रबर की खेती | रबर की फसल की पूरी जानकारी

रबड़ ब्राजील का पौधा है। भारत में सर्वप्रथम 1826 में हेनरी विलियम्स (Heneri Wiliams) द्वारा इसके बीज पारा क्षेत्र से केरल के पेरियार नदी क्षेत्र में पौधे लगाए गए।

रबड़ के वृक्ष भूमध्य रेखीय सदाबहार वनों (Equatorial evergreen forest) में पाए जाते हैं, इसके दूध, जिसे लेटेक्स (Latex) कहते हैं, उससे रबड़ तैयार किया जाता हैं। सबसे पहले यह अमेजन बेसिन में जंगली रूप में उगता था, वहीं से यह अंग्रेजों द्वारा दक्षिणी-पूर्वी एशिया में लाया गया।

इसके लिए कुछ महत्वपूर्ण भौगोलिक दशाएं (Geographical Conditions) है।

    • रबड़ उष्ण कटिबन्धीय पौधा (Tropical Plant) हैं।
    • तापमान : 25-35°C
    • वर्षा : 200 सेंमी से अधिक
    • मौसम वर्षभर आर्द्र होना चाहिए
    • 21°C से कम तापमान हानिकारक है।
    • इसकी कृषि 300 से 700 मीटर के मध्य पहाड़ी ढालों पर होती है।
    • मानव श्रम अधिक आवश्यक है।
    • रोपण एवं कलम दोनों विधि से उत्पादन संभव है।

पहले इसका प्रयोग पेन्सिल के निशान मिटाने के लिये किया जाता था। आज यह विश्व की महत्वपूर्ण व्यावसायिक फसलों में से है। इसका प्रयोग मोटर के ट्यूब, टायर, वाटर प्रूफ कपड़े, जूते तथा विभिन्न प्रकार के दैनिक उपयोग की वस्तुओं में होता है। थाईलैंड, इण्डोनेशिया, मलेशिया, भारत, चीन तथा श्रीलंका प्रमुख उत्पादक देश है। भारत का विश्व उत्पादन में चौथा स्थान है, परन्तु घरेलु खपत अधिक होने के कारण यह रबर का आयात करता है। भारत में यह केरल में सर्वाधिक उत्पादन होता है तथा कर्नाटक, अंडमान निकोबार, तमिलनाडु आदि राज्यों में इसका उत्पादन किया जाता है। भारत में प्राकृतिक रबड़ का उत्पादन अधिक होता है।


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