flight of Capital
- स्थितियों के अस्थिर होने के कारण, विशेषकर जब सरकार वित्तीय कठिनाइयों में हो या चरम स्थिति में जब मुद्रा में गंभीर अवमूल्यन का भाव हो, तो बड़ी संख्या में निवेशक जिन्होंने उस देश में निवेश किया है, अपने निवेश को कहीं ओर स्थानांतरित करना चाहेंगे। यदि ऐसा बड़े पैमाने पर होता है तो इसे पूंजी के पलायन के रूप में जाना जाता है।
ब्रिज लोन/Bridge Loan
- कंपनियां प्राय अपनी पूंजी का विस्तार करने के लिए नए शेयर या डिबेंचर्स जारी करती हैं। कंपनी को शेयर जारी करके पूंजी जुटाने में 3 महीने से भी अधिक समय लगता है। इस समय अवधि में अपना काम जारी रखने के लिए कंपनियां बैंकों से अंतरिम अवधि के लिए ऋण प्राप्त कर लेती हैं। इस प्रकार के ऋण को ब्रिज लोन कहते हैं।
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