भारत में प्रजातीय विविधताएं :
प्रजाति से तात्पर्य मानव के ऐसे समूह से है, जिसमें अनुवांशिक गुणों का वाहन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में होता रहता है, जिससे प्रजाति के लक्षण बने रहते हैं। इस दृष्टिकोण से भारत में आने वाली विभिन्न प्रजातियों में नीग्रिटो, प्रोटो ऑस्ट्रेड, भूमध्यसागरीय मंगोलाइडस, पश्चिमी चौड़े सिर वाले अल्पारनिर, ट्रिनाटिई एवं भार्रिनाइट के साथ ही नार्डिक जैसी प्रजातियां का आगमन हुआ, जो आज भी प्रजाति विविधता का प्रतीक है।
भारत की 8% जनजातीय जनसंख्या जो भौगोलिक एकांतवास में प्रतिकूल वातावरण में निवास करती है। इसमें प्रजातीय लक्षण स्पष्ट दृष्टिकोण होते हैं। ऐसी जनसंख्या को भारत की नृजातीय जनसंख्या कहा जाता है। इसमें भी प्रजातीय विविधता पाई जाती है। सामान्यतः हिमालय पर्वतीय प्रदेश की जनजातियां मंगोलियाई समूह की है, जबकि मध्यवर्ती पर्वतीय एवं पठारी क्षेत्र की जनजातियां प्रोटो ऑस्ट्रेलियाई प्रजाति समूह की है, जबकि दक्षिण भारत में विशेषकर कृष्णा नदी के दक्षिण तथा अंडमान निकोबार की जनजातियां प्रोटो ऑस्ट्रेलाया प्रजाति समूह के साथ नीग्रिटो प्रजाति समूह की भी है।
इस तरह जनजाति जनसंख्या के अंतर्गत ही प्रजाति विविधता सामान्य लक्षण है। लेकिन गैर जनजातिय जनसंख्या विभिन्न प्रजातियों के मिश्रण स्वरूप विकसित हुई हैं। इसमें भूमध्यसागरीय, अल्पाइनटस, दिनारिक, आर्मेनाइटस प्रजातियों के लक्षण मिश्रित रूप में पाए जाते हैं, जिसमें किसी विशिष्ट प्रजाति लक्षण की पहचान कठिन है। इसके बावजूद विभिन्न क्षेत्रों की जनसंख्या को विशिष्ट प्रजाति में समन्वित किया जा सकता है। जैसे ऊपरी भारत के मैदानी भागों में मुख्यतः भूमध्यसागरीय प्रजातियां मिलती है। राजस्थान की मीणा जनजाति भी इसी प्रजाति समूह है। अल्पाइनट्स, प्रजाति लक्षण गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु एवं कर्नाटक की जनसंख्या समूह में मिलती है। गोरे रंग के मराठी अल्पनाइटस समूह के माने जाते हैं।
जम्मू कश्मीर एवं अन्य क्षेत्रों में मिलने वाली पारसिक जनसंख्या आर्मेनाइट्स प्रजाति समूह से हैं, इसी तरह नॉर्डिक प्रजातियां पंजाब एवं हरियाणा में बसी है। इस तरह विभिन्न प्रजातीय लक्षण विविध मानव समूह में मिलते हैं, लेकिन इन विविधता के तत्वों में एकता के तत्व अधिक सन्निहित है, इसलिए गुहा जैसे नेतृत्व वेत्ता ने इन्हें भारतीय प्रजातियां कहा है।
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