Indian Ocean currents | हिंद महासागर की जलधाराएं

क्षेत्रफल की दृष्टि से हिंद महासागर विश्व का तीसरा सबसे बड़ा महासागर है। यह एकमात्र सागर है जो आर्कटिक सागर से जुड़ा हुआ नहीं है। उत्तरी भाग में दक्षिण एशिया की स्थलाकृतियां इस महासागर की जलधाराओं की उतरी प्रभाव में बाधाएं उत्पन्न करती हैं। अतः सभी जलधाराएं दक्षिण एशिया के दक्षिण में मौसमी प्रवाह के अनुरूप अपवाहित होती हैं। हिंद महासागर की जलधाराओं पर कई विशिष्ट परिस्थितियों का प्रभाव है, जिससे इसकी जलधाराएं अन्य महासागरों की जलधाराओं से भिन्न है। पुनः ये सभी प्रभाव उत्तरी हिंद महासागरीय जलधाराओं पर पड़ता है। जबकि दक्षिणी हिंद महासागर की जलधाराएं सामान्य अपवाह प्रारूप से अपवाहित होती हैं।

हिंद महासागर की जलधाराओं पर तीन विशिष्ट भौगोलिक कारकों का प्रभाव पड़ता है।

  1.  मानसूनी प्रभाव (Monsoon effect)
  2.  तापीय प्रभाव जो उत्तर में महाद्वीपीय स्थिति के कारण अधिक तीव्र होता है।
  3. महाद्वीपीय प्रभाव (Continental influence)

अन्य किसी भी महासागर की जलधाराओं पर इन कारकों का इतना प्रभाव नहीं होता, जितना हिंद महासागर में है। पुनः ये सभी प्रभाव उत्तरी हिंद महासागर की जलधाराओं पर है, जबकि दक्षिणी हिंद महासागर की जलधाराएं सामान्य कारकों से प्रभावित होती हैं, तथा अन्य महासागरों की तरह ही सामान्य प्रारूप की होती हैं। जहां शांत क्षेत्र का भी अंशत: विकास होता है। इन कारकों को निम्न सारणी में देखा जा सकता है।

प्रमुख कारक

  1. खगोलीय कारक :  (I) पृथ्वी की घूर्णन गति (II) गुरुत्वाकर्षण (III) विक्षेप बल (Deflection force)
  2. वायुमंडलीय कारक :  (I) वायु प्रवाह की दिशा एवं गति (II) वायुदाब (III) वर्षा की मात्रा एवं वाष्पीकरण की दर
  3. समुद्री कारक : (I) जल का तापक्रम (II) दाब प्रवणता (III) लवणता (IV) हिमशिला खंडों का पिघलना
  4. स्थलाकृतिक कारक :  (I) तट रेखा की आकृति (II) मध्य महासागरीय कटक (III) द्वीप (The island)

विभिन्न जलधाराओं के वितरण एवं दिशा को प्रभावित करने वाले कारकों को विभिन्न जलधाराओं के संदर्भ में व्याख्या करते हैं।

जलधाराओं का वितरण

हिंद महासागर की जलधाराओं को दो भागों में बांटते हैं।

  1.  अस्थायी धाराएं : विषुवत रेखा के उत्तर में चलने वाली जलधाराएं
  2.  स्थायी धाराएं : विषुवत रेखा के दक्षिण में चलने वाली जलधाराएं
उत्तरी हिंद महासागर की धाराएं

उत्तरी हिंद महासागर अस्थाई वायु से प्रभावित होता है, जिससे जलधाराएं भी मौसमी हो जाती हैं। जलधाराओं के मौसमी प्रभाव के कारण ही प्रतिरोधी विषुवतीय गर्म जलधारा की उत्पत्ति सिर्फ दक्षिणी गोलार्ध में जाड़े में होती है। उत्तरी गोलार्ध में ग्रीष्म ऋतु में हिंद महासागर के जल पर भारी तापीय प्रभाव रहता है, जिसके कारण उसका जल फैलकर गतिशील हो जाता है, और यह गति मानसूनी पवनों के अनुरूप होती है।
उत्तरी गोलार्ध की जलधाराएं : यहां दो जलधाराएं पाई जाती है।

  1.  दक्षिणी पश्चिमी मानसून गर्म जलधारा
  2.  उत्तरी पूर्वी मानसूनी गर्म जलधारा

दक्षिणी पश्चिमी मानसून गर्म जलधारा की उत्पत्ति मानसून के मौसम में होती है, तथा मानसून के समापन के साथ ही यह जलधारा विलुप्त हो जाती है। उसी समय उत्तरी पूर्वी मानसून का आगमन होता है, जिसके प्रभाव से हिंद महासागर के जल से प्रतिरोधी विषुवतीय गर्म जलधारा की उत्पत्ति होती है। लेकिन ज्योंहि गर्म और आर्द्र ऋतु प्रारंभ होने लगती है, तो उत्तर-पूर्वी मानसून समाप्त होने लगता है, तथा दक्षिणी पश्चिमी मानसून का आगमन होता है, तब दक्षिणी पश्चिमी मानसूनी जलधारा उत्पन्न हो जाती है। अतः मानसूनी हवाओं के कारण धाराओं की दिशा वर्ष में दो बार बदलती है। साथ ही दोनों धाराओं की दिशा और गति तटीय प्रदेश के अनुसार होती है।

उत्तरी हिंद महासागर में कोई भी ठंडी जलधारा नहीं है, जिसका प्रमुख कारण आर्कटिक सागर से संबंध का नहीं होना है। अतः कोई ठंडी जलधारा उत्तर की दिशा में प्रवेश नहीं कर पाती। साथ ही उत्तरी अटलांटिक धारा जैसी कोई धारा यहां नहीं पाई जाती, ऐसा यहां की महाद्वीपीय स्थिति के कारण होता है। अपवाद स्वरूप सोमाली के तट पर सोमाली ठंडी जलधारा मिलती है। यह तुलनात्मक रूप से ठंडी जलधारा है। सामान्यत: सोमाली तटवर्ती प्रदेश में वायु प्रवाह के कारण ऊपरी जल के विस्थापित होने से तली से ठंडे जल का प्रवाह होता है, जिसे सोमाली ठंडी जलधारा कहते हैं।

साथ ही यहां सारगैसो सागर जैसी स्थिति उत्पन्न नहीं होती ऐसी धाराओं के निश्चित क्रम के अभाव के कारण हैं। अतः स्पष्टत: उतरी हिंद महासागर की जलधाराएं अन्य महासागरों की जलधाराओं की तुलना में पर्याप्त क्षमता रखती हैं।

दक्षिण हिंद महासागर की जलधाराएं
दक्षिण हिंद महासागर में प्रचलित वायु के प्रभाव से तीन गर्म एवं दो ठंडी जलधाराएं पाई जाती हैं।
गर्म जलधाराएं 
  • दक्षिणी विषुवतीय गर्म जलधारा (Southern equatorial hot stream)
  • मोजांबिक गर्म जलधारा (Mozambique hot stream)
  • अगुलास गर्म जलधारा (Agulhas Hot Stream)
ठंडी जलधाराएं 
  • पछुआ पवन प्रवाह (West wind)
  • पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया ठंडी जलधारा
 गर्म जल धाराएं 10-15°S अक्षांश के मध्य प्रवाहित होती हैं। पश्चिम में मेडागास्कर से टकराकर यह दो भागों में बट जाती हैं। पहला मोजांबिक चैनल में जिसे मोजांबिक जलधारा कहते हैं। दूसरा पूर्व में अगुलास जलधारा के नाम से प्रवाहित होती है। यें तीनों गर्म जलधाराएं एक दूसरे की पूरक है। लगभग 40°S अक्षांश के पास मोजांबिक धारा और अगुलास धारा मिल जाती है। साथ ही पछुआ पवन प्रवाह का प्रभाव भी उस पर पड़ने लगता है और यह पश्चिमी वायु प्रवाह का अंग बन जाती है। पश्चिमी वायु प्रवाह का जल जब आस्ट्रेलिया के तट पर पहुंचता है तो तटीय अवरोध के कारण कुछ भाग उत्तर की ओर मुड़ जाता है, जिसे पश्चिमी आस्ट्रेलिया ठंडी जलधारा कहते हैं। इसका जल विषुवतीय गर्म जलधारा का अंग बन जाता है। दक्षिण हिंद महासागर में उत्तरी हिंद महासागर के विपरीत सारगैसो जैसी स्थिति उत्पन्न होती है, जैसाकि अन्य दो महासागरों में होता है। इस प्रकार दक्षिणी हिन्द महासागर महासागरीय जलधाराओं की सामान्य परिभाषा को ही निरूपित करती है।

तटवर्ती जलवायु पर प्रभाव (Impact on coastal climate)

 तटवर्ती प्रदेशों की जलवायु पर हिंद महासागर की जलधाराओं का भी अन्य महासागरों की तरह व्यापक प्रभाव पड़ता है, तथा तटीय जलवायु संशोधित होती है। साथ ही तटवर्ती प्रदेश के आर्थिक, सामाजिक कार्यों पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है। 

क्योंकि दोनों ही मानसूनी जलधाराएं गर्म जलधारा है। जिसके कारण वर्तमान में पर्याप्त नमीं एवं आद्रता रहती है, तथा शायद ही कभी उच्च भार का निर्माण होता है। ये मौसमी जलधाराएं तटवर्ती प्रदेश में पर्याप्त वर्षा कराती हैं।

लेकिन सोमाली ठंडी जलधारा का सीधा प्रभाव सोमाली जमीन पर पड़ता है, जिस कारण वह अर्ध मरुस्थलीय क्षेत्र है। दक्षिण हिंद महासागर की जलधाराओं के तटवर्ती प्रभाव अधिक है। मोजांबिक के तटवर्ती प्रदेश में भी जलधारा से भारी वर्षा होती है। यह गर्म जलधारा तट पर निम्न भार का निर्माण करती है। जबकि पश्चिमी आस्ट्रेलियाई जलधारा के ठंडी होने के कारण ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी भाग पर मरुस्थल का विस्तार है।

यद्यपि प्रतिरोधी विषुवतीय गर्म जलधारा छह माह ही उत्पन्न होती है शरद ऋतु में, लेकिन मौसम वैज्ञानिक तथा दक्षिण पूर्वी एशिया के कृषकों के लिए यह महत्वपूर्ण जलधारा है, क्योंकि इसके प्रभाव से इस क्षेत्र में वर्षा होती है। जो रबर की बागानी कृषि के लिए बहुत ही अनुकूल है। स्पष्ट है हिंद महासागर की जलधाराओं की तटवर्ती जलवायु तथा अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ता है।

Posted in Uncategorized