मकर सक्रांति भारत का एक प्रमुख पर्व है जो भारत के साथ-साथ नेपाल में भी मनाया जाता है। यह पौष माह में मनाया जाता है तथा अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 2024 में यह 15 जनवरी दिन सोमवार को मनाया जाएगा।
इस दौरान सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि पर आता है। इस त्यौहार को लोहड़ी पर्व से 1 दिन बाद मनाया जाता है। भारत एवं भारत से बाहर इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे दक्षिण भारत तमिलनाडु में इसे पोंगल, कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे संक्रांति भी कहते हैं। इनके अनुसार सूर्य उत्तरायण दिशा में होता है।
मकर संक्रांति के विभिन्न नाम
भारत एवं भारत से बाहर मकर सक्रांति को विभिन्न नामों से जाना जाता है।
- उत्तर एवं मध्य भारत – मकर सक्रांति
- तमिलनाडु – ताइ पोंगल
- कश्मीर की घाटी – शिशुर संक्रांत
- असम – भोगाली बिहु
- पश्चिम बंगाल – पौष संक्रांति
- कर्नाटक – मकर संक्रमण
उत्तर प्रदेश एवं पश्चिमी बिहार में खिचड़ी आदि नामों से जाना जाता है। इसके अलावा भारत से बाहर –
- बांग्लादेश में पौष संक्रांति
- श्रीलंका में पोंगल
- कंबोडिया में मोहा संगक्रान
- म्यांमार में थियान एवं
- थाईलैंड में सॉन्गकरन
इस त्यौहार के दौरान लोग गंगा के घाट पर दान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि मकर सक्रांति के अवसर पर दान करने से 100 गुना बढ़कर धन वापस आता है। इसलिए गंगा के किनारे बसे शहरों में मकर सक्रांति के पर्व के अवसर पर काफी भीड़ रहती है तथा लोग दूर-दूर से स्नान करने के लिए आते हैं।
मकर सक्रांति का ऐतिहासिक तथ्य
ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं घर जाते हैं। क्योंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी है, अतः इस दिन को मकर सक्रांति के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता भी है कि गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थी।
मकर सक्रांति पर भोजन
मकर सक्रांति के दिन चावल तथा उड़द की दाल की खिचड़ी बनाई जाती है एवं सूर्य भगवान को भोग लगाया जाता है। कुछ लोग सड़कों के किनारे भंडारे की व्यवस्था करते हैं तथा खिचड़ी का भोजन कराते हैं। इस दिन लगभग सभी हिन्दू घरों में खिचड़ी बनाई जाती है। इसलिए इसे खिचड़ी का त्यौहार भी कहते हैं। खिचड़ी के अलावा तिल की बर्फी तथा लड्डू भी बनाए जाते हैं।
मकर सक्रांति के दिन बच्चे पतंगे उड़ाते हैं। पतंगों के कारण आसमान का दृश्य बहुत ही सुहावना होता है। यहां भारत से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी भारत में पतंग उड़ाने आते हैं।
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