दूसरे शब्दों में वाणिज्यिक बैंकों द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक से लिया गया ऋण तथा उस रकम या ऋण पर जो ब्याज दर लगाई जाती है। उसे रेपो दर कहते हैं।
रेपो रेट का हम पर क्या असर पड़ता है।
जब बैंकों को RBI से कम ब्याज दर पर ऋण या लोन मिलेगा, तो बैंक भी अपने ग्राहकों को कम ब्याज दर पर लोन बाटेगी। मतलब अगर रेपो रेट कम होगी तो होम लोन, कार लोन तथा अन्य लोन भी सस्ते हो जाएंगे। जिससे लोगों के पास अधिक पैसा होगा और वह किसी भी वस्तु को आसानी से खरीद सकते हैं। इस प्रकार पैसे की कीमत कम हो जाएगी तथा बाजार में वस्तुओं की कीमत बढ़ जाएगी। अगर यही प्रक्रिया कुछ वर्षों तक जारी रहती है, तो मुद्रास्फीति की स्थिति आ जाती है। यह सामान्य होने पर तो विकास करती है। मगर बढ़ जाने पर आम जीवन पर इसका बहुत प्रभाव पड़ता है, जिसका असर गरीब तथा मध्यम वर्ग के लिए हानिकारक हो सकता है।
रेपो दर का रोजगार पर असर
रिवर्स रेपो दर
रिवर्स रेपो रेट, रेपो रेट का लगभग उल्टा है। इसमें जब बैंक अपनी बचत का पैसा आरबीआई में जमा करती है तो आरबीआई उस पैसे पर बैंक को ब्याज देती है। आरबीआई जिस दर से बैंक को ब्याज देती है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं। वर्तमान में रिवर्स रेपो रेट 3.35 (Aug, 2023) प्रतिशत है।
बैंक RBI में अपना पैसा क्यों जमा करती हैं?
- लाभ के उद्देश्य से : उदाहरण के लिए, अगर बाजार में ब्याज दर 7 प्रतिशत है तथा RBI के पास जमा करने पर ब्याज दर 8 प्रतिशत है, तो इस केस में भी बैंक अपना पैसा आरबीआई में जमा कर देती है।
- सुरक्षा के उद्देश्य से : बाजार में बैंक का पैसा असुरक्षित है। ऐसा माना जाता है कि RBI के पास पैसा सुरक्षित रहेगा तथा ब्याज दर भी लगभग समान है। तो उस केस में भी बैंक अपना पैसा RBI के पास रखना सुरक्षित समझती है।
- वस्तुओं के मूल्य को कम करने के लिए : वस्तुओं के मूल्य को कम करने के लिए भी बैंक बाजार में अपना पैसा ज्यादा नहीं लगाना चाहती, क्योंकि जब बाजार में पैसा ज्यादा होगा, तो लोगों द्वारा ज्यादा खरीदारी की जाएगी तथा वस्तुओं की कीमत बढ़ जाएगी। इसलिए यह कह सकते हैं कि बैंक यहां मुद्रा स्फीति को कम करने का कार्य करती है। ये सब कार्य, बैंक की सहायता से आरबीआई के द्वारा किए जाते हैं।
CRR/नकद आरक्षित अनुपात
इस प्रकार RBI के निर्देशानुसार, बैंक अपने कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा RBI के पास रखना होता है। इसे CRR कहते हैं। वर्तमान में CRR 4.5 प्रतिशत (Aug, 2023) है।
SLR/वैधानिक तरलता अनुपात
RBI अर्थव्यवस्था या बाजार में नकदी (पैसे) की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए जिन उपायों का सहारा लेती है, उनमें SLR एक प्रमुख उपाय हैं। Statutory Liquidity Ratio या वैधानिक तरलता अनुपात बैंकों के पास उपलब्ध जमा का वह हिस्सा होता है जो कि उन्हें अपनी जमा पर लोन जारी करने के पहले अपने पास रख लेना जरूरी होता है।
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