विशेष आर्थिक क्षेत्र की अवधारणा भारत में आर्थिक विकास के रूप में है, जो निर्यात संवर्धन को एक अस्त्र के रूप में स्वीकार करके आर्थिक विकास को प्रोत्साहित तथा रोजगार अवसरों के सृजन का एक बेहतर माध्यम है। विशेष आर्थिक क्षेत्र देश की सीमा के अंदर स्थित ऐसा विशिष्ट शुल्क मुक्त क्षेत्र होता है, जिसे व्यापार संचालन, शुल्क एवं प्रशुल्कों की दृष्टि से विदेशी क्षेत्र माना जाता है। इन विशिष्ट प्रावधानों के अंतर्गत यदि कोई वस्तु सेज से घरेलू व्यापारिक क्षेत्र में जाती है, तो यह निर्यात तथा घरेलू क्षेत्र से सेज (Special Economic Zone) में जाती है, तो आयात माना जाएगा।
SEZ की स्थापना
वैसे तो भारत में सेज की अवधारणा नयी है, लेकिन 1965 में कांडला (Gujarat) निर्यात संवर्धन क्षेत्र (EPZ) की स्थापना के साथ ही इसका विकास शुरू हो गया था। निर्यात संवर्धन क्षेत्र में नियंत्रण एवं अनुमति के बारे में बहुलता, निर्यात मामलों के निपटारे में देरी, विश्वस्तरीय आधारभूत संरचना का अभाव, अस्थिर राजकोषीय नीति और नीतिगत लाभों के अभाव के कारण निर्यात प्रोत्साहन में यह प्रभावी माध्यम नहीं बन सका, इन्हीं कमियों को ध्यान में रखते हुए अप्रैल 2000 में EPZ को सेज में परिवर्तित कर दिया, साथ ही साथ सेज को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए मई 2005 में संसद द्वारा नया सेज अधिनियम पारित किया गया, जो 10 फरवरी 2006 से लागू हो गया।
इस अधिनियम के तहत विशेष आर्थिक क्षेत्र की इकाइयों को विदेशी निवेश सहित निवेश बढ़ाने के लिए दी गई सुविधाओं में शुल्क मुक्त निर्यात, विकास के लिए घरेलू बाजार एवं वस्तुओं की खरीद तथा सेज की इकाइयों के रखरखाव एवं संचालन पर आयकर अधिनियम की धारा-10 (Aa) के तहत विशेष छूट की व्यवस्था दी गई है, जो पहले 5 वर्ष में पूरी तरह से छूट, उसके बाद के 5 वर्षों तक 50 प्रतिशत की छूट और बाद के 5 वर्षों तक लाभ पर 50 प्रतिशत की छूट के रूप में है। इसके अलावा केंद्रीय बिक्री कर एवं सेवा कर से छूट तथा इकाइयों की स्थापना में एकल खिड़की अनुमति की व्यवस्था शामिल है।
केंद्र सरकार ने 5 अप्रैल 2009 को सेज के नोन प्रोसेसिंग क्षेत्र के विकास के लिए नए मानक तय किए हैं। नोन प्रोसेसिंग क्षेत्र में अधिकतम 75 प्रतिशत सेज में ही आवासीय या वाणिज्यिक विकास हो सकता है। मानकों के अनुसार बहु उत्पाद और सेक्टर विशेष को समर्पित सेज में कुल नोन प्रोसेसिंग क्षेत्र के 50 प्रतिशत भाग में आवासीय, 25 प्रतिशत में वाणिज्य तथा 25 प्रतिशत क्षेत्र में स्कूल, अस्पताल आदि सामाजिक विकास कार्य किया जा सकता है।
वर्तमान में सेज में 1216 इकाइयां काम कर रही हैं, जिनमें 1.93 लाख लोगों को रोजगार मिला है। इनमें लगभग 40 प्रतिशत महिलाएं हैं।
सेज़ से सम्बंधित विवाद
सेज नीति से देश में निजी एवं विदेशी पूंजी निवेश में तीव्र प्रवाह, अतिरिक्त रोजगार के अवसर का सृजन तथा व्यापार में वृद्धि हुई है और विश्व व्यापार में भारत की हिस्सेदारी 1 प्रतिशत से अधिक हो गई है। इसके साथ ही क्षेत्रीय विषमता में भी कमी आई है। इसके बावजूद सेज की स्थापना हमेशा से विवादों में घिरी रही है। इन विवादों में कृषि भूमि का अतिक्रमण, किसानों को भूमि का उचित मुआवजा न मिल पाना, सेज की भूमिका स्थावर संपदा (Real estate) क्षेत्रों में दुरुपयोग, बड़ी मात्रा में विस्थापन एवं पुनर्वास की समस्या, क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधनों और खनिजों का अत्याधिक दोहन तथा पर्यावरणीय अपकर्षण प्रमुख है। इसके अलावा केंद्र और राज्य की राजनीतिक शक्तियां भी सेज की स्थापना में बाधक है, जिसका ताजा उदाहरण वेदांता रिसोर्स द्वारा उड़ीसा में सेज के निर्माण से है, अतः आवश्यकता इस बात की है कि उपर्युक्त विवादों से बचते हुए सेज के लिए वैसी भूमि का चयन किया जाए, जो बंजर एवं कृषि के लिए उपयोगी ने हो। इससे कृषि भूमि पर किसी गत पदार्थों का उत्पादन होता रहेगा और कृषि विकास दर भी बनी रहेगी एवं खाद्य पदार्थों का मूल्य भी नियंत्रित रहेगा।
इस प्रकार बेहतर सरकारी नीति, पर्यावरण अनुकूल तकनीक, सामाजिक एवं राजनीतिक बाधाओं से मुक्त उपायों को अपनाकर शेज को विवादों से बचाया जा सकता है और इस क्षेत्र में निवेशकों को आकर्षित कर के आर्थिक गतिविधियों के द्वारा निर्यात को बढ़ाया जा सकता है।
2 thoughts on “विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zone) से आप क्या समझते हैं?”
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