भारत का आंतरिक जल परिवहन | भारत में जल परिवहन

जल परिवहन के अंतर्गत अंतर्देशीय एवं समुद्र तटीय जल परिवहन आते हैं। इनमें समुद्र तटीय जल परिवहन अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए जबकि अंतर्देशीय जल परिवहन आंतरिक व्यापार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। भारत जैसे देश में जहां सभ्यता का विकास ही नदी घाटी क्षेत्र में हुआ, वहां जल परिवहन का महत्व ऐतिहासिक काल से ही रहा है। भारत में वर्ष भर अपवाहित होने वाली नदियों, झीलों की स्थिति एवं नहरों के विकास के कारण देश की परिवहन व्यवस्था में यह महत्वपूर्ण योगदान देता रहा है।

स्वतंत्रता के बाद रेल परिवहन एवं सड़क परिवहन पर अधिक बल देने तथा नदियों का उपयोग सिंचाई तथा विद्युत विकास के लिए करने की नीति के कारण जल परिवहन के विकास में बाधा उत्पन्न हुई। अतः तुलनात्मक रूप से जल परिवहन का अत्यंत कम विकास हो पाया है और इसे पिछड़े अवस्था में कहा जा सकता है।

भारत के कुछ राज्यों असम, पश्चिम बंगाल, बिहार एवं उत्तर प्रदेश में अंतर्देशीय जल परिवहन कम विशेष महत्व है। असम और पश्चिम बंगाल में माल यातायात का लगभग आधा जल परिवहन से ही होता है। केरल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में भी जल परिवहन महत्वपूर्ण है।

जल परिवहन का विकास : 

भारत में आंतरिक जल परिवहन का विकास मुख्यतः तीन स्रोतों पर निर्भर करता है – नदी, नहर और झील। इसमें अप्रवाही जल सहित संकरी खाड़िया भी शामिल है। यद्यपि भारत अनेक नदियों, नहरों तथा झीलों का देश है, फिर भी इसका आंतरिक जल परिवहन अत्यंत ही पिछड़ी अवस्था में है। पश्चिमी यूरोप के अधिकतर विकसित देशों में आंतरिक जल परिवहन व्यापारिक, आर्थिक विकास का मुख्य आधार रहा है, जैसे राइन नदी व डेन्यूब नदी।

लेकिन भारत में वर्ष भर में अपवाहित होने वाली नदियों के बावजूद जल परिवहन का सीमित विकास हुआ है। भूतल परिवहन मंत्रालय के अनुसार भारत का कुल सामान्य आंतरिक जलमार्ग 14500 किमी है, लेकिन इसमें से नदी जलमार्ग का 3700 किमी तथा नहर जलमार्ग का 900 किमी विकास हुआ है। पुनः 3700 किमी नदी मार्ग से मात्र 2000 किमी मार्ग पर ही वर्ष भर परिवहन का कार्य होता है। अन्य मार्ग आंशिक रूप से ही उपयोग में लाए जाते हैं।

हल्दिया से इलाहाबाद तक राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 1 है, लेकिन सालों भर में एक या दो जहाजी माल लेकर हल्दिया से इलाहाबाद में आता है। फरक्का से हल्दिया के बीच ही यह सालों भर उपयोग में लाया जाता है और यहां 200 किमी नहर जलमार्ग ही हमेशा उपलब्ध जलमार्ग है। परिणाम यह है कि भूतल परिवहन के अंतर्गत आने वाले कुल धोए गए पदार्थ की मात्रा 2.5% भाग जल परिवहन द्वारा ढोया जाता है और यह देश के कुल माल परिवहन में 1% से भी कम है। स्वतंत्रता के बाद परिवहन साधनों के विकास की नीति में छठी पंचवर्षीय योजना के पूर्व तक जल परिवहन की पूर्णतः अपेक्षा की गई है, लेकिन छठी योजना में अंतर्देशीय जल परिवहन को उच्च प्राथमिकता दी गई। 1986 में भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण की स्थापना की गई। उसे राष्ट्रीय जल मार्गों के विकास, रखरखाव और नियमन की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

इसके अंतर्गत आंतरिक जल परिवहन के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय लिए गए हैं। इसमें राष्ट्रीय राजमार्गों का विकास करना प्रमुख है। भारत में कुल 10 आंतरिक राष्ट्रीय राजमार्ग विकसित करने की योजना है। इसमें से 4 आंतरिक राजमार्ग का विकास हो चुका है।

  1. राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-1 : यह हल्दिया से इलाहाबाद तक गंगा नदी में है। इसकी लंबाई 1620 किमी है। इसकी घोषणा 1986 में की गई थी।
  2. राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-2 : यह धुबरी से हल्दिया तक ब्रह्मापुत्र नदी में है। इसे ब्रह्मपुत्र जलमार्ग भी कहा जाता है। इसकी लंबाई 891 किमी है। इसकी घोषणा 1988 में की गई थी।
  3. राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-3 : यह केरल में कोल्लम से कोट्टापुरम तक विस्तृत है। इसकी लंबाई 168 किलोमीटर है। यह जलमार्ग नहरों तथा लैगूनों को जोड़कर बनाया गया है। उसकी घोषणा 1993 में हुई थी। इसमें चंपकारा नहर 14 किमी, उद्योग मंडल लहर 22 किमी तथा पश्चिमी तटवर्ती नहर सम्मिलित है।
  4. राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-4 : काकीनाडा से मरक्कनम तक 1100 किमी में तमिलनाडु में है। यह 2004 में घोषित की गई। अन्य जलमार्ग जिनका विकास प्राथमिकता से किया जाना है। वह है —-
  5. सुंदरबन जलमार्ग
  6. नर्मदा जल मार्ग
  7. बकिंघम नहर
  8. दामोदर घाटी निगम
  9. ब्राह्मणी पूर्वी तटवर्ती नहर
  10. गोवा जलमार्ग

वर्तमान समय में जलमार्ग द्वारा किए जा रहे परिवहन संरचना को देखें तो यह स्पष्ट होता है कि यह मूलत: माल परिवहन करते हैं और यात्री परिवहन के लिए महत्वपूर्ण नहीं है। जल परिवहन से एक समय में बड़ी मात्रा में पण्य प्रवाह हो सकता है, जिससे परिवहन मूल्य तुलनात्मक रूप से कम हो जाता है। भारत में सबसे व्यस्ततम जलमार्ग गोवा जलमार्ग है, यह मांडवी तथा जुआरी नदी एवं कंबरजुआ नहर से मिलकर बना है तथा भारत के कुल आंतरिक जल परिवहन के कुल जल प्रवाह का 80 प्रतिशत भाग ढोता है। यह गोवा की भ्रंश घाटी से प्रवाहित होने वाली नदियां हैं, जिसकी जलस्तर में उच्च ज्वार के साथ वृद्धि होती है और यह वर्षभर नौकायन है। नदी के किनारे लौह अयस्क और मैंगनीज का भंडार एवं खान अवस्थित है, अतः यहां मत्स्य परिवहन एवं खनन मालों का परिवहन होता है। यह मार्ग खनिजों को मर्मागोवा बंदरगाह तक ले जाता है। इसी जलमार्ग के कारण गोवा में लौह अयस्क खनन में तीव्रता आई थी। यहां से लौह अयस्क तथा मैगनीज का निर्यात होता है।

दूसरा प्रमुख जलमार्ग हुगली जलमार्ग का स्थान आता है, जो फरक्का से हल्दिया तक जाता है। 

तीसरे स्थान पर कोल्लम – कोटटापुरम जलमार्ग का स्थान है। धुबरी सादिया जलमार्ग बाढ़ की स्थिति में बंद हो जाता है, पुनः इसके पृष्ठ प्रदेश पिछड़े हैं, अतः इसका उपयोग कम होता है।
राजमार्गों में दो अन्य मार्ग भी महत्वपूर्ण है।
  1. बकिंघम नहर :  यह सर्वाधिक प्राचीन नहर है, जो कावेरी नदी को कृष्णा नदी से जोड़ती है और यह मौसमी मार्ग है। यह भारत का सबसे पुराना आंतरिक जल परिवहन मार्ग है। यह आंध्र प्रदेश से चेन्नई भेजा जाता है। इस मार्ग पर मुख्य तंबाकू, कपास, चमड़ा आदि ढोया जाता है।
  2. पश्चिम बंगाल में डेल्टाई प्रदेश की नदियां :  यह क्षेत्रीय स्तर पर प्रवाह करती हैं। ये स्थानीय व्यापार का मार्ग है। हुगली नदी के दोनों ओर औद्योगिक केंद्रीयकरण हुआ है।

जल परिवहन की समस्याएं :

भारत के अधिकतर क्षेत्रों में अंतर्देशीय जल परिवहन का विकास नहीं के बराबर हुआ है। जिसके निम्नलिखित कारण है।

  1. जल संसाधन राज्य सूची का विषय है, अतः केंद्रीय स्तर पर प्रयास का विरोध होता है तथा कई नदियां कई राज्यों से गुजरती है, साथ ही यहां राज्य के बीच समन्वय का अभाव है।
  2. कई प्राकृतिक बाधाएं भी हैं, जैसे जल स्तर में स्थिरता का अभाव, पठारी नदियों का वर्षापाती होना, उत्तर भारत की नदियों में गादों (मिट्टी का जमाव) के जमाव के कारण उनकी गहराई में निरंतर कमी होना है। दक्षिण भारत की नदियों में जल प्रपात या रैपिड पाई जाती है। पुनः उबड़-खाबड़ संरचना एवं प्रतिकूल उच्चावच विशेषताएं भी व्यापक है। भारतीय नहर वर्षा के संग्रहित जल पर निर्भर करती हैं। इसलिए भारतीय नहरों में शुष्क या शुष्क काल में पानी नहीं रहता, यहां तक कि बंकिंघम नहर भी शुष्क गर्मी में काम नहीं करती।
  3. भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पिछड़ी है। यह जल मार्ग से परिवहन प्रवाह को प्रोत्साहित नहीं करती। मैदानी भारत में जीवन निर्वाह अर्थव्यवस्था है, अतः यहां औद्योगिक पदार्थों का व्यापार तथा परिवहन सीमित होता है।
  4. आंतरिक जल परिवहन को अन्य भूतल मार्गो से प्रतिस्पर्धा है। नवीन प्रतिस्पर्धा पाइपलाइन परिवहन से उभरा है। जैसे हल्दिया से आयातित कच्चे पेट्रोलियम का परिवहन सस्ते परिवहन लागत के आधार पर जलमार्ग से किया जा सकता है। लेकिन भारत सरकार ने तेल परिवहन हेतु पाइपलाइन को प्राथमिकता दी है। इससे हल्दिया राष्ट्रीय जलमार्ग-1 के विकास को काफी हानि हुई।
  5. पश्चिमी यूरोप में जल परिवहन के अनुकूल मार्ग खनिज क्षेत्रों में है, जबकि भारत में यह खनिज भंडार से दूर है।
इन समस्याओं के बावजूद अंतरराष्ट्रीय जल परिवहन के विकास के लिए निम्न प्रयास किए गए।
  1. 1982 राष्ट्रीय मार्ग अधिनियम पारित किया गया।
  2. 1986 में भारतीय अंतरराज्यीय जलमार्ग प्राधिकरण का गठन किया गया।
  3. 4 राष्ट्रीय जलमार्ग विकसित किए जा चुके हैं और अन्य के विकास का कार्य किया जा रहा है।
  4. 9वीं योजना में अंतर्देशीय जल परिवहन क्षेत्र के विकास को प्राथमिकता दी गई है।

10वीं योजना में नीति :

  1. ऐसे क्षेत्रों से अंतर्देशीय जल परिवहन का विकास करना जहां इसे प्राकृतिक लाभ प्राप्त है।
  2. आधुनिकीकरण एवं तकनीकी के विकास द्वारा जल परिवहन की उत्पादकता बढ़ाना।
  3. अंतर्देशीय जल परिवहन के लिए प्रशिक्षित एवं कुशल मानव शक्ति का निर्माण करना।

 विभिन्न जल मार्गों के अनुरूप नौका का विकास, नौकाओं का आधुनिकीकरण, पुरानी नौकाओं का प्रतिस्थापन तथा नई नौकाओं का आगमन, जलमार्ग को पूरे वर्ष के दौरान 24 घंटे नो परिवहन योग्य बनाने का कार्य, 9वीं योजना से ही प्राथमिकता से किया जा रहा है। अंतर्देशीय जहाजों के निर्माण पर केंद्र सरकार द्वारा 30% तक की सब्सिडी भी दी जाती है। 

भारत – बांग्लादेश के मध्य अंतर्देशीय जल परिवहन से संबंधित चार समझौते चार प्रमुख मार्ग निर्धारित किए गए।
  1.  कोलकाता – पांडू
  2.  कोलकाता – करीमगंज
  3.  राजशाही – धुलिया
  4.  पांडू – करीमगंज

इस मार्ग से भारत एवं बांग्लादेश के जहाज एक दूसरे देश में जा सकते हैं। बांग्लादेश में राज नाराय गंज, खुलना, मोंडला और सिराजगंज बंदरगाह इन मार्गो से जुड़े हैं।

अंतर्देशीय जल परिवहन संबंधित प्रशिक्षण के लिए 2004 में पटना में राष्ट्रीय अंतर्देशीय नौवहन संस्थान प्रारंभ किया गया यह राष्ट्रीय महत्व का प्रशिक्षण संस्थान है। इस प्रकार अंतर्देशीय जल परिवहन के विकास की राष्ट्रीय नीति के अंतर्गत पर्याप्त कार्य किए जा रहे हैं।

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