राजपूत वंश | भारतीय इतिहास | Rajpoot Vansh

हर्षवर्धन के बाद गुर्जर प्रतिहार वंश ने संपूर्ण भारत पर राज किया। मगर इसके समाप्त होने के उपरांत संपूर्ण भारत छोटे-छोटे टुकड़ों में बट गया, जो आपस में लड़ते रहते थे। यह 7-12वीं सदी तक चला, जिसे राजपूत युग के नाम से जाना जाता है।

गुर्जर प्रतिहार वंश प्राचीन एवं मध्यकालीन काल में साम्राज्य स्थापित करने वाला वंश था, जो स्वयं को राजपूत कहते थे। इसने 8-11वीं सदी तक शासन किया। इस वंश का संस्थापक नागभट्ट प्रथम था। इस वंश के शासकों ने लगभग संपूर्ण भारत पर राज किया और उज्जैन एवं कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया। नागभट्ट द्वितीय के शासनकाल में यह वंश और अधिक शक्तिशाली बन गया। इस बढ़ते साम्राज्य ने एक त्रिपक्षीय संघर्ष को जन्म दिया। जिसके अंत में गुर्जर प्रतिहार वंश की जीत हुई। जिसमें प्रतिहारों के अलावा राष्ट्रकूट एवं पाल वंश भी शामिल था। इस वंश का प्रतापी राजा मिहिरभोज था। जिसने अपनी राजधानी कन्नौज बनाई।

  • राठौर या गढ़वाल वंश :  इसका संस्थापक चंद्रदेव था। इस वंश का अंतिम शासक जयचंद जिसे चंदावर के युद्ध में मोहम्मद गोरी ने 1194 ईस्वी में पराजित कर मार डाला।
  • चौहान वंश :  इसका संस्थापक वासुदेव था। पृथ्वीराज तृतीय या चौहान इस वंश का अंतिम हिंदू सम्राट था। जिसने मोहम्मद गौरी को तराइन के प्रथम युद्ध में 1191 में हराया था। मगर तराइन के द्वितीय युद्ध में वह हार गया। पृथ्वीराज तृतीय ने स्वयंवर से जयचंद की पुत्री संयोगिता का अपहरण कर लिया था।
  • चालुक्य वंश या सोलंकी वंश :  इस वंश के शासक भीम प्रथम थे। इनके शासनकाल में महमूद गजनवी ने सोमनाथ के मंदिर पर आक्रमण किया। ऐसा माना जाता है कि यहां से गजनबी बहुत सारा धन लूटकर ले गया था। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर पर आक्रमण होने से लाखों दासियों को मुक्ति मिली, जिनको इस मंदिर में जबरन रखा गया था।
  • सिसोदिया वंश :  यह स्वयं को सूर्यवंशी कहते थे। इनकी राजधानी चित्तौड़ थी। राणा कुंभा इस वंश का प्रतापी शासक हुआ। इन्होंने विजय स्तंभ का निर्माण चित्तौड़ में करवाया था। 1518 ईसवी में खतौली के युद्ध में राणा सांगा एवं इब्राहिम लोदी आमने-सामने थे, जिसमें राणा की जीत हुई। 24India
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