RBI सभी बैंकों के लिए नियम निर्धारित करती है। यह भारत सरकार का बैंक है, यानी केंद्रीय बैंक है। यहां कोई भी व्यक्ति अपना खाता नहीं खुला सकता। यहां केवल बैंकों के खाते खोले जाते हैं।
नकद आरक्षित अनुपात का अर्थ
RBI के निर्देशानुसार, बैंक को अपने कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा RBI के पास रखना होता है। इसे CRR (Cash Reserve Ratio) कहते हैं। वर्तमान में Cash Reserve Ratio 4 प्रतिशत है। कमर्शियल बैंकों का जो पैसा RBI के पास चालू खाते में (Cash Reserve Ratio के रूप में) जमा होता है तो इस पैसे पर RBI किसी तरह का ब्याज (Interest) नहीं देता। इस रकम को प्रयोग करने का अधिकार Commercial Banks के पास नहीं होता है। तथा इस पैसे को बैंकें किसी प्रकार के ऋण के रूप में भी नहीं दे सकती।
RBI के पास CRR को बढ़ाने के कारण बैंकों के पास बाजार में लोन देने के लिए पैसे की कमी हो जाएगी। अगर RBI, CRR को घटाता है, तो बाजार में पैसे का प्रवाह बढ़ जाता है। RBI, CRR के बदलाव तभी करता है, जब बाजार में नकदी की तरलता पर तुरंत असर नहीं डालना हो। अगर देखा जाए तो रेपो दर तथा रिवर्स रेपो दर की तुलना में CRR में बदलाव के कारण बाजार में नकदी की उपलब्धता पर ज्यादा वक्त में असर पड़ता है।
CRR के घटने तथा बढ़ने से प्रभावित बाजार
जब रिजर्व बैंक CRR को बढ़ा देता है, तो बैंकों को अपनी जमा राशि का अधिकांश हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना पड़ता है, जिसके कारण बैंकों के पास जमा राशि कम हो जाती है और वे बाजार (Market) में कम मात्रा में लोन (Loan) का वितरण (Distribution) कर पाते हैं। इस प्रकार बैंकें ऋण (Loan) देना कम कर देती हैं। यहां ग्राहक को लोन लेने के लिए बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इससे महंगाई को नियंत्रित किया जा सकता है, अर्थात मुद्रास्फीति (Inflation) काफी हद तक नियंत्रित की जा सकती है। इसमें नकारात्मक (Negative) पहलू यह है कि इसके कारण बेरोजगारी बढ़ती है।
उसी प्रकार जब रिजर्व बैंक CRR कम कर देती है तो बैंकों को अपनी जमा का कुछ हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होता है, जिसके बाद बैंकों के पास पैसे की राशि अच्छी होती है और वे बाजार में ऋण का वितरण करने लगती है। ऋणी (Borrower) को ऋण (Loan) लेने के लिए ज्यादा परेशानी नहीं उठानी पड़ती और उसे आसानी के साथ लोन मिल जाता है। इस दशा में उद्यमी अर्थात व्यापारी अपने व्यापार का प्रसार करने के लिए ऋण लेते हैं तथा रोजगार एवं उत्पाद (Product) का सृजन करते हैं। इससे अर्थव्यवस्था में तरलता बढ़ जाती है और यह अर्थव्यवस्था की मंदी को दूर करने में काफी हद तक मददगार होती है।
RBI को CRR की जरूरत क्यों पड़ी?
जैसे कि हम जानते हैं कि सभी बैंकों को अपने पैसे का कुछ हिस्सा RBI के पास जमा करना होता है। जिस पर RBI कमर्शियल बैंकों को किसी प्रकार का ब्याज (Interest) नहीं देता। यहां पर सवाल यह है कि CRR की जरूरत क्यों पड़ी? बैंक ज्यादा मुनाफा (Profit) कमाने के लिए अपने पैसे को बाजार में अर्थात ऋण के रूप में बांट देता है। इस प्रकार अपने दिनचर्या के खर्चों (Expenses) को पूरा करने के लिए वह खाताधारकों (Account Holder) के जमा किए गए पैसों (Money) से प्रबंधन (Management) करता है।
मगर किसी कारण से सारे ग्राहक जिन्होंने अपना पैसा बैंक में जमा किया है, वापस लेने (Withdraw) आ जाएं तो उस दशा में बैंक के सामने यह सवाल खड़ा हो जाता है कि वह अपने ग्राहकों को इतने पैसे कैसे दे, क्योंकि बैंक ने अपना सारा पैसा ऋण के रूप में वितरित किया हुआ है। जिसके कारण बैंक के पास वर्तमान समय में इतना पैसा नहीं है कि वह अपने ग्रहों का जमा किया गया पैसा वापस कर दे। बस इसी समस्या को दूर करने के लिए RBI, CRR के रूप में बैंकों का कुछ पैसा अपने पास जमा के रूप में रखती है। ताकि बैंक के बंद होने, दिवालिया होने या अन्य किसी कारण से ग्राहक को किसी प्रकार की समस्या न हो। इस प्रकार RBI सभी कमर्शियल बैंकों के पैसे का कुछ हिस्सा अपने पास CRR के रूप में रखती है।